कभी कांग्रेस पार्टी का रूख मीडिया में रखने वाली राष्ट्रीय प्रवक्ता प्रियंका चतुर्वेदी ने शुक्रवार को पार्टी को अलविदा कह दिया है।  प्रियंका तो एक बानगीभर है जबकि सच्चाई ये है कि पिछले एक साल के दौरान कांग्रेस पार्टी छोड़ने वालों की फेहरिस्त काफी लंबी है। पूरब से लेकर पश्चिम तक और उत्तर से लेकर दक्षिण तक कई नेताओं ने पिछले तीन महीनों में कांग्रेस का हाथ छोड़कर अन्य दलों का दामन थामा है। कई नेता तो ऐसे हैं जिन्होंने अपने जीवन का आधा दशक पार्टी को दिया। लेकिन आज नए नेतृत्व द्वारा तवज्जो न मिलने के कारण पार्टी को अलविदा कहना ही बेहतर समझा।

असल में कांग्रेस छोड़ने की कहानी 2014 के लोकसभा चुनाव से ही शुरू हो गयी थी। लेकिन राहुल गांधी द्वारा पार्टी की कमान संभालने के बाद नेताओं का पार्टी से मोहभंग कुछ ज्यादा ही हुआ। लेकिन लोकशभा 2019 के शुरू होते ही कांग्रेस को छोड़ने वालों का तो तांता ही लग गया।

महाराष्ट्र

प्रियंका चतुर्वेदी को कांग्रेस का मीडिया में चेहरा माना जाता था। मीडिया में वह पार्टी की राय मजबूती के साथ रखती थी। लेकिन पार्टी ने उन्हीं नेताओं को फिर से वापस ले लिया, जिन्होंने प्रियंका से बदसलूकी की थी। इससे नाराज प्रियंका ने पार्टी छोड़कर शिवसेना का दामन थाम लिया। हालांकि ऐसा कहा जा रहा कि प्रियंका मुंबई से टिकट चाहती थी, लेकिन पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दिया। मामला कुछ भी हों, लेकिन प्रियंका के जाने से पार्टी को नुकसान जरूर हुआ है। लेकिन इससे पार्टी के भीतर गुटबाजी भी देखने को मिली है। 

प्रियंका चतुर्वेदी से पहले पूर्व केंद्रीय मंत्री प्रतीक पाटिल ने पार्टी से इस्तीफा दिया था। पाटिल कांग्रेस के कद्दावर नेता और दिवंगत मुख्यमंत्री वसंतदादा पाटिल के पोते हैं। पूर्व केन्द्रींय कोयल राज्यमंत्री पाटिल का आरोप है कि कांग्रेस पार्टी वसंतदादा की विरासत खत्म करने की साजिश कर रही है।

तेलंगाना

तेलंगाना में कांग्रेस का बड़ा चेहरा माना जाने वाले पूर्व ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी के सचिव एवं वरिष्ठ नेता पी. सुधाकर रेड्डी ने भी पार्टी से किनारा कर लिया है। उन्होंनें पार्टी पर टिकट के लिए पैसा मांगने का आरोप लगाते हुए पार्टी से अलविदा कहा है। रेड्डी ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को भेज कर कहा कि कांग्रेस की परंपरा, मूल्य और सिद्धांत बदल गए हैं।

रेड्डी ने आरोप लगाया कि बिचौलियों के कारण पार्टी हाईकमान तक बात नहीं पहुंच पाती है। यही नहीं पिछले तीन महीनों के दौरान तेलंगाना में कांग्रेस के कई नेताओं ने के. चंद्रशेखर राव की पार्टी और आंध्र प्रदेश में जगन मोहन रेड्डी की पार्टी का दामन थामा है। 

