नई दिल्ली: भारतीय आध्यात्मिक परंपरा में ध्यान का बहुत ही महत्व है. ध्यान से वर्तमान को देखने और समझने में मदद मिलती है. वर्तमान में हमारे सामने जो लक्ष्य है उसे प्राप्त करने की प्रेरणा और क्षमता भी ध्यान से प्राप्त होती है. 

ध्यान को योग की आत्मा कहा जाता है. प्राचीन काल में योगी योग क्रिया द्वारा अपनी उर्जा को संचित कर आत्मिक एवं पारलौकिक ज्ञान और दृष्ट प्राप्त करते थे. वास्तव में ध्यान योग का महत्वपूर्ण तत्व है जो तन, मन और आत्मा के बीच लयात्मक सम्बन्ध बनाता है और उसे बल प्रदान करता है. हमारे मन में एक साथ कई विचार चलते रहते हैं. मन में दौड़ते विचारों से मस्तिष्क में कोलाहल सा उत्पन्न होने लगता है जिससे मानसिक अशांति पैदा होने लगती है. 

ध्यान अनावश्यक विचारों को मन से निकालकर शुद्ध और आवश्यक विचारों को मस्तिष्क में जगह देता है. ध्यान का नियमित अभ्यास करने से आत्मिक शक्ति बढ़ती और मानसिक शांति की अनुभूति होती है. ध्यान का अभ्यास करते समय शुरू में 5 मिनट भी काफी होता है. अभ्यास से 20-30 मिनट तक ध्यान लगा सकते हैं. 

आज की भाग दौड़ भरी जिन्दग़ी में मन को एकाग्र कर पाना और ध्यान लगाना बहुत ही कठिन है. मेडिटेशन यानी ध्यान की क्रिया शुरू करने से पहले वातावरण को इस क्रिया हेतु तैयार कर लेना चाहिए. ध्यान की क्रिया उस स्थान पर करना चाहिए जहां शांति हो और मन को भटकाने वाले तत्व मौजूद नहीं हों. ध्यान के लिए एक निश्चित समय बना लेना चाहिए इससे कुछ दिनों के अभ्यास से यह दैनिक क्रिया में शामिल हो जाता है फलत: ध्यान लगाना आसान हो जाता है. 

आसन में बैठने का तरीका ध्यान में काफी मायने रखता है. ध्यान की क्रिया में हमेशा सीधा तन कर बैठना चाहिए. दोनों पैर एक दूसरे पर क्रास की तरह होना चाहिए और आंखें मूंद कर नेत्र को मस्तिष्क के केन्द्र में स्थापित करना चाहिए. इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि इस क्रिया में किसी प्रकार का तनाव नहीं हो और आपकी आंखें स्थिर और शांत हों. यह क्रिया आप भूमि पर आसन बिछाकर कर सकते हैं अथवा पीछे से सहारा देने वाली कुर्सी पर बैठकर भी कर सकते हैं. 

योग में सांस की गति को आवश्यक तत्व के रूप में मान्यता दी गई है. सांस लेने और छोड़ने की क्रिया द्वारा ध्यान को केन्द्रित करने में मदद मिलती है. ध्यान करते समय जब मन अस्थिर होकर भटक रहा हो उस समय श्वसन क्रिया पर ध्यान केन्द्रित करने से धीरे धीरे मन स्थिर हो जाता है और ध्यान केन्द्रित होने लगता है. ध्यान करते समय गहरी सांस लेकर धीरे धीरे से सांस छोड़ने की क्रिया से काफी लाभ मिलता है. 

ध्यान करते समय अगर आप उस स्थान को अपनी अन्तर्दृष्टि से देखने की कोशिश करते हैं जहां जाने की आप इच्छा रखते हैं अथवा जहां आप जा चुके हैं और जिनकी खूबसूरत एहसास आपके मन में बसा हुआ है तो ध्यान आनन्द दायक हो जाता है. इससे ध्यान मुद्रा में बैठा आसान होता एवं लम्बे समय तक ध्यान केन्द्रित करने में भी मदद मिलती है. अपनी अन्तर्दृष्टि से आप मंदिर, बगीचा, फूलों की क्यारियों एवं प्राकृतिक दृश्यों को देख सकते हैं.