नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड हाइकोर्ट के फैसले पर नाराजगी भी जताई। कोर्ट ने केंद्र सरकार की अपील पर हाइकोर्ट के फैसले को रद्द करते हुए कहा कि हाइकोर्ट का यह काम नही है कि वह कोई स्कीम तैयार करे। 

हाइकोर्ट ने अपने आदेश में अपनी तरफ से स्कीम तैयार करते हुए अस्थायी मजदूरों की सेवाओं को नियमित कर दिया था और लेबर लॉ के तहत इन कैजुअल पेड लेबर को स्थाई कर्मचारियों वाले फायदे व सुविधा दे दी थी। साथ ही सरकार को आदेश दे दिया था कि इस स्कीम को लागू करे। जिसे केंद्र सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। 

इस मामले में कुछ ट्रेड यूनियन ने हाइकोर्ट में याचिका दायर करते हुए मांग की थी कि उत्तराखंड राज्य में चल रहे बीआरओ के प्रोजेक्ट पर लंबे समय से काम करने वाले अस्थायी मजदूरों को भी नियमित किया जाए। 

बीआरओ चार धाम यात्रा के यात्रियों की सुविधा के लिए सड़के बनाने का काम कर रहा है। याचिकाकर्ता के मुताबिक यह लेबर केंद्र सरकार के लिए कई सालों से कम कर रहे हैं और अपनी सेवाएं दे रहे हैं, लेकिन इनको सरकारी कर्मचारियों की तरह नियमित नहीं किया जा रहा है। न ही इनको सरकारी कर्मचारियों को उपलब्ध कराए जाने वाली किसी भी तरह की कोई सुरक्षा दी जा रही है। 

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि ऐसी तरह के एक अन्य मामले में ऐसा ही मुद्दा उठाया गया था, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया था कि वह बीआरओ के द्वारा चलाए जा रहे प्रोजेक्ट पर काम करने वाले कैजुअल लेबर की सेवाओं को नियमित करने के लिए उचित योजना बनाएं। 

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी साफ कर दिया है कि हाइकोर्ट ने अपने आदेश में इस बात की अनदेखी की है कि कोई भी स्कीम बनाना कोर्ट का काम नही है। बल्कि यह अधिकार सरकार के पास है।

 किसी मामले के तथ्यों को देखते हुए हाइकोर्ट संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत अपने असाधारण अधिकार का प्रयोग करते हुए सरकार को यह निर्देश दे सकती है कि वह उचित स्कीम बनाने पर विचार करे।