“यह जया प्रदा कौन है? अच्छा वह फिल्मों वाली! मैं नाचने-गाने वालों के मुंह नहीं लगा करता.” 
रामपुर से समाजवादी पार्टी(सपा) के कद्दावर नेता आजम खान ने ये अल्फाज मशहूर अभिनेत्री और रामपुर से दो बार की सांसद, 300 से ज्यादा फिल्में करने वाली जया प्रदा के बारे में कहे थे. 

मजे की बात यह है कि 2004 के चुनाव में जब सपा ने जया प्रदा को रामपुर से उम्मीदवार बनाया था तो उनको संसद पहुंचाने की जिम्मेदारी आजम खान को ही दी गई थी और आजम खान ने ये जिम्मेदारी बखूबी निभाई भी थी. कम से कम आजम खान तो यही दावा करते हैं कि उन्होंने जिम्मेदारी बखूबी निभाई थी. बेशक जया प्रदा ऐसा नहीं मानतीं. 

रामपुर में चुनाव लड़ने के दौरान आजम खान के साथ अपने अनुभव को जया प्रदा ने कुछ यूं बयान किया कहा था, 'मैं जब पद्मावत देख रही थी तो उसमें खिलजी के किरदार ने मुझे आजम खां की याद दिला दी. उस फिल्म में खिलजी के दृश्य देखकर मैं सोच रही थी कि जब मैं रामपुर से चुनाव लड़ रही थी तब उस शख्स (आजम) ने किस तरह से मुझे प्रताड़ित किया था.'  

जया प्रदा का दर्द सिर्फ टीवी इंटरव्यू में नहीं छलका था. 2009 के चुनावों में तो आजम खान का जिक्र आने पर वह स्टेज पर ही रो पड़ी थीं. जया प्रदा से बाद में मुंबई में एक लिटरेचर फेस्टिवल में उस घटना के बारे में पूछा गया था तो उनका जवाब था, ‘एक महिला के तौर पर आजम खान के साथ जिन हालातों में मैं चुनाव लड़ रही थी, मुझे हमेशा यह डर रहता था कि मुझ पर कभी भी एसिड फेंक दिया जाएगा या मेरी हत्या ही कर दी जाएगी...जब कभी मैं घर से बाहर जाती तो मैं अपनी मां को यह भी नहीं बता सकती थी कि मैं वापस जिंदा लौटूंगी या नहीं'. इशारों-इशारों में जया प्रदा ने अपने साथ हुई बहुत सी प्रताड़नाओं की बात कह दी जो एक अभिनेत्री और एक बेहद खूबसूरत औरत होने के नाते उन्हें झेलने पड़े थे. 

जया प्रदा को इस बात का मलाल हमेशा रहा कि वह हर तरह की प्रताड़नाओं का सामना कर रही थीं लेकिन उस दौरान कोई उनका साथ देने या उनकी मदद करने नहीं आया, सिवाय अमर सिंह के. राजनीति के सबसे बड़े मठाधीश अमर सिंह और जया प्रदा की बात करने से पहले, जया प्रदा की फिल्म और राजनीति में इंट्री की बातें कर लेते हैं. 

ललिता रानी जो रूपहले पर्दे पर जया प्रदा के नाम से प्रसिद्ध हुईं, का जन्म आंध्र प्रदेश के राजमुंदरी के एक मध्यम-वर्गीय परिवार में हुआ था. पिता कृष्णा एक औसत तेलुगू फ़िल्म फाइनेंसर थे. ललिता ने कम उम्र में ही नृत्य और संगीत सीखना शुरू किया. जब वह चौदह वर्ष की थीं, तब उन्होंने अपने स्कूल के सालाना समारोह में अपनी एक नृत्य प्रस्तुति दी. 

वहां दर्शकों के बीच एक तेलुगु फ़िल्म निर्देशक भी थे. डांस देखकर उन्होंने ललिता से अपनी तेलुगू फ़िल्म 'भूमिकोसम' में तीन मिनट का एक डांस करने का प्रस्ताव दिया. ललिता बहुत हिचकिचाईं, लेकिन परिवार का फिल्मों से नाता रहा था इसलिए घर से प्रोत्साहन मिलने के बाद उन्होंने स्वीकार लिया. इस फ़िल्म में काम के लिए भले ही उन्हें केवल 10 रुपए मिले लेकिन उस तीन मिनट के डांस पर तेलुगू फ़िल्मों की प्रमुख हस्तियों की नजर गई और उनके सामने फिल्म प्रस्तावों की बाढ़ आ गई. 

