नई दिल्ली: भारत के लिए सीमा पार आतंकवाद के खिलाफ संघर्ष में मसूद अजहर को वैश्विक आतंकवादी घोषित किया जाना एक असाधारण सफलता के रुप में याद किया जाएगा। 1 मई को दिल ढलने के साथ संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि सैयद अकबरुद्दीन ने ट्वीट किया कि 
‘छोटे, बड़े सभी एक साथ आ गए। मसूद अजहर संयुक्त राष्ट्र की प्रतिबंधित सूची में एक आतंकवादी के रूप में घोषित। सभी के समर्थन के लिए हम आभारी हैं’। 
इस ट्वीट के साथ ही साफ हो गया कि पिछले 10 वर्षों से भारत जिस लक्ष्य के लिए हर स्तर पर कूटनीतिक प्रयास कर रहा था तथा 2016 के बाद काफी सघन कर दिया गया था वह प्राप्त हो चुका है। 

पाकिस्तान भले आज जो भी बयान दे, लेकिन संयुक्त राष्ट्रसंघ सुरक्षा परिषद मसूद अजहर को आतंकवादी घोषित न करे इसके लिए वह जितना कुछ कर सकता था करता रहा। सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य होने के कारण चीन का उसे सहयोग मिलता रहा। जाहिर है, भारत की सघन कूटनीति के सामने पाकिस्तान की कोशिश अंततः असफल हुई तथा चीन को समझ आ गया कि मसूद अजहर जैसे आतंकवादी को रक्षा कवच देना उसके लिए अब जोखिम भरा है। 

चीन को यह महसूस कराना भारतीय विदेश नीति की सामान्य सफलता नहीं है। जो चीन इसके पूर्व चार बार प्रस्ताव को वीटो कर चुका हो वह अचानक हल्के बदलाव के साथ प्रस्ताव को समर्थन देने को राजी हो गया तो इसका मतलब पर्दे के पीछे काफी कुछ चल रहा था। सच कहें तो भारत ने अपना लक्ष्य तय कर लिया था कि मसूद अजहर को हर हाल में वैश्विक आतंकवादी घोषित करा के ही दम लेना है और हमारी कूटनीति इस पर सम्पूर्ण फोकस के साथ सतत सक्रिय रहा जिसका परिणाम सामने है।  

हम न भूलें के मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली सरकार ने मुंबई हमले के बाद 2009 में मसूद अजहर के खिलाफ सुरक्षा परिषद में प्रस्ताव पेश किया था। चीन ने वीटो कर दिया। उसके बाद सरकार पूरे कार्यकाल में दोबारा प्रस्ताव लाने का साहस नहीं जुटा सकी क्योंकि चीन अपने रुख पर अड़ा था। 

हालांकि नरेन्द्र मोदी सरकार ने 2016 में पठानकोट एयरबेस पर हुए हमले के बाद चीन से इस पर बातचीत करके प्रस्ताव दिया था लेकिन वह टस से मस होने को तैयार नहीं था। उसके साथ लगातार बातचीत होती रही और तीसरी बार 2017 में उरी में सेना के शिविर पर में हमले के बाद यह प्रस्ताव पेश किया गया। चौथा प्रस्ताव पुलवामा हमले के बाद पेश किया गया। 

किसी भी व्यक्ति को वैश्विक आतंकी घोषित करने का फैसला संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की प्रतिबंध समिति करती है। प्रस्ताव 1267 में उस व्यक्ति का नाम दर्ज करना होता है। सुरक्षा परिषद में अमेरिका, चीन, फ्रांस, ब्रिटेन और रूस स्थायी सदस्य हैं। इनके अलावा 10 अस्थायी सदस्य हैं। किसी को वैश्विक आतंकवादी घोषित करने के लिए सभी स्थायी सदस्यों की सहमति जरूरी होती है। अपने वीटो अधिकार के साथ चीन जबतक नहीं चाहता मसूद अजहर आतंकवादी घोषित हो ही नहीं सकता था। भारत ने इसका ध्यान रखते हुए चीन और अन्य चार स्थायी सदस्य देशों के साथ  बातचीत जारी रखी। शेष अस्थायी सदस्यों के अलावा जिस देश का थोड़ा प्रभाव हो सकता था उन सबके साथ इस मामले पर बातचीत की गई। मसूद अजहर पर एक विस्तृत डोजियर तैयार कर सबको दिया गया ताकि उसके आतंकवादी चरित्र से सभी पूरी तरह वाकिफ हो सके। 


