यूपीए के शासनकाल में नौसेना के लिए खरीदे गए 8 टोही विमानों को इंटरनेट की मदद से ट्रैक किया जा सकता है। संसद में रखी गई सीएजी की रिपोर्ट से यह चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। 10,770 करोड़ रुपये के इस सौदे को हासिल करने के लिए अमेरिकी कंपनी बोइंग की गलत तरीके से मदद की गई थी। जानकार इसे सीधे तौर पर नौसेना की मिशन फ्लाइट की गोपनीयता से समझौता करने का मामला बता रहे हैं।  

सीएजी की रिपोर्ट में हुआ खुलासा इन विमानों की उपयोगिता को लेकर गंभीर सवाल खड़े करता है। इन विमानों का मुख्य काम भारतीय जल क्षेत्र और उसके आसपास पाकिस्तानी एवं चीनी पोतों की मौजूदगी पर नजर रखना है। अब अगर मिशन फ्लाइट गोपनीय ही नहीं होगी तो दुश्मन देश आसानी से इसे ट्रैक कर सकते हैं। उन्हें इन विमानों की तैनाती की जगह का पता चल सकता है। 

सीएजी की रिपोर्ट के अनुसार, हालांकि नौसेना के मिशन को गोपनीय रखना एक अनिवार्य शर्त है लेकिन एक स्क्वॉड्रन ने दिसंबर 2016 में यह पाया कि इन विमानों के मार्ग को एक वेबसाइट पर ट्रैक किया जा सकता है। फरवरी 2018 तक इस वेबसाइट पर इन विमानों के ट्रैक को देखा जा रहा था। यह सीधे तौर पर नौसेना की मिशन फ्लाइट की गोपनीयता का उल्लंघन है।

सीएजी के मुताबिक, जब यह पूछा गया कि नौसेना ने इस संबंध में क्या कदम उठाए हैं तो बल की ओर से बताया गया कि उन्होंने नागरिक उड्डयन महानिदेशालय से इस पर बात की है और वेबसाइट से डाटा हटाने को कहा गया है। 

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रिपोर्ट के अनुसार, 'यह दर्शाता है कि आज तक नौसेना इन वेबसाइटों पर उपलब्ध फ्लाइट ट्रैकिंग डाटा को रोकने की दिशा में कोई कदम नहीं उठा सकी है।'

पूरा सौदा 2009 में यूपीए सरकार के दौरान हुआ था। अब जांच के दायरे में आने के बाद इस सौदे में हुई गड़बड़ियां सामने आ रही हैं। सीएजी की जांच में पता चला कि बोइंग को गलत तरीके से फायदा पहुंचाया गया। इस सौदे को हासिल करने की होड़ में शामिल स्पेन की कंपनी ईएडीएस कासा की बोली की गलत तरीके से बढ़वाया गया। 

एक सीएजी रिपोर्ट में कहा गया है कि यूपीए सरकार ने 2009 में नौसेना के लिए 8 टोही विमानों की आपूर्ति का ठेका अमेरिकी कंपनी बोइंग को दिया था। 10,000 करोड़ रुपये के इस सौदे के लिए 'गलत तरीके से' बोइंग को सबसे कम बोली लगाने वाली कंपनी घोषित किया गया।