लोकसभा चुनाव के लिए पश्चिम बंगाल भारतीय जनता पार्टी और राज्य की सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस के बीच कुरूक्षेत्र बना हुआ है। लेकिन इस चुनावी रण में ममता ने एक तीर से दो निशाने साधने की कोशिश की है। पहला तो ममता ने अपने अल्पसंख्यक वोट बैंक को और ज्यादा मजबूत करने की कोशिश की है, वहीं पूरे विपक्ष को एकजुट खुद को सर्वमत नेता बनने की रणनीति बनाई है।

पश्चिम बंगाल में लोकसभा चुनाव बीजेपी और टीएमसी के लिए काफी अहम हैं। बीजेपी का राज्य में जिस तरह के प्रभाव बढ़ा है उससे ममता बनर्जी घबराई हुई हैं। इसका सबसे बड़ा सबूत राज्य में हुए पंचायत चुनाव हैं, जहां बीजेपी उभर कर दूसरे नंबर की पार्टी बन गयी थी। लोकसभा चुनाव में बीजेपी द्वारा किए जा रहे प्रचार में भी बीजेपी की रैलियों में टीएमसी से ज्यादा भीड़ देखने को मिल रही है।

अगर देखें पिछले कुछ सालों से बीजेपी का कैडर राज्य में मजबूत होता जा रहा है। लिहाजा उम्मीद की जा रही है कि बीजेपी राज्य में अपने आंकड़े को डबल डिजिट तक पहुंचा देगी। लोकसभा चुनाव में अगर बीजेपी ने ज्यादा सीटें जीती तो डेढ़ साल बाद होने वाले राज्य के विधानसभा चुनाव में ममता की कुर्सी हिल सकती है। लिहाजा ममता बीजेपी का ज्यादा से ज्यादा विरोध कर अपनी स्थिति मजबूत करना चाहती है।

बहरहाल ममता ने पूरे विपक्ष की लड़ाई को खुद की लड़ाई बना दिया है। वह विपक्ष की एकमात्र ऐसी नेता बन गयी हैं। जिसके पीछे पूरा विपक्ष खड़ा है। लिहाजा ममता इसके जरिए विपक्ष के सर्वमान्य नेता के तौर पर खुद को स्थापित करना चाहती हैं। फिलहाल राज्य में लोकसभा चुनाव की लड़ाई में कांग्रेस और कई सालों तक सत्ता में रहने वाले वाम दल नदारद हैं।

कहा तो ये भी जा रहा है कि वामदलों का वोटबैंक बीजेपी की तरफ खिसक रहा है। जो ममता के लिए खतरे की घंटी है। ममता पश्चिम बंगाल के जरिए अपने को राष्ट्रीय राजनीति में विपक्ष का अगुआ बनाना चाहती हैं। अगर देखें जैसे जैसे लोकसभा चुनाव के विभिन्न चरणों का मतदान हुआ, ममता बीजेपी पर उतनी ही आक्रामक होने लगी। हालांकि राष्ट्रीय राजनीति में ममता का उभार कांग्रेस के लिए भी नुकसानदेह है।

लेकिन लोकसभा चुनाव के बाद बनने वाली स्थिति को लेकर कांग्रेस फिलहाल खामोश है। अगर देखें ममता ने जो रणनीति अपने को स्थापित करने के लिए बनायी थी, वह उसमें काफी हद तक सफल भी हुई है। क्योंकि ममता की लड़ाई में राहुल गांधी से लेकर बीएसपी प्रमुख मायावती तक ज्यादातर विपक्षी दल उसके साथ खड़े दिखाई दे रहे हैं। इसी राजनीतिक सहानुभूति के जरिए ममता ने खुद को विपक्ष के नेता के दौर पर स्थापित करने की कोशिश की है।

अगर देखें पिछले पांच साल तक पूरा विपक्ष बिखरा दिखा, लेकिन बंगाल के मुद्दे पर ममता उन्हें एकजुट करने में सफल हुई। हालांकि ये तो तय है कि राज्य में ममता को सीटों को लेकर नुकसान तो जरूर होगा। लेकिन अपनी दूरगामी रणनीति के तहत ममता विपक्ष की नेता के तौर पर स्थापित हो गयी है।