कला, विज्ञान, गणित और ऐसे अनगिनत क्षेत्र हैं जिनमें भारतीय योगदान अनुपम है।आधुनिक युग के ऐसे बहुत से आविष्कार हैं, जो प्राचीन भारतीय शोधों के निष्कर्षों पर आधारित हैं। जिसमें शहरों के ड्रेनेज सिस्टम से लेकर रॉकेट साइंस तक है। 

प्राचीन भारतीयों ने एक ओर जहां पिरामिडनुमा मंदिर बनाए तो दूसरी ओर स्तूपनुमा मंदिर बनाकर दुनिया को चमत्कृत कर दिया। आज दुनियाभर के धर्म के प्रार्थना स्थल इसी शैली में बनते हैं। तब हिन्दू मंदिरों को देखना सबसे अद्भुत माना जाता था। मौर्य, गुप्त और विजयनगरम साम्राज्य के दौरान बने हिन्दू मंदिरों की स्थापत्य कला को देखकर हर कोई दांतों तले अंगुली दबाए बिना नहीं रह पाता।

अजंता-एलोरा की गुफाएं हों या वहां का विष्णु मंदिर। कोणार्क का सूर्य मंदिर हो या जगन्नाथ मंदिर या कंबोडिया के अंकोरवाट का मंदिर हो या थाईलैंड के मंदि, उक्त मंदिरों से पता चलता है कि प्राचीन भारत में किस तरह के मंदिर बनते होंगे। समुद्र में डूबी कृष्ण की द्वारिका के अवशेषों की जांच से पता चलता है कि आज से 5,000 वर्ष पहले जब पूरी दुनियाँ जंगलों में नंगी घूमती थी तब भी हिन्दुओं के मंदिर और महल अत्यंत भव्य होते थे और हिन्दू सभ्यता, संस्कृति एवं ज्ञान से परिपूर्ण ।

भारत के प्राचीन ग्रंथों में कहीं पर भी अन्यायपूर्ण युद्धों की प्रशंसा नहीं की गयी है। लोग साधारणता शान्तिपूर्ण जीवन जीने में विश्वास रखते थे। चारों ओर न्याय, वसुधैव कुटुम्बकम, सुख, शान्ति एवं ज्ञान का बोलबाला था।

परन्तु आठवीं सदी में दुनियाँ की कई सभ्यताओं एवं संस्कृतियों को रौंदता, बर्बाद करता इस्लाम आखिर सोने की चिड़िया कहलाने वाले इस भूभाग पर भी आ धमका और इस पूरे क्षेत्र को धार्मिक एवं सांस्कृतिक रूप से तहस-नहस कर डाला। समस्त ज्ञान-विज्ञान एवं उस समय के भव्य मन्दिरों को नष्ट कर दिया गया।तक्षशिला, नालन्दा एवं विक्रमशिला जैसे विश्वविद्यालयों को नष्ट कर जला दिया गया। 

उल्लेखों के अनुसार उनमें प्राचीन भारतीय ज्ञान-विज्ञान, कला, संस्कृति, दर्शन, खगोलविज्ञान आदि से सम्बन्धित इतनी अधिक संख्या में पुस्तकें थीं जो कई महीनों तक जलती रहीं और विश्व ने मानव-सभ्यता की इस लिपिबद्ध अनमोल धरोहर को सदा के लिए खो दिया।

इसके साथ ही दुनियाँ की सबसे प्राचीन, सभ्य एवं समृद्ध हिन्दू सभ्यता का पराभव काल आरम्भ हुआ जो कालांतर में मुगल लुटेरों से लेकर अंग्रेजों के शासनकाल तक चलता रहा।

आज देश के स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे वामपंथी इतिहासकारों के द्वारा लिखा गया भारत का नकली इतिहास पढ़ते हैं जिसमें उन्हें बताया जाता है मानों केवल मुगलों के शासन में ही भारत का इतिहास निहित है। उसके पहले का स्वर्णिम काल केवल मनगढ़ंत बातें हैं। मैकाले की शिक्षा पद्धति के कारण छात्र अपने ही अतीत से दूर हो गये हैं, एवं अपनी ही संस्कृति का उपहास करते हैं। परन्तु अब झूठ से पर्दा उठने लगा है। अब आशा बँधने लगी है कि भारत अपने खोये गौरव को पुन: प्राप्त करेगा।

वास्तविकता तो यह है कि हमारी अतिप्राचीन एवं अनादि सनातन धर्म से प्रेरित होकर एवं इसी पर मूलाधारित बाद में आने वाली कोई भी अन्य धार्मिक व्यवस्था हमारे आसपास भी नहीं ठहरती। यदि अनुभव, श्रेष्ठता एवं उत्पत्ति काल के सन्दर्भ में देखें तो संसार के अन्य धर्म हमारे सनातन धर्म के पोते, पड़पोते, छड़पोते आदि की भी जगह नहीं ले सकते।

तो हम सब मिलकर इस बात का गर्व क्यों ना करें कि हम उस हिन्दू संस्कृति, उस सनातनी संस्कृति के मानने वाले हैं जिसने जंगलों में नंगी घूमती दुनियाँ को सभ्यता सिखायी, समाजिक व्यवस्था सिखायी, जीने का तरीका सिखाया। और सदियों से अनगिनत अत्याचार सहकर भी हमारे पूर्वजों ने इस महान धर्म को नहीं छोड़ा और हम आज भी उस महान परम्परा का एक हिस्सा बने हुए हैं।