कृषि के सर्वोन्मुखी विकास के साथ किसान कल्याण मोदी सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता रही है। मोदी सरकार ने अपनी कृषिपरक दूरदर्शिता,दृढ़संकल्प, पक्के इरादों से न केवल विकासोन्मुखी योजनाओं का सृजन किया बल्कि योजनायें तीव्र गति से संपादित होती रहे उसके लिए पर्याप्त धन भी मुहैया कराया और सक्षम मानव संसाधनों का विकास एवं मित्रवत नीतियों का निर्माण किया।
कृषि के सर्वोन्मुखी विकास के साथ किसान कल्याण मोदी सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता रही है। मोदी सरकार ने अपनी कृषिपरक दूरदर्शिता,दृढ़संकल्प, पक्के इरादों से न केवल विकासोन्मुखी योजनाओं का सृजन किया बल्कि योजनायें तीव्र गति से संपादित होती रहे उसके लिए पर्याप्त धन भी मुहैया कराया और सक्षम मानव संसाधनों का विकास एवं मित्रवत नीतियों का निर्माण किया।
देशभर के सभी किसानों तक नीम कोटेड यूरिया का प्रसार, स्वायल हेल्थ कार्ड उपलब्ध कराना, उन्नत किस्मों के बीज की उपलब्धता बढ़ाना और बीज हबों का विकास, विपणन को ई-नाम वेब पोर्टल के माध्यम से सहज, सरल एवं देशव्यापी बनाना, उचित कृषि यंत्रों का विकास आदि ऐसे आधारभूत उपाय किये गये थे जिससे वर्ष 2017-18 में देश में अन्न में रिकॉर्ड उत्पादन की प्राप्ति में महत्वपूर्ण सफलता हासिल की। अधिक उत्पादन कम लागत पर हो ऐसी तकनीकों का विकास, किसानों को उचित मूल्य मिले इसलिए विभिन्न फसलों में लागत मूल्य का 1.50 से 1.92 प्रतिशत न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित करना, आदि किसानों के कल्याण के लिए प्रमुख कदम उठाये गए है।
हमारे किसानों, वैज्ञानिकों, नीति निर्धारकों ने विश्व भर को यह जता दिया है कि वह कृषि, भोजन व पोषण सम्बंधी देश की सभी चुनौतियों का सामना करने में सक्षम रहे हैं। उसी का यह परिणाम रहा है कि सरकार के गत चार वर्षों के कार्यकाल में, कृषि क्षेत्र की विकास दर को बढ़ाने, उपज का उचित मूल्य दिलाने तथा कृषि लागत में कमी करने की दिषा में महत्वपूर्ण पहल करते हुए कई प्रकार के कार्यक्रम चलाए है। इनमें कृषि उन्नति आधारित योजनाओं का खासतौर पर उल्लेख किया जा सकता है जिनके लिए कृषि बजट की राशि में अभूतपूर्व वृद्धि की गई। इसी क्रम में वर्ष 2022 तक कृषकों की आय को दोगुनी किए जाने का लक्ष्य भी केंद्र सरकार द्वारा तय किया गया है।
इससे यह स्पष्ट होता है कि मोदी सरकार द्वारा कृशि क्षेत्र को अत्यधिक प्राथमिकता दी जा रही है। इन सभी सार्थक प्रयासों का ही सुखद परिणाम है कि गत तीन वर्षों से देश में खाद्यान्न की रिकार्ड तोड़ पैदावार हुई है। वर्श 2017-18 के अग्रिम अनुमानुसार 284.83 मिलियन टन रिकॉर्ड खाद्यान्न उपज की प्राप्ति हुई है। इसी प्रकार दालों का लगभग 23 मिलियन टन रिकार्ड उत्पादन हुआ जो कि देश को दलहन क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के काफी नजदीक है। दलहन का आयात गत वर्ष के 10 लाख टन की तुलना में घटकर मात्र 5.68 लाख टन हो गया। इस प्रकार 9,775 करोड़ रुपये के बराबर की बहुमूल्य विदेशी मुद्रा की बचत हुई।
बागवानी फसल उत्पादन की बात करें तो वर्श 2017-18 में 306.8 मिलियन टन उत्पादन के साथ भारत का नामी विश्व के शीर्ष फल एवं बागवानी उत्पादक के रूप में स्थापित हो चुका ह। मोदी सरकार की नीतियों के कारण डेयरी विकास में भी प्रगति काफी तेज रही है और वैश्विक स्तर पर शीर्ष दूध उत्पादक बने रहने का श्रेय भी भारत को है। गर्व की बात है कि विश्व के कुल दूध उत्पादन में 19 प्रतिशत का योगदान भारत द्वारा ही किया जाता है। यहां यह बताना भी प्रासंगिक होगा कि पिछले चार वर्षों की अवधि में डेयरी किसानों की आय में 30.45 प्रतिषत की सकारात्मक बढ़ोतरी दर्ज की गई है।
