48 घंटे पहले ही कांग्रेस कार्यसमिति ने राहुल गांधी को 2019 में नरेंद्र मोदी के खिलाफ प्रधानमंत्री पद के चेहरे के तौर पर आगे करने का फैसला किया था। लेकिन पार्टी के शीर्ष सूत्रों की मानें तो अगले आम चुनाव में भाजपा के बहुमत से पीछे रह जाने की स्थिति में राहुल महागठबंधन के प्रधानमंत्री के तौर पर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी या बसपा सुप्रीमो मायावती का नेतृत्व स्वीकार करने को तैयार हैं।

कर्नाटक विधानसभा चुनाव में प्रचार के दौरान राहुल गांधी ने पहली बार पीएम पद को लेकर अपनी इच्छा जाहिर की थी। उन्होंने कहा था कि अगर कांग्रेस अगले लोकसभा चुनावों में सबसे बड़े दल के रूप में उभरती है तो वह प्रधानमंत्री बनेंगे, लेकिन लगता है कि राहुल के उस बयान के बाद कांग्रेस के लिए गंगा और कावेरी में काफी पानी बह चुका है। कांग्रेस अध्यक्ष के अब दूसरे दल के नेता के नेतृत्व को स्वीकार करने की बात हो रही है। 

क्या मान लिया जाए कि कांग्रेस ने पहले ही हार मान ली है? इस पर कांग्रेस के सूत्र कहते हैं कि पार्टी हर हाल में भाजपा को 220-230 सीट पर रोकना चाहती है। पार्टी की कोशिश यूपी, बिहार और बंगाल में किसी भी तरह से गठबंधन को मूर्त रूप देने की है, ताकि मोदी के विजयरथ को बहुमत से पहले ही रोका दिय जाए। कांग्रेस को लगता है कि ऐसे हालात बनने पर महागठबंधन अगली सरकार बना सकता है। 

सूत्रों के अनुसार, कांग्रेस ने इस बात के संकेत दिए हैं कि संसद के मानसून  सत्र में राफेल विमान सौदा सरकार पर हमले के केंद्र में ही होगा। खास बात यह है कि 'माय नेशन' ने 24 जुलाई को एक रिपोर्ट के आधार पर खुलासा किया कि मोदी सरकार ने फ्रांस से राफेल विमान को लेकर जो करार किया है, उसमें मनमोहन सरकार के मुकाबले भारत को प्रत्येक लड़ाकू विमान 59 करोड़ रुपये सस्ता मिल रहा है। 

सूत्रों के अनुसार, कांग्रेस संसद के अंदर और बाहर दोनों ही जगह राफेल सौदे के गोपनीयता करार को लेकर अपना विरोध जारी रखेगी। 

क्या कांग्रेस प्रियंका गांधी को 2019 के चुनाव में अपने भाई के साथ बड़ी भूमिका निभाते देखना चाहती है? उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार, राहुल ने खुद प्रियंका से राजनीति में सक्रियता दिखाने का अनुरोध किया है। हालांकि प्रियंका साफ कर चुकी हैं कि उनके लिए पारिवारिक प्रतिबद्धताएं राजनीति से पहले आती हैं। 

'माय नेशन' को भरोसेमंद सूत्रों से पता चला है कि अगले चार से पांच महीने में कांग्रेस में राष्ट्रीय स्तर पर संगठन में बड़ा बदलाव हो सकता है। पिछले ही हफ्ते कांग्रेस कार्यसमिति का पुनर्गठन किया गया था। इसमें राहुल की छाप साफ देखने को मिली थी। 

अब जबकि आम चुनावों को एक साल से भी कम का समय रह गया है, कांग्रेस के अंदर भी लाख टके का सवाल यही उठ रहा है कि क्या ममता और मायावती का नेतृत्व स्वीकार कर पार्टी पहले ही हार मानने जा रही है या नए राजनीतिक माहौल को देखते हुए यह व्यावहारिक रवैया अपना गया है, जहां देश का सबसे बड़ा दल बड़े भाई की भूमिका में नहीं है।