2014 में रॉकेट की बात पर झेला इग्नोरेंस, पार्क में कैंप लगाया, अब स्पेश एजुकेशन देता है हीलियम लर्निंग लैब 

By Rajkumar Upadhyaya  |  First Published Aug 25, 2023, 6:17 PM IST

हरियाणा के रोहतक के रहने वाले संजय राठी अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में काम करना चाहते थे। उन्होंने बेंगलुरु के कई तकनीकी संस्थानों में जाकर बात की तो लोगों ने कहा कि आप रॉकेट की बात करते हैं। इसको लेकर गवर्नमेंट की कोई पॉलिसी नहीं है, क्या सपोर्ट मिलेगा, उन्हें इग्नोर किया।

बेंगलुरु। हरियाणा के रोहतक के रहने वाले संजय राठी अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में काम करना चाहते थे। उन्होंने बेंगलुरु के कई तकनीकी संस्थानों में जाकर बात की तो लोगों ने कहा कि आप रॉकेट की बात करते हैं। इसको लेकर गवर्नमेंट की कोई पॉलिसी नहीं है, क्या सपोर्ट मिलेगा, उन्हें इग्नोर किया। कहते हैं कि कुछ कर गुजरने का जज्बा हो तो राह खुद ब खुद बन जाती है। माई नेशन हिंदी से बात करते हुए संजय राठी कहते हैं कि फिर बेंगलुरु के कब्बन पार्क में टेंट लगाया। बैनर लगाया कि रॉकेट, सैटेलाइट में इंटरेस्ट रखने वाले कुछ बच्चों की आवश्यकता है। छह से सात वालंटियर मिलें। फिर कुछ प्रोजेक्ट्स पर काम करना शुरु किया। साल 2014-15 से शुरु कर अब वह बच्चों का अंतरिक्ष विज्ञान से जुड़े विभिन्न कोर्सेज उपलब्ध करा रहे हैं। 

2014 से चला रहे थे नॉन प्रॉफिट आर्गनाइजेशन

संजय कहते हैं कि साल 2014 से नॉन प्रॉफिट आर्गनाइजेशन चला रहे थे। साल 2020 से हीलियम लर्निंग लैब शुरु किया। 2020 में शुरु की गई संस्था रिसर्च के लिए यूज होती है। हीलियम लर्निंग लैब के जरिए स्टूडेंट्स को अंतरिक्ष विज्ञान के आनलाइन कोर्सेज उपलब्ध कराते हैं। जब वह इस क्षेत्र में लोगों को एजुकेट करने उतरे थे तो इसरो के पूर्व वैज्ञानिक ने उनकी मदद की। उन्हें ट्रेनिंग दी। बेसिक फंडामेंटल क्लियर किया। फिर संजय राठी ने इस क्षेत्र में काम शुरु किया। 

एजूकेशन सिस्टम और स्पेश इंडस्ट्री के बीच का गैप भर रहे हैं संजय 

संजय राठी स्पेश इंडस्ट्री के रिक्वायरमेंट और एजूकेशन सिस्टम का गैप भरने का काम कर रहे हैं। वह स्कूल को अप्रोच करते हैं। थ्योरी की जानकारी के अलावा बच्चों को प्रैक्टिकल और वर्कशॉप वगैरह भी कराते हैं। संजय राठी कहते हैं कि आने वाले 30 से 40 साल अंतरिक्ष विज्ञान के हैं। इंडिया को वर्क फोर्स की नीड है। हमारा चंद्रयान मिशन सफल हो चुका है। चाइना, जापान, अमेरिका, रूस आदि देश स्पेश सेक्टर में तेजी से काम कर रहे हैं। आने वाले समय में हमे स्किल्ड मैनपावर की जरुरत है। 

स्पेश में इंटरेस्ट रखने वाले बच्चों को करते हैं सपोर्ट

संजय कहते हैं कि 12वीं कक्षा के सेलेबस में परम्परागत पढ़ाई हो रही है। किसी बच्चे को यदि साइंटिस्ट बनना है तो उसे पता नहीं कि क्या पढ़ना है। टीचर को भी यह नहीं पता है कि स्पेश साइंटिस्ट बनने के लिए क्या विषय होना चाहिए। सामान्य तौर पर बच्चों ने सिर्फ ग्रहों और गैलेक्सी का नाम सुन रखा है और 12वीं कक्षा के बाद खुद को परम्परागत कोर्सेज में इनवाल्व कर लेते हैं।

वर्कशॉप और आनलाइन इवेंट भी

संजय कहते हैं कि हम कक्षा 6 से 12 तक के उन बच्चों को सपोर्ट करते हैं, जिनका अंतरिक्ष विज्ञान में इंटरेस्ट है। उनके लिए हमने एस्ट्रोनॉट, रॉकेट, रोबोटिक्स, सैटेलाइट, स्पेश रोवर्स, एस्ट्रोनामी, एस्ट्रोबायोलॉजी पर कोर्सेज डिजाइन कर रखे हैं। हम उन बच्चों को एजुकेट करते हैं, वर्कशॉप और आनलाइन इवेंट कराते हैं। उनको सपोर्ट उपलब्ध कराते हैं ताकि वह खुद को मोटिवेट रख सकें। उनकी कॅरियर काउंसिलिंग भी करते हैं।

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