भारत की कोशिश थी कि विश्व स्तर पर पूरा वातावरण मसूद अजहर को आतंकवादी मानने का निर्मित हो तथा दुनिया के ज्यादातर देश यह मान लें कि सुरक्षा परिषद की समिति को उसे वैश्विक आतंकवादी घोषित करना ही चाहिए। इस प्रयास का ही परिणाम था कि नरेन्द्र मोदी सरकार के कार्यकाल के सभी प्रस्ताव अमेरिका, फ्रांस और ब्रिटेन की ओर से पेश किया गया। चीन ने सबसे अंतिम वीटो 13 मार्च को लगाया था। 

किंतु भारत के सघन कूटनीतिक प्रयासों से पूरी दुनिया में मसूद अजहर के खिलाफ वातावरण बन चुका था। इसके बाद अमेरिका, फ्रांस एवं ब्रिटेन ने घोषणा कर दिया कि वे अपने-अपने देशों में मसूद को आतंकवादी घोषित करेंगे तथा उस पर, उसके संगठन पर तथा उससे जुड़ लोगों संगठनों, संस्थाओं आदि पर वो सारे प्रतिबंधात्मक कार्रवाई करेंगे जो सुरक्षा परिषद द्वारा वैश्विक आतंकवादी घोषित करने के बाद किया जाता है। इन देशों में ऐसा कर भी दिया। इसके साथ फ्रांस की पहल पर यूरोपीय संघ में भी मसूद अजहर को आतंकवादी घोषित किए जाने का प्रस्ताव पेश हो गया। 


बेशक, चीन ने सुरक्षा परिषद द्वारा मसूद को आतंकवादी घोषित करने के पहले अपने रुख में बदलाव का संकेत दिया था। 29 अप्रैल को चीन की ओर से बयान दिया गया कि मसूद को सुरक्षा परिषद द्वारा वैश्विक आतंकवादी घोषित किए जाने के मुद्दे में सकारात्मक प्रगति हुई है। चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता गेंग शुआंग ने प्रेस वार्ता में कहा कि अजहर से संबंधित आवेदन को प्रस्तावित किए जाने (1267 समिति में) के बाद चीन विभिन्न पक्षों के साथ संपर्क एवं समन्वय बिठा रहा है और उसने सकारात्मक प्रगति की है। 
प्रेसवार्ता में पत्रकारों ने पूछा कि प्रगति का मतलब क्या है? क्या चीन मसूद को वैश्विक आतंकी घोषित करने के मामले को हल करना चाहता है? शुआंग ने कहा, ‘हां। 

किंतु यह बदलाव ऐसे ही नहीं हुआ। यह तो नहीं कहा जा सकता कि चीन का अचानक हृदय परिवर्तन हो गया। भारत के प्रयासों से दुनिया भर से आने वाली प्रतिक्रियायें चीन के प्रतिकूल थीं। 13 मार्च को चीन के वीटो के साथ ही सुरक्षा परिषद में देशों का प्रतिनिधित्व कर रहे राजनयिकों ने मीडिया को अपना नाम न दिए जाने की शर्त पर जिस तरह की तीखी प्रतिक्रियायें व्यक्त कीं उनसे साफ हो गया था कि जनमत चीन के खिलाफ हो रहा है। 

दूसरे, उसके द्वारा प्रस्ताव बाधित करने के बावजूद अमेरिका से लेकर यूरोप तक में मसूद तथा उसके संगठन जैश-ए-मोहम्मद पर प्रतिबंध लगा रहा है। और सबसे बढ़कर 27 मार्च को अमेरिका ने अजहर को प्रतिबंधित करने के लिए सुरक्षा परिषद में सीधे एक प्रस्ताव पेश कर दिया था। इसमें अजहर को काली सूची में डालने, उस पर यात्रा प्रतिबंध लगाने, उसकी संपत्ति की खरीद-बिक्री  और हथियार रखने आदि पर रोक लगाने की बात थी। 

पहले चीन के वीटो से प्रस्ताव बहस के पूर्व ही खत्म हो जाता था। इस बार ऐसा नहीं था। अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने चीन पर करारा हमला किया। उन्होंने कहा कि अमेरिका अपने यहां इस्लामी समूहों को प्रतिबंधित कर उनके सदस्यों को हर तरह की यातनायें देता है जबकि दूसरी ओर हिंसक इस्लामी समूहों को प्रतिबंध से बचाने का कदम उठा रहा है। 

