Caste System
(Search results - 6)NewsAug 26, 2019, 6:43 PM IST
दलित से बेटी की शादी नहीं थी मंजूर, धोखे से बुलाकर बना दिया विधवा
भारतीय समाज आज भी जाति पांति के कुचक्र में उलझा हुआ है। जिसके कारण एक दलित युवक की बड़ी बेरहमी से हत्या कर दी गई। उसका गुनाह था कि उसने जिस लड़की से शादी की थी वह ओबीसी समुदाय की थी।
NewsAug 3, 2019, 9:46 PM IST
बेटी-दामाद को फंसाने के लिए महिला ने रच डाली अपने ही गैंगरेप की साजिश
कथित जातीय अहंकार के लिए कोई इंसान कितना ज्यादा गिर सकता है इसकी मिसाल है यह घटना। जिसमें एक महिला अपने बेटी के दूसरी जाति में शादी कर लेने से इतनी नाराज होती है कि अपने ही गैंगरेप की साजिश रच डालती है।
NewsJul 4, 2019, 7:51 AM IST
'जजों की नियुक्ति में होता है परिवारवाद और जातिवाद', जज ने पीएम मोदी को पत्र लिखकर लगाया आरोप
जस्टिस रंगनाथ ने लिखा है 'न्यायपालिका वंशवाद और जातिवाद से ग्रसित है। जहां जजो के परिवार से होना ही अगला जज होना सुनिश्चित करता है। अधीनस्थ न्यायलय (सबोर्डिनेट कोर्ट) के जजों को अपनी योग्यता सिद्ध करने पर चयनित होने का अवसर मिलता है। लेकिन हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के न्यायधीशों की नियुक्ति का हमारे पास कोई निश्चत मापदंड नहीं है। केवल परिवारवाद और जतिवाद से ग्रसित नियुक्तियां की जाती हैं।
ViewsMay 28, 2019, 7:56 PM IST
वीर सावरकर के रास्ते पर चलते तो जातिमुक्त होता भारत
महान स्वतंत्रता सेनानी वीर सावरकर का आज जन्मदिन है। उनका जन्म 28 मई 1883 को हुआ था। वह जितने बड़े राष्ट्रवादी थे उतने ही महान समाज सुधारक भी। उन्होंने हिंदू समाज के विघटन के कारण जाति व्यवस्था को बहुत पहले ही पहचान लिया था। यदि सावरकर की नीतियों पर देश चलता तो आज छूत-अछूत, जाति पांति की गुलामी से हिंदू समाज मुक्त रहता।
ViewsApr 14, 2019, 3:46 PM IST
बाबा साहेब अंबेडकर की आर्थिक नीति से बनता समावेशी भारत
वेस्टर्न फिलॉसफी में फ्रेडरिक हीगल भौतिकवाद का द्वंद प्रतिपादित करते हैं। आगे चलकर कार्ल मार्क्स इस द्वंद को सिर के बले खड़ा कर देते हैं। बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर ने भी महात्मा गांधी के आर्थिक विचारों को सिर के बल खड़ा करने की बात कही।
ViewsApr 14, 2019, 11:27 AM IST
जानिए कैसे उपनिषदों से प्रभावित थे बाबा साहब अंबेडकर के विचार
जात-पात तोड़क मण्डल में दिये गये अपने प्रसिद्ध भाषण में डॉ.अम्बेडकर ने सुझाव दिया था कि हिंदुओं को स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के आदर्शों पर आधारित समाज के निर्माण के लिए अपने शास्त्रों से बाहर कहीं से प्रेरणा लेने की कोई आवश्यकता नहीं है। उन्हें इन मूल्यों के लिए उपनिषदों का अध्ययन करना चाहिए। जिसके बाद मैंने बाद में यह कोशिश की कि पता करूं कि क्या उन्होंने बाद में इस विषय पर कहीं लिखा है। लेकिन उनके कुछ भाषणों को छोड़कर इसका जिक्र कहीं नहीं मिला ।