बेहतरीन नृत्यांगना ललिता रानी जया प्रदा के नाम से तेलुगु फिल्में करने लगीं और एक साथ तीन सुपरहिट फिल्में देकर तेलुगु की सुपरस्टार बन गईं. के. विश्वनाथ की फ़िल्म सिरी सिरी मुव्वा उनकी सबसे बड़ी हिट साबित हुई थी. 
के. विश्वनाथ ने उस फिल्म की सफलता को भुनाने के लिए सरगम नाम से हिंदी फिल्म बनाई. फ़िल्म एक ब्लॉक बस्टर साबित हुई और बॉलीवुड को एक जबरदस्त डांसर मिल गई. वह रातों-रात हिंदी फिल्मों की भी स्टार बन गईं लेकिन उसके बाद उन्हें ज्यादा फिल्में नहीं मिल सकीं क्योंकि उन्हें हिंदी नहीं आती थी. कुछ समय के लिए तो वह बॉलीवुड से ही गायब हो गईं. जया प्रदा ने मुश्किल समय का इस्तेमाल किया और धाराप्रवाह हिंदी बोलना सीखकर फिर से लौटीं. 30 साल के फिल्मी करियर में जया प्रदा ने 300 फिल्में की हैं. तो फिर राजनीति में आना कैसे हुआ?
    
दरअसल वह जिस आंध्र प्रदेश से ताल्लुक रखती हैं वहां की तेलुगु फिल्मों के सुपरस्टार एनटी रामाराव भी फिल्मों के बाद राजनीति में आए थे और बहुत सफल रहे थे. आंध्र प्रदेश की राजनीति पर एनटी रामाराव और फिर उनके परिवार का असर ऐसा रहा है कि आज भी उनके दामाद चंद्रबाबू नायडू आंध्र के मुख्यमंत्री हैं. 

एनटीआर के कहने पर ही जयाप्रदा ने राजनीति में आने का मन बनाया था. 1994 में उन्होंने तेलुगुदेशम पार्टी की सदस्यता ले ली. फिर एनटीआर के खिलाफ चंद्रबाबू ने बगावत की तो जयाप्रदा, चंद्रबाबू नायडू के साथ आ गईं. 1996 में पहली बार जया प्रदा आंध्र प्रदेश से राज्‍यसभा के लिए चुनी गईं.

जया प्रदा ने लोकसभा और विधानसभा चुनावों के लिए अपनी पार्टी का प्रचार तो खूब किया था लेकिन कभी खुद चुनाव नहीं लड़ी थीं. राज्यसभा के अपने कार्यकाल के दौरान जया प्रदा साथी सांसदों से चुनाव लड़ने की चुनौतियों के बारे में पूछा करतीं और उसमें बड़ी रुचि दिखाती थीं. अमर सिंह भी राज्यसभा में थे और उनके कानों में भी यह बात पड़ी. बस यहीं से जया प्रदा और अमर सिंह की दोस्ती हुई और अमर सिंह ने अपने दोस्त को न सिर्फ लोकसभा चुनाव लड़ाया बल्कि जितवाया भी. जया प्रदा की भाजपा में एंट्री और टिकट दिलाने में भी अमर सिंह की भूमिका मानी जाती है. 

अमर सिंह और जया प्रदा की दोस्ती भी मीडिया के लिए मसालेदार खबरों से भरी रही है. आजम खान और अमर सिंह के बीच दुश्मनी की धुरी में कहीं न कहीं जया प्रदा ही हैं. अमर सिंह ने 2004 में जया प्रदा को रामपुर से टिकट दिलाया और आजम खान को उन्हें जिताने की जिम्मेदारी सौंपी. आजम खां ने उनके लिए प्रचार भी किया लेकिन हावी हो जाने के उनके शगल के कारण जया प्रदा को बहुत बार स्थिति असहज सी लगी. छोटी-छोटी बातों पर शुरू हुआ विरोध न जाने कब अदावत की इंतेहा तक पहुंचा गया. 

2008 में अमर सिंह को वोट के बदले नोट मामले में जेल जाना पड़ा. इस दौरान सभी उनका साथ छोड़ गए लेकिन जयाप्रदा उनके साथ मजबूती से खड़ी रहीं. कहा जाता है कि जयाप्रदा उनके लिए फूट-फूट कर रोई थीं. 2009 में जया प्रदा को दोबारा रामपुर से टिकट की बात चली तो आजख खां ने खुलकर विरोध किया. सार्वजनिक मंचों से वह उनके लिए अभद्र शब्द बोल गए. 

अमर सिंह ने दखल देने की कोशिश की तो आजम खां बिफर गए और उसके बाद तो किसी ने कोई सीमा बाकी नहीं रखी. आजम व जया में शुरू हुई सियासी अदावत अब निजी सम्मान तक जा पहुंची. 

बहरहाल आजम खां हाशिए पर आ गए और जयाप्रदा 2009 में दूसरी बार लोकसभा पहुंची. दोनों नेताओं के बीच नहीं पाटी जा सकने वाली खाई बन गई. अमर सिंह और जया के जोर के आगे आजम खान ने घुटने टेके और खुद को समाजवादी पार्टी से भी अलग कर लिया. मई 2009 में उन्होंने पार्टी महासचिव पद से इस्तीफा दे दिया. 