श्वेत क्रांति को एक महत्वाकांक्षी मिशन मानते हुए 10,881 करोड़ रुपये की लागत की डेयरी प्रसंस्करण और अवसंरचना निधि आगामी तीन वर्षों में कार्यान्वित करने का निर्णय इस प्रगति को बढ़ावा देने के लिए किया गया है। मात्स्यिकी क्षेत्र की उपलब्धियों पर नजर डालें तो पता चलता है कि इस अवधि में मत्स्य उत्पादन 7.8 मिलियन मीट्रिक टन से बढ़कर 11.26 मिलियन मीट्रिक टन तथा मत्स्य निर्यात 12710.11 करोड़ रुपये से बढ़कर 35641.59 करोड़ रुपये तक पहुंच गया। नीली क्रांति के उद्देश्य को प्राप्त करने हेतु 2019-20 तक मत्स्य उत्पादन में वृद्धि कर इसे 15 मिलियन मीट्रिक टन तक किये जाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। और इसके लिए आधारभूत ढांचे का निर्माण कर दिया गया है।
इसी प्रकार रूरल बैकयार्ड पोल्ट्री डेवलपमेंट के अंतर्गत गरीब मुर्गीपालक परिवारों को पूरक आय पोषण संबंधी सहायता प्रदान की जा रही है। राष्ट्रीय पशुपालन विकास मिशन के अंतर्गत भेड़, बकरी, सूकर एवं बत्तख पालकों को आय बढ़ाने के अवसर प्रदान किए जा रहे है। लागत से न्यूनतम 50 प्रतिशत अधिक समर्थन मूल्य देने का निर्णय लेकर भी सरकार ने एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है ताकि किसानों के बड़े हितों की भरपाई हो सके। राष्ट्रीय किसान कमीशन द्वारा की गई उत्पादकता बढ़ाने एवं कुपोषण दूर करने संबंधी सिफारिषों को ध्यान में रखते हुए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा पिछले चार साल में फसलों की कुल 795 उन्नत किस्में विकसित की गई है। इनमें से 495 किस्में जलवायु के विभिन्न दबावों के प्रति सहिष्णु है, जिनका लाभ किसान उठा रहे है। कुपोषण की समस्या, जो कि लंबे समय से भारतीय समाज में व्याप्त है, को दूर करने की दिषा में पहली बार सरकार द्वारा ऐतिहासिक पहल की गई है जिसके अंतर्गत कुल 20 बायो-फोर्टिफाइड किस्में विकसित कर खेती के लिए जारी की गईं।
इसी क्रम में फसल बीमा योजना को अधिक प्रभावी एवं किसानोपायोगी बनाने के उद्देष्य से वर्श 2018-19 में इसका बजटीय प्रावधान वर्ष 2013-14 के 2151 करोड़ से बढ़ाकर 13,000 करोड़ किया गया। कृषि यंत्रीकरण के लिए गत वर्षों की तुलना में बजट राशि को 20 गुना बढ़ाते हुए 1165 करोड़ किया गया। ऐसे ही ड्रिप तथा स्प्रिंक्लर कृषि सिंचाई में 4000 करोड़ रुपये तथा कृषि बाजार योजना की राशि को 1050 करोड़ किया गया। सरकार खाद्य प्रसंस्करण के माध्यम से कृषि में गुणवत्ता को बढ़ावा दे रही है। इसके तहत एग्रो प्रोसेसिंग क्लस्टरों के फारवर्ड एवं बैकवर्ड लिंकेज पर कार्य करके फूड प्रोसेसिंग क्षमताओं का विकास करने की योजना भी है।
जलवायु परिवर्तन की अनियमितताओं से फसलों को बचाने के लिए मार्च 2018 तक कुल 623 जिलावार आकस्मिक योजनाएं तैयार एवं क्रियान्वित की गईैं। इसी प्रकार जैविक खेती के लिए कृषि तकनीक आधारित 33 पैकेज भी विकसित किए हैं, जिनका कि कृषि विज्ञान केंद्रों द्वारा किसानों के खेतों पर प्रदर्शन किया जा रहा है। जलवायु परिवर्तन की समस्या के समाधान हेतु 151 मॉडल जलवायु स्मार्ट गांवों का विकास किया गया है जिनमें किसानों को तकनीकी रूप से सक्षम बनाने के लिए 121 कृषि विज्ञान केंद्र कार्य कर रहे हैं।
वर्तमान मोदी सरकार के द्वारा किए जा रहे गंभीर प्रयासों तथा इनके आशाजनक परिणामों को देखते हुए यह कहना गलत नहीं होगा कि वर्ष 2022 तक देश के किसानों की आय दोगुनी करने का संकल्प हकीकत में बदल सकता है। आशा है कि किसान भाई नई तकनीकों का उपयोग कर, उपलब्ध योजनाओं एवं नीतियों का लाभ उठाते हुए भारत वर्ष को कृषि उत्पादन, प्रसंस्करण में विश्व में अग्रणी बनाये रखेंगे जिससे भोजन सुरक्षा के साथ ही पोषण सुरक्षा भी सुनिश्चित करेंगे।
Last Updated Sep 9, 2018, 12:40 AM IST