मेघालय

राज्य में पांच बार मेघालय के मुख्यमंत्री रहे डोनवा देथवेल्सन लपांग ने भी पार्टी से इस्तीफा दे दिया है। लपांग ने पार्टी छोड़ते वक्त कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को पत्र लिखकर अपनी नाराजगी जताई। लपांग ने एआईसीसी पर वरिष्ठ एवं बुजुर्ग लोगों को दरकिनार करने का आरोप लगाया था। गौरतलब है कि लपांग पहली बार 1992 में मेघालय के मुख्यमंत्री बने थे और इसके बाद 2003,2007 और 2009 में मुख्यमंत्री बने। 

ओडिशा

ओडिशा में कई सत्ता का स्वाद चख चुकी कांग्रेस अब राज्य में तीसरे नंबर की पार्टी बन गयी है। राज्य में पूर्व केंद्रीय मंत्री चंद्रशेखर साहू, ओडिशा प्रदेश कांग्रेस कमिटी के सचिव विक्रम कुमार पांडा ने पार्टी से किनारा कर लिया है। यही इन नेताओं के साथ ही राज्य के कई जिलों के स्थानीय नेताओं ने पार्टी को अलविदा कहा।

पंजाब

पंजाब की राजनीति में कांग्रेस के कद्दावर नेताओं में शुमार पूर्व सांसद जगमीत बराड़ ने कांग्रेस से अलविदा कह कर शिरोमणि अकाली दल (शिअद) का दामन थाम लिया है। बराड़ ने मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह पर बदले की राजनीति करने का आरोप लगाते हुए केन्द्रीय नेतृत्व पर भी सवाल उठाए हैं। असल में बराड़ के पिता अकाली दल के बड़े नेता थे, लेकिन 1977 में उन्होंने पार्टी छोड़ दी। बराड़ दो बार फरीदकोट से सांसद भी रह चुके हैं।

गुजरात

पिछले दिनों गुजरात में कई नेताओं ने कांग्रेस को अलविदा कहा। कांग्रेस के विधायक अल्पेश ठाकोर ने कुछ दिन पहले ही कांग्रेस इस्तीफ़ा दिया है। अल्पेश ठाकोर के साथ ही दो कांग्रेस विधायकों ने पार्टी से किनारा किया। जिसे पार्टी के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है। 

उत्तर प्रदेश

राज्य में कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं में शुमार व पूर्व मंत्री डॉ. अम्मार रिजवी ने पार्टी से इस्तीफा देकर सबको चौंका दिया। रिजवी पार्टी में सबसे बुजुर्ग नेता माने जाते थे। वह कांग्रेस सरकारों में मंत्री भी रहे। माना जा रहा है कि डॉ. अम्मार रिजवी सीतापुर से टिकट न मिलने की वजह से नाराज थे। पार्टी छोड़ने के वक्त रिजवी ने कहा कि उन्होंने 53 वर्ष तक कांग्रेस पार्टी की सेवा की। लेकिन आज पार्टी ने उन्हें किनारे कर दिया है और दलबदलुओं को तवज्जो दी जा रही है। 

उत्तराखंड

उत्तराखंड में कांग्रेस का मुस्लिम चेहरा माने जाने वाले पूर्व प्रदेश प्रवक्ता और पूर्व दर्जाधारी मंत्री फुरकान अली ने पार्टी से इस्तीफा देकर शिवपाल सिंह की अगुवाई वाली प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) का दामन थाम लिया है। वह हरिद्वार लोकसभा क्षेत्र से लोकसभा चुनाव लड़ेंगे।
बिहार

बिहार में कांग्रेस के बड़े नेताओं में शुमार और राष्ट्रीय प्रवक्ता शकील अहमद ने चार दिन पहले ही टिकट न मिलने के कारण पार्टी को अलविदा कह दिया है। शकील अहमद मधुबनी से निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं। जबकि किसी दौर में वह कांग्रेस आलाकमान के करीबी नेताओं में माने जाते थे।

शकील अहमद 1998 और 2004 में मधुबनी सीट से लोकसभा सदस्य रहे थे और वे 1985, 1990 और 2000 में विधायक चुने गए थे।