आजम खां इस जख्म को भूले नहीं और कहा जाता है कि वह मीडिया में जया प्रदा और अमर सिंह के बीच ‘रिश्तों’ की बातें फैलाने लगे. अमर सिंह और जया प्रदा की कुछ तस्वीरें भी आईं और दोनों के बीच बातचीत का एक ‘आपत्तिजनक’ ऑडियोटेप भी सोशल मीडिया पर तैरने लगा. इसको लेकर कितना तूल दिया गया इस बात  का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि बाद में जया ने एक इंटरव्यू में यहां तक कहा कि यदि वह अमर सिंह को राखी भी बांध दें तो भी बातें नहीं थमने वालीं. 
    
हालांकि, सपा में जल्द ही आजम की वापसी हो गई और 4 दिसंबर 2010 को पार्टी ने उनका निष्‍कासन रद्द करते हुए वापस बुला लिया. सपा में नेतृत्व मुलायम सिंह से अखिलेश की ओर जाने के साथ ही जया प्रदा और अमर सिंह दोनों के लिए मुश्किलें शुरू हो गईं.  वक्त का पहिया ऐसा घूमा कि जया प्रदा को सपा से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया. अमर सिंह जिन्हें वह अपना ‘गॉडफादर’ कहती हैं, सेहत और राजनीति दोनों ही मोर्चे पर अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रहे थे. 

अमर सिंह ने 2011 में जया प्रदा के साथ अपनी राजनीतिक पार्टी राष्ट्रीय लोक मंच की स्थापना की. बाद में अमर सिंह राष्ट्रीय लोकदल में शामिल हुए तो जया प्रदा भी उनके साथ गईं. 2014 के लोकसभा चुनावों में बिजनौर सीट से टिकट मिला पर हार गई. 

जयाप्रदा ने बाद में एक इंटरव्यू में कहा था, ‘जब आजम खान ने मेरे लिए जीना मुश्किल कर दिया था तब भी मुलायम सिंह जी ने मुझे एक बार भी फोन नहीं किया. अमर सिंह डायलिसिस पर थे और मेरी तस्वीरों में छेड़छाड़ करके उसे क्षेत्र में फैलाया जा रहा था. मैं रो रही थी. मेरी जीने की इच्छा खत्म हो चुकी थी और मैंने आत्महत्या करने के बारे में सोचना शुरू कर दिया था. किसी ने मेरा साथ नहीं दिया, सिवाय अमर सिंह के''.

कभी जया प्रदा के लिए वोट मांगने वाले और फिर उनके खिलाफ अंदरखाने प्रचार करने वाले आजम खान आज जया प्रदा के साथ आमने-सामने की लड़ाई लडेंगे. आजम खान सपा से तो जया प्रदा भाजपा से रामपुर से सियासी जंग में उतरे हैं. 

वैसे तो यह सीट कांग्रेस की परंपरागत सीट रही है लेकिन पिछली बार रामपुर से भाजपा जीती थी. वर्तमान भाजपा सांसद डॉ. नेपाल सिंह 75 के हो चुके हैं इसलिए पार्टी ने इस बार जयाप्रदा को उतारा है. जया के आने से पहले जो सपा इस सीट को आसानी से अपनी झोली में मानकर चल रही थी अब उसकी बेचैनी बढ़ गई है. 

जया प्रदा भले ही रामपुर की मूल निवासी नहीं हैं लेकिन रामपुर से उन्होंने गहरा नाता जोड़े रखा है. जया के आने से आजम खां के लिए मुकाबला कड़ा हो गया है. अब बहुत कुछ कांग्रेस पर निर्भर करेगा. कांग्रेस ने अभी रामपुर से प्रत्याशी घोषित नहीं किया है. यदि कांग्रेस की ओर से भी मजबूत प्रत्याशी आता है तो मुकाबला त्रिकोणीय होगा और नतीजे किसी ओर जा सकते हैं. 

आजम खान के तमाम विरोधों के बावजूद सपा के टिकट पर 2009 में जीत हासिल करने वाली जया प्रदा ने आजम खान को नैतिक शिकस्त दे दी थी. जया एक बार फिर आजम खान से रामपुर की उन्हीं गांवों-कूचे-बस्तियों में टकराएंगी जिनका रास्ता बकौल आजम खान “उन्होंने ही उंगली पकड़कर दिखाया था.” बेशक आजम खान खुद को रामपुर के बेताज बादशाह मानते हों लेकिन उनके सामने एक चोट खाई शेरनी की तरह जया प्रदा होंगी. 

वैसे चुनौतियों को मात देने में जया का भी कोई जवाब नहीं है. पहली फिल्म से सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का फ़िल्मफ़ेयर नामांकन पाने वाली जया प्रदा के सामने हिंदी चुनौती बनी तो कुछ समय के लिए वह ओझल हुईं और 'कामचोर' फिल्म के साथ दोबारा लौटीं तो धाराप्रवाह हिन्दी बोल रही थीं. 

“कौन जया प्रदा” कहने वाले आजम खान भी इससे परिचित होंगे.