AIIMS के आंकड़ों के मुताबिक अगर प्रदूषण ऐसे ही बढ़ता रहा, तो हर साल सिर्फ दिल्ली में 30 हजार लोगों की जान जाने की आशंका है।
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के लिए प्रदूषण एक बड़ी समस्या है। इसकी वजह से सबसे ज्यादा मुश्किल बूढ़े और बच्चों को होती है। AIIMS के आंकड़ों के मुताबिक अगर प्रदूषण ऐसे ही बढ़ता रहा, तो हर साल सिर्फ दिल्ली में 30 हजार लोगों की जान जाने की आशंका है।
इस समस्या के समाधान के लिए हाइड्रोजन ईंधन की संभावना पर काम चल रहा है। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर इस दिशा में कदम उठाए जा रहे हैं। इसके लिए सरकार ने भी हरी झंडी दिखा दी है। हालांकि, शुरुआत में दिल्ली में कुछ बसों को इस ईंधन से चलाकर देखा जाएगा। अगर यह प्रयोग सफल हुआ तो भविष्य में एच-सीएनजी(हाइड्रोजन कांप्रेस्ड नेचुरल गैस) ईंधन से ही बसें चलेगी।
इस योजना के तहत सीएनजी में अठारह(18) फीसदी हाइड्रोजन मिलाया जाएगा। जिसकी वजह से गाड़ियों से होने वाला प्रदूषण 70 फीसदी तक कम हो जाएगा। ।
सामान्य सीएनजी में मीथेन मुख्य गैस होती है। इसमें मिलाए जाने वाले हाइड्रोजन का सबसे बड़ा लाभ यह है कि र्इंधन में प्रति ईकाई द्रव्यमान ऊर्जा इस तत्व में सबसे ज्यादा है। हाइड्रोजन जलने के बाद पानी बन जाता है। जो पर्यावरण के लिए बेहद अनुकूल है।
एच-सीएनजी तैयार करने के लिए बनाने के लिए हाइड्रोजन और सीएनजी को मिश्रित किया जाता है। इसके लिए हाइड्रोजन का उत्पादन करना होता है। हालांकि, हाइड्रोजन के उत्पादन में लागत सीएनजी की तुलना में कहीं ज्यादा है। लेकिन इस ईंधन के फायदे बहुत ज्यादा हैं। इसके लिए देश में मौजूदा सीएनजी के बुनियादी ढांचे का इस्तेमाल किया जा सकता है।
इस ईंधन के इस्तेमाल से इसके न केवल वाहनों की क्षमता बढ़ेगी, बल्कि सीएनजी के मुकाबले प्रदूषण का उत्सर्जन भी कम होगा।
एच-सीएनजी के इस्तेमाल से वाहनों में नाइट्रोजन ऑक्साइड के उत्सर्जन में 50 फीसद तक कमी आएगी। इसके अलावा कार्बन मोनो ऑक्साइड के उत्सर्जन में भी भारी कमी होगी।
इस ईंधन के प्रयोग से वाहनों का माइलेज भी तीन से चार फीसद तक बढ़ जाएगा। खास बात यह है कि इसके लिए वाहनों के इंजन में किसी बड़े बदलाव की भी जरूरत नहीं होती।
एक अध्ययन के मुताबिक अगर छोटी गाडि़यों में H-CNG का इस्तेमाल किया जाए तो कार्बन मोनो ऑक्साइड के उत्सर्जन 45 फीसद की कमी आएगी, जबकि हाइड्रोकार्बन की उत्सर्जन में 35 फीसदी की कमी होगी। वहीं यदि इस ईंधन का उपयोग बड़ी गाडि़यों में किया जाए कार्बन मोनो ऑक्साइड के उत्सर्जन में 28 से 30 फीसद की कमी आ जाएगी।
एच-सीएनजी का प्रयोग दुनिया के कई विकसित मुल्कों में भी हो रहा है। इसे एक स्वच्छ और भविष्य के वैकल्पिक ईंधन के रूप में देखा जा रहा है। हालांकि, विदेशों में भी यह ईंधन पायलट प्रोजेक्ट के रूप में चल रहा है। इसकी तकनीक काफी महंगी है, इसके चलते यह ईंधन उस तरह से उपयोग में नहीं लाया जा रहा है।
एच-सीएनजी प्रोजेक्ट की सबसे बड़ी कमी हाइड्रोजन का महंगा होना है। लेकिन बड़े पैमाने पर उत्पादन किया जाए, तो यह तकनीक भी सस्ती हो जाएगी। कई तरह की चुनौतियों के बावजूद यह भविष्य का ईंधन साबित हो सकता है।
Last Updated Sep 9, 2018, 12:11 AM IST