यूपीए सरकार को सत्ता से हटे चार साल हो चुके हैं लेकिन अब भी उसके कार्यकाल में हुए घोटालों के सामने आने का सिलसिला जारी है। नया घोटाला नौसेना के लिए टोही विमानों की खरीद से जुड़ा है। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) की एक रिपोर्ट में सामने आया है कि यूपीए सरकार ने 2009 में आठ टोही विमानों की खरीद का ठेका देने के लिए अमेरिकी कंपनी बोइंग की बोली को 'गलत तरीके से' कम बताया। यह ठेका 10,000 करोड़ रुपये का था। 
 
रक्षा खरीद प्रक्रिया के अनुसार, अगर सेना के किसी अंग के लिए आवश्यक हथियार प्रणाली के लिए जारी ठेके की शर्तों को दो या उससे ज्यादा कंपनियां पूरी करती हैं तो यह उसे दिया जाता है, जिसकी बोली सबसे कम होगी। यूपीए के जिस सौदे पर सवाल उठ रहे हैं वह 8 पी-8आई टोही विमानों की खरीद से जुड़ा है। इसे अमेरिकी दिग्गज कंपनी बोइंग से खरीदा गया था। रूस के ट्यूपलोव-42 टोही विमान को इनसे बदला गया था। 

संसद में रखी गई सीएजी की रिपोर्ट के अनुसार, 'अमेरिकी कंपनी बोइंग ने इस ठेके के लिए 8,700.37 करोड़ रुपये की बोली लगाई थी। वहीं होड़ में शामिल स्पेन की कंपनी ईएडीएस कासा की बोली 7,776 करोड़ रुपये थी। इसके अलावा कंपनी दो साल के लिए प्रोडक्स सपोर्ट भी दे रही थी।'

संसद में रखी गई सीएजी की रिपोर्ट के अनुसार, बोइंग ने रक्षा मंत्रालय से कहा कि वह कम से कम 20 साल के लिए प्रोडक्ट सपोर्ट देगा, लेकिन रखरखाव, सामग्री और कलपुर्जों के लिए अलग अनुबंध पर बातचीत करनी होगी। साथ ही इनके लिए अलग से कीमत भी चुकानी होगी। 

रिपोर्ट में कहा गया है कि स्पेनिश कंपनी ने जो बोली लगाई थी उसमें प्रोडक्ट सपोर्ट की लागत शामिल थी। इसके बावजूद उसकी बोली बोइंग से कम थी।

सीएजी ने कहा है कि कम कीमत वाले बोलीदाता का निर्धारण करने के लिए स्पेनिश कंपनी से दो साल के प्रोडक्ट सपोर्ट की लागत घटाने को कहने के बजाय रक्षा मंत्रालय ने 18 साल के लिए अतिरिक्त प्रोडक्ट सपोर्ट की बात जुड़वा दी। इससे स्पेनिश कंपनी की बोली 8,712.44 करोड़ रुपये पहुंच गई। गौरतलब है कि 20 साल के प्रोडक्ट सपोर्ट के बावजूद स्पेनिश कंपनी की बोली बोइंग से मात्र 12 करोड़ रुपये ज्यादा थी। 

बहरहाल, नतीजा यह हुआ कि बोइंग को जनवरी 2009 में कम बोली लगाने वाली कंपनी घोषित कर दिया गया। यही नहीं उसे 10,773 करोड़ रुपये का ठेका भी दे दिया गया। इन विमानों की आपूर्ति 2013 से 2015 के बीच की गई। 

सीएजी की पड़ताल में यह भी सामने आया कि कंपनी की ओर से 2017 में वारंटी अवधि खत्म होने के बाद कोई प्रोडक्ट सपोर्ट उपलब्ध नहीं कराया गया। इसके बाद 850 करोड़ रुपये में तीन साल की अवधि के लिए एक अंतरिम सपोर्ट समझौता किया गया है। 

सीएजी के अनुसार, 'अमेरिकी कंपनी बोइंग ने जनवरी 2008 में साफ कर दिया था कि वह एक अलग अनुबंध के तहत ही 20 साल की अवधि के लिए प्रोडक्ट सपोर्ट देने की स्थिति में होगी। जून 2017 में सौदे की अवधि पूरा होने के बाद यह देखने को भी मिल गया। कुल मिलाकर सौदे के लिए मोलभाव करने वाली समिति की ओर से पूरी पड़ताल किए बिना गलत तरीके से ठेका दिया गया।'

इस रिपोर्ट के सामने आने से पहले अधिकारियों ने कुछ ऐसी ही तरकीब अगस्ता वेस्टलैंड सौदे में भी अपनाई थी। इसमें इतालवी विमान कंपनी को वायुसेना के लिए 12 वीवीआईपी हेलीकॉप्टरों की खरीद का ठेका देने के लिए अकेला विक्रेता बताया गया था।

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