कहां तो तय था चरागा हर एक घर के लिए, कहां चराग मयस्सर नहीं शहर के लिए। शायर डॉ. दुष्यंत कुमार की यह रचना बाराबंकी के एक प्राथमिक विद्यालय पर बिलकुल सटीक बैठ रही है। जहां बच्चे हैं, पाठ्य पुस्तकें हैं और इन्हें तालीम देने के लिए शिक्षक भी हैं। अगर नहीं है तो वह जगह जहां यह बच्चे सुरक्षित होकर शिक्षा ले सकें।