आतंकवाद को बढ़ावा देने वाले पाकिस्तान में आजादी के लिए आवाज उठा रहे पश्तून नेताओं ने संसदीय और लोकतांत्रित प्रक्रियाओं का बहिष्कार करने का ऐलान किया है। उनका कहना है कि पाकिस्तान की नेशनल असेंबली एक रबर स्टैंप की तरह काम कर रही है। पाकिस्तान की सियासत में राजनेताओं का दुरुपयोग किया जा रहा है। 

यह घोषणा पश्तून तहफ्फुज मूवमेंट (पीटीएम) की यूरोप इकाई की ओर से की गई है। संगठन ने साथ ही पश्तून नेता माशेर मंजूर अहमद पश्तीन के पीटीएम को संसदीय राजनीति से बाहर रखने के फैसले का समर्थन किया है। 

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पीटीएम यूरोप की ओर से कहा गया है, ‘वे संसदीय राजनीति में शामिल होने को सिरे से खारिज करते है। अगर पीटीएम संसदीय राजनीति में शामिल हुई तो यह राष्ट्रीय आपदा जैसा होगा। यह पश्तूनों के आंदोलन पर विपरीत असर डालेगा। यह आंदोलन जीवन के अलग-अलग क्षेत्रों में काम करने वाले पश्तूनों को एक साथ लाया है।’

पाकिस्तान से पश्तूनों की आजादी के लिए आंदोलन चलाने वालों की पीटीएम मुखर आवाज है। यह संगठन ‘कई दशकों से पाकिस्तान में पश्तूनों पर हो रहे अत्याचारों और मानवाधिकार के उल्लंघन के खिलाफ काम कर रहा है।’

इस बीच, पश्तून लगातार अपनी आजादी की मांग को लेकर मुखर हैं। पश्तूनों के लिए काम करने वाले कार्यकर्ता और प्रोफेसर अरमान लुनी की हत्या के विरोध में अपनी तरह के पहले ‘पश्तून लांग मार्च’ की सफलता के बाद एक और विरोध मार्च निकालने की तैयारी हो रही है। इसे ‘पश्तून लांग मार्च 2’ नाम दिया गया है। पश्तून पाकिस्तान सरकार और आईएसआई को सीधी चुनौती दे रहे हैं। 

वहीं दूसरी तरफ, पाकिस्तान में रहने वाले शियाओं ने अलग मुल्क की मांग उठानी शुरू कर दी है। पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत के क्वेटा में एक फलों के बाजार में अल्पसंख्यक हजारा समुदाय की विरोध रैली में हुए बम धमाके में 24 लोगों की जान चली गई। इस धमाके की जिम्मेदारी पाकिस्तानी तालिबान और सुन्नी आतंकी समूह इस्लामिक स्टेट ने संयुक्त रूप से ली। 

क्वेटा पाकिस्तान की ईरान से लगती सीमा पर स्थित है।