यह एक 100 वर्ग फुट की संरचना है जो दोनों तरफ से खुली हुई है। यह बांस और मिट्टी पर खड़ी है। इसकी छत टिन से बनी है। मिट्टी की दीवारों में दरारें पड़ी हुई हैं। बारिश होने पर केवल सस्ती प्लास्टिक शीट ही इनको भीगने से बचा सकती है। वह भी तब जब यह लोग उसे खरीद पाएं। यहां उनका शयनकक्ष है जो साथ जुड़े हुए रसोईघर और ड्राइंग रूम को मिलाकर दोगुना हो जाता है। इस 100 वर्ग फुट के क्षेत्र को अगर 'घर' कहा जाए तो इसके मालिक थे मंगल शबर। जो कि बंगाल के जनजातीय बहुल लालगढ़ इलाके में कथित रुप से भूख और कुपोषण से मरे सात लोगों में से एक थे। लेकिन इस दर्दनाक हादसे से दूर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी कोलकाता फिल्म फेस्टिवल की देखरेख में व्यक्तिगत रुप से जुटी हुई हैं। 

जनजातीय शबर समुदाय से संबंधित 35 परिवार लालगढ़ के जंगलखाश गांव में रहते हैं, जिनमें से 7 पिछले 15 दिनों में जीवन के साथ चल रही जंग हार गए। आरोप लगाया जा रहा है कि इसमें से ज्यादातर मौतें भूख और कुपोषण की वजह से हुई हैं। लेकिन राज्य सरकार इन आरोपों से पूरी तरह इनकार कर रही है। 

आदिवासियों की मौत से बेखबर राज्य सरकार सालाना व्यापार शिखर सम्मेलन 'राइजिंग बंगाल' में अपने विकास मॉडल का प्रचार कर रही है। लेकिन जंगलखाश गांव 'विकास' से अनजान है। ज्यादातर घर मिट्टी से बने हुए हैं। शबर समुदाय के कुछ लोगों के पास तो खुद को छिपाने के लिए चार दीवारें तक नहीं हैं। पानी का पंप भी टूटा हुआ है।

यह इलाका छत्तीसगढ़ के अबूझमाड़ की याद दिलाता है- एक राज्य के भीतर एक दूसरा राज्य। हालांकि अबूझमाड़ के विपरीत यहां राज्य सरकार के अधिकारी आसानी से प्रवेश कर सकते हैं। फिर भी यहां यह पूछना अर्थहीन होगा कि इस क्षेत्र में जिला मजिस्ट्रेट या कम से कम ब्लॉक विकास अधिकारी (बीडीओ) के कितने दौरे हुए हैं। शबर समुदाय के लिए शिक्षा एक सपने की तरह है क्योंकि उनकी प्राथमिकता अपने बच्चों के लिए भोजन जुटाना है। 

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लालगढ़ किसी जमाने में माओवादी गतिविधियों का केन्द्र रहा था। यह उस इलाके से बहुत दूर नहीं है जहां माओवादी नेता किशनजी को जबरदस्त मुठभेड़ के बाद सुरक्षा बलों ने मार गिराया था। 

इस इलाके में क्षय रोग (टीबी) का प्रकोप बेहद ज्यादा है। जो कि सीधे तौर पर गंभीर कुपोषण से जुड़ी बीमारी है। 28 वर्षीय मंगल शबर तपेदिक से पीड़ित थे। उनके परिवार का कहना है कि वह पिछले कुछ महीनों से दवा ले रहे थे और अचानक शनिवार को उसकी मृत्यु हो गई। यद्यपि जिला अधिकारी दावा करते हैं कि शबर समुदाय के लोग नियमित रुप से दवा नहीं लेते हैं। 

लेकिन बात सिर्फ मंगल शबर की ही नहीं है। हाल ही मरे सात लोगों में से एक 63 वर्षीय सुधीर शबर के पांव में सूजन की शिकायत थी। स्थानीय दैनिक आनंद बाजार पत्रिका की एक रिपोर्ट में भी सुधीर शबर की बहू ने कुछ ऐसा ही बताया था- "वह कुछ दिनों से पैरों और पेट में सूजन की शिकायत कर रहे थे। वह लालगढ़ अस्पताल में एक डॉक्टर से परामर्श लेने गए। अस्पताल के अधिकारियों ने उन्हें भर्ती करने से इंकार कर दिया। उन्हें कुछ दवाएं देकर वापस भेज दिया गया। जिसके बाद 7 नवंबर को 63 साल के इस व्यक्ति की मौत हो गई।

शबर समुदाय बंगाल के आदिवासी बहुत झारग्राम और पुरुलिया जिले के अलावा लालगढ़ इलाके में फैला हुआ है। इसके अधिकांश सदस्य भूख या तीव्र कुपोषण के शिकार है। क्षय रोग, पैरों और पेट की सूजन इस समुदाय के लोगों के लिए आम बीमारियां हैं। इनके लिए पेट भर भोजन एक विलासिता से कम नहीं है। 

सिर्फ गरीबी ही नहीं, भ्रष्टाचार ने भी यहां की हालत खराब कर दी है। एक ग्रामीण ने आरोप लगाया है कि सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) इन ग्रामीणों से वसूली करता है। आदिवासियों ने आरोप लगाया, "हमें इंदिरा आवास योजना (जिसे अब प्रधान मंत्री आवास योजना के नाम से जाना जाता है) के तहत घर बनाने के लिए 75000 रुपये मिले हैं, लेकिन हमें इसमें से टीएमसी को पार्टी फंड के लिए 3000 रुपये देना पड़ा।

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बीजेपी ने इन मौतों को लेकर ममता प्रशासन पर सवाल उठाए हैं और कहा है कि इन आदिवासियों की मौतों ने न केवल बंगाल बल्कि पूरे देश को चिंता मे डाल दिया है। बंगाल के बीजेपी अध्यक्ष दिलीप घोष ने माय नेशन को बताया, " पहली नजर में ही यह मौतें गंभीर कुपोषण और बेपनाह भूख का नतीजा दिखती हैं। इन मौतों पर राज्य भाजपा के महासचिव शायंतन बसु ने भी 'गहरी चिंता' व्यक्त की। बसु ने कहा, वह 'स्थिति की गंभीरता का आकलन करने के लिए जंगलखाश के गांव में फैक्ट फाइंडिंग टीम लेकर जाएंगे। 

लेकिन मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के लिए, यह एक नकली खबर है। उन्होंने घोषणा की, "राज्य में भूख की वजह से कोई भी मौत नहीं हुई है। बंगाल सरकार पिछड़े क्षेत्रों (लालगढ़ की तरह) के लिए विशेष देखभाल करती है। जिला मजिस्ट्रेट ने भी मौत के लिए ट्यूबरकुलोसिस और शराब पीने जैसी आदतों पर दोषारोपण किया। 
 

इससे पहले 2004 में भी भूख और कुपोषण के कारण कथित तौर पर छह आदिवासियों की मौत हो गई थी। तब से अब तक बंगाल सरकार का दृष्टिकोण ज्यादा नहीं बदला है। 


इस बीच, मृत श्रीनाथ शबर के बेटे नयन शबर, जो 7 साल की उम्र में अपने तम्बू में आगामी सर्दी का सामना करने के लिए तैयार हो रहे हैं। क्योंकि, वह जानता है, उसे जिंदगी की जंग एक और दिन लड़ने के लिए जिंदा रहने की जरूरत है।