14 फरवरी को पुलवामा में सीआरपीएफ़ के क़ाफ़िले पर हुए आतंकी हमले के बाद से भारत-पाकिस्तान में तनाव बना हुआ है। इस बीच फरवरी महीने के जीएसटी कलेक्शन में कमी आई है। पिछले महीने 97,247 करोड़ रुपये का जीएसटी संग्रह हुआ। जनवरी महीने में यह आंकड़ा एक लाख करोड़ रुपये से ज़्यादा था। हालांकि युद्ध जैसे परिवेश का टैक्स संग्रह से कोई सीधा संबंध नहीं होता, फरवरी में सोने और चांदी के भाव में भी गिरावट दर्ज की गई है। वहीं सेंसेक्स भी एक मुद्दत तक उछलने के बाद फरवरी के दूसरे पखवाड़े में कुछ सहम सा गया।

पाकिस्तान की सरज़मीं पर पल रहे आतंकवादी संगठन जैश-ए-मुहम्मद ने 14 फरवरी को सीआरपीएफ़ के क़ाफ़िले पर आत्मघाती हमला किया था जिसमें 40 से अधिक पैरामिलिट्री के जवान वीरगति को प्राप्त हो गए। इसके बाद से देशवासियों में एक बदले की भावना की लहर सी दौड़ गई और आख़िर सेना के परामर्श पर नरेंद्र मोदी सरकार ने पाकिस्तान के बालाकोट-स्थित जैश के कैंप पर हवाई हमले की अनुमति दे दी। पाकिस्तान ने बदले में हमारे सैनिक ठिकानों पर बमबारी करने की कोशिश की पर भारतीय वायु सेना की चुनौती के आगे उनके एफ़-16 विमानों की एक न चली और उन्हें पलायन करना पड़ा। परंतु मुठभेड़ में मिग-21 बाइसन के पायलट अभिनन्दन वर्तमान ने एक पाकिस्तानी युद्ध विमान को मार तो गिराया लेकिन अपने जहाज़ पर पाकिस्तानी फ़ायरिंग होते ही जब वे पैराशूट से उतरे तो स्वयं को दुश्मन के इलाक़े में पाया। फिर मोदी सरकार की रणनीति व कूटनीति से परेशान पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने घोषणा की कि वे अभिनन्दन को भारत वापस भेजने को तैयार हैं।

इस तनाव से भरे माहौल का असर व्यापार पर पड़ता ही है, पर क्या ये सब केवल जंग जैसी हालत की वजह से हो रहा है? नहीं।

सोना और चांदी

दिल्ली में 99.99% और 99.5% शुद्धता वाले सोने में प्रति 10 ग्राम रु 120 की गिरावट आई है। इनकी क़ीमत अब क्रमशः रु 34,080 प्रति 10 ग्राम और रु 33,910 प्रति 10 ग्राम हैं। एक किलो चांदी की क़ीमत में रु 370 की गिरावट आई है क्योंकि उद्योगों ने पिछले तिमाही में चांदी का कुल व्यापार कम किया है। इसके अलावा सिक्कों के उत्पादन की भी इस समय आवश्यकता नहीं थी जिस कारण चांदी की मांग में कमी आई।

ध्यान रहे कि सोने के दाम दुनिया भर में गिर रहे हैं जिसका एक कारण डॉलर का बढ़ता मूल्य भी है। सोने के वैश्विक मूल्य में 0.28% का अवमूल्यन हुआ है और चांदी के भाव में 0.22% का। जो पारंपरिक तौर पर सोने में निवेश करते थे उन्हें अब डॉलर में निवेश करना ज़्यादा फ़ायदेमंद नज़र आ रहा है। ऊपर से स्थानीय व्यापारी भी डिमांड नहीं बढ़ा रहे हैं।

स्टॉक बाज़ार

पर सेंसेक्स जहाँ कल तक मुरझा रहा था वहीं आज वायुसेना के पायलट अभिनन्दन वर्तमान के पाकिस्तान से वापस आने की ख़बर मिलते ही इसमें 196 अंकों का उछाल आया।

गुरुवार को संस्थागत निवेशकों ने रु 3,210.6 करोड़ के शेयर ख़रीदे जब कि देशीय संस्थागत निवेशकों ने रु 5,240.62 के शेयर ख़रीदे। यह भारत की अर्थव्यवस्था पर विश्वास का संकेत है।

जीडीपी या सकल घरेलू उत्पाद का 6.6% में सिमट जाने का भी पाकिस्तान के साथ भारत के रिश्तों से कोई संबंध नहीं है क्योंकि यह तिमाही आंकड़ा है जब कि पुलवामा और बालाकोट की घटनाएँ केवल पिछले एक पक्ष का प्रकरण हैं।

जीएसटी

जहाँ तक जीएसटी का सवाल है, हाल ही में कई उत्पादों की टैक्स दरों में कटौती की गई है। हालांकि विश्व भर में यह देखा गया है कि टैक्स की दर कम हों तो राजस्व बढ़ जाता है, ऐसा एक अंतराल के बाद होता है। कई उत्पादों पर कर के दर का 24% या 18% से घटकर 12% या 5% हो जाने का तात्कालिक असर इस वक़्त दिख रहा है। यह गिरावट टिकने वाली नहीं है — पाकिस्तान के साथ हमारे संबंध जैसे भी हों।

वैसे भी सरकार के संशोधित आंकलन में रु 13.71 लाख करोड़ की जगह रु 11.47 लाख करोड़ तक के ही राजस्व वसूली का अनुमान था जिसका एक हिस्सा अब नज़र आ रहा है। वित्तीय, पूंजीगत माल, सूचना प्रौद्योगिकी, ऊर्जा, पेट्रोलियम और गैस के क्षेत्रों में अर्थव्यवस्था में उन्नति दिख रही है। निवेशकों ने मार्च महीने के शुरू होते ही निवेश के नए तरीके ईजाद किए, उसका भी फ़ायदा हुआ।इस बीच रुपये का भाव प्रति डॉलर 27 पैसे घटा है और कच्चे तेल का अंतरराष्ट्रीय दाम बढ़कर $ 66.55 हो गया है जिससे ऐसी तमाम चीज़ें जो भारत आयात करता है की क़ीमतें बढ़ गई हैं।

लेकिन मुद्रास्फीति पर पहले की सभी सरकारों से नरेंद्र मोदी सरकार का रिकॉर्ड बेहतर है। पिछले पाँच सालों के तमाम उठा-पटक के बावजूद आम आदमी के खपत की वस्तुओं की क़ीमत बढ़ी नहीं है। बल्कि कई सामान की दरें अब यूपीए सरकार के राज की दरों से नीचे जा रही हैं।

कुल मिला कर भारत की आर्थिक स्थिति मज़बूत और स्वस्थ है। इस वक़्त आ रहे आँकड़ों को पाकिस्तान के साथ बिगड़े सम्बन्ध से जोड़ना ग़लत होगा। बल्कि जब युद्ध की तैयारी होती है तो दुनिया भर के विशेषज्ञ मानते हैं कि जंग की फंडिंग से कहीं ज़्यादा ताक़त भारतीय अर्थतंत्र में है जबकि जंग हुई तो पाकिस्तान का दिवाला पिट जाएगा।