चीन ने आरंभ में अमेरिका के इस कदम का विरोध किया। उसने कहा कि अमेरिका सीधे सुरक्षा परिषद के समक्ष मामले को उठाकर उसके प्रयासों को बर्बाद कर रहा है। ऐसा करके अमेरिका एक खराब उदाहरण पेश कर रहा है। उसने अमेरिका के आरोपों का खंडन तथा अपने अब तक के रुख का बचाव किया किंतु उसके सामने साफ था कि इस मामले पर वह अकेला पड़ रहा है। 

चीन ने 13 मार्च को 1267 अल कायदा प्रतिबंध समिति में अमेरिका, ब्रिटेन से समर्थित फ्रांस के प्रस्ताव को यह कहकर बाधित किया था कि उसे मामले के अध्ययन के लिए और समय चाहिए। चीनी विदेश मंत्रालय ने कहा था कि प्रस्ताव पर रोक यह ध्यान में रखते हुए भी लगाई गई थी कि पुलवामा आतंकी हमले के बाद संबंधित पक्ष को बातचीत करने का समय मिल सके। इस तर्क से उसके अलावा कोई सहमत होने को तैयार नहीं था। अमेरिका की वह भले आलोचना कर रहा था, पर उसे मालूम था कि दुनिया का रुख क्या है। 

पूरे मामले को ठीक से न समझने वाले मसूद अजहर पर प्रतिबंध तथा चीन के बदले रुख के महत्व को कमतर बता रहे हैं। मसूद अजहर को वैश्विक आतंकवादी घोषित करने वाले सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव में उसके क्या-क्या कारण दिए गए हैं उनमें से कुछ बिन्दू तलाश करके भारतीय विदेश नीति की सफलता पर प्रश्न खड़े किए जा रहे हैं। यह भारत में ही हो सकता है जहां इतनी बड़ी कूटनीतिक विजय को भी राजनीतिक नजरिए से देखा जा सकता है। 

क्या कोई यह विचार करने के लिए तैयार है कि आखिर जो आतंकवादी भारत में वांछित है उसके लिए अमेरिका, फ्रांस और ब्रिटेन इतने आक्रामक कैसे हुए? उन्होंने चीन के खिलाफ मोर्चा कैसे खोल दिया? अमेरिका ने चीन के वीटो के बाद सुरक्षा परिषद के दूसरे नियम के तहत सीधे प्रस्ताव लाने का अभूतपूर्व कदम कैसे उठाया?

 ध्यान रखिए, 1267 समिति में प्रस्ताव लाने के 10 दिनों के भीतर सदस्य देशों को अपनी असहमति दर्ज करानी होती है या विरोध करना होता है। इस समिति के तहत कोई एक सदस्य विरोध में मतदान कर दे तो यह रद्द हो जाता है। 13 मार्च को प्रस्ताव के पक्ष में 15 में से 14 सदस्य थे लेकिन चीन ने इस पर रोक लगा दी। अमेरिका के प्रस्ताव में अनापत्ति अवधि का प्रावधान नहीं था। सदस्य देश इस पर चर्चा करते तथा उसके बाद मतदान की तिथि और समय निश्चित होता। चीन ने तो इसे जबरदस्ती का कदम बताया था। अमेरिका अगर चीन से टकराव की सीमा तक गया तो इसे भारतीय विदेश नीति की सफलता नहीं मानेंगे तो और क्या कहेंगे? 

अगर प्रस्ताव पारित कराना है तो उसका मसौदा सर्वसम्मत बनाना होगा। तो चीन से बातचीत में उसकी भाषा में थोड़ा परिवर्तन हो गया। हमारा लक्ष्य मसूद अजहर को वैश्विक आतंकवादी घोषित करना था ताकि सभी सदस्य देश  जैश सहित उसकी सारी गतिविधियों को प्रतिबंधित करने, उसकी चल-अचल संपत्ति को जब्त करने आदि के कदम उठा सकें। यह हो गया। पाकिस्तान को भी कहना पड़ा है वह प्रतिबंध के तहत सभी कार्रवाई करने को तैयार है। 

ऐसा कोई नहीं कहता कि इस एक फैसले से सीमा पार आतंकवाद रुक जाएगा, पर इससे यह तो साफ हो गया कि जानते हुए एक खूंखार आतंकवादी को पाकिस्तान आज तक पालता, पोसता रहा तथा उसकी सारी गैर कानूनी गतिविधियां वहां चलतीं थीं। जिस मसूद अजहर को इमरान खान के एक मंत्री संसद में मसूद अजहर साहब कह रहे थे उसके खिलाफ आज उसे कदम उठाने को मजबूर होना पड़ रहा है यह किसी दृष्टि से सामान्य सफलता नहीं है। 

अवधेश कुमार
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और विश्लेषक हैं)