दिन में पिता के साथ ढोया ईंट, रात में चिमनी की रोशनी में पढ़ाई और गरीबी की जंजीर तोड़ संतोष ने रचा इतिहास

By Surya Prakash TripathiFirst Published Sep 15, 2024, 11:08 AM IST
Highlights

मध्य प्रदेश के देवगांव गांव से आने वाले डीएसपी संतोष कुमार पटेल की प्रेरणादायक कहानी, जिन्होंने गरीबी और संघर्ष के बावजूद एमपीपीएससी में 22वीं रैंक हासिल की और पुलिस अधिकारी बने।

Success Story: मध्य प्रदेश के एक छोटे से गांव से आने वाले DSP संतोष कुमार पटेल ने मिट्टी के तेल के लैंप की रोशनी में पढ़ाई की और दो जून की रोटी के लिए मजदूरी की, ईंटें उठाईं। बिना किसी हिचकिचाहट के उन्होंने  MPPSC में 22वीं रैंक हासिल की। ​आज हम उन्हीं के संघर्ष की कहानी बताते हैं। 

संतोष ने दरांती छोड़ कलम को चुना
एक वक्त ऐसा आया जब एक नन्हें से बालक जिसकी उम्र बामश्कुिल 12 से 15 साल रही होगी, उसे अपने भविष्य को चुनना था। 15 साल के इस बालक के सामने दो ऑप्शन थे, पहला दरांती, जिससे पिता राजगीरी करते थे और दूसरा कलम, जिसका परिवार से दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं था। इस बालक के सामने बड़ी दुविधा थी। एक ओर खुद के साथ परिवार का पेट भरने के लिए दो वक्त की रोटी की जरूरत थी, तो दूसरी तरफ उसके अंदर पढ़ने की ललक थी। इस दुविधा से बच्चे को उसके मजदूर माता- पिता ने निकाला। 

गरीबी से जूझते हुए हासिल की सफलता
जिसका असर यह हुआ कि यह बालक आगे चलकर अपनी मेहनत के बूते आज एक पुलिस उपाधीक्षक (DSP) रैंक के अधिकारी बन गया। जी हां हम बात कर रहे हैं, मध्य प्रदेश के देवगांव गांव के रहने वाले संतोष कुमार पटेल की, जिन्होंने बहुत ही सीमित संसाधनों के साथ गरीबी से जूझते हुए अपनी पहाड़ सी दिखने वाली मंजिल को पाया है। 

अच्छे दिनों में चावल, बाकी दिनों दलिया से भरता था पेट
एक समय इस परिवार को पेट भर खाना मिलना मुश्किल था। 31 वर्षीय DCP संतोष पटेल ने द बेटर इंडिया से बातचीत में याद करते हुए बताया कि अच्छे दिनों में हम चावल खाते थे, बाकी दिनों में हम केवल दलिया खाते थे। कभी-कभी, जब हमारे पास गेहूं नहीं होता था, तो हम ज्वार की रोटियां खाते थे। स्कूल में अपने दोस्तों से गेहूं की रोटियां उधार लेते थे। छोटी उम्र से ही गरीबी देखने के बावजूद संतोष ने अपने पिता, जो राजमिस्त्री थे, और अपनी मां, जो खेतिहर मज़दूर थीं, से कड़ी मेहनत का मूल्य सीखा।

पिता के साथ मजदूरी करने जाते थे DSP संतोष
संतोष कुमार पटेल अक्सर अपने पिता की मदद करते थे। जहां भी पिता राजगीरी करने जाते, संतोष उनके साथ लेबर का काम करने चले जाते। पिता ईंटों की चुनाई करते तो संतोष ईंट ढोते। खेतों में भी अपनी मां की मदद करते थे। जहां दंपत्ति अपनी सुरक्षा को लेकर चिंतित थे, वहीं उनका बेटा उनकी सुरक्षा को लेकर चिंतित था।

कुएं में काम करने के दौरान कई बार पिता को जख्मी होते देखा
संतोष ने बताया कि उनके पिता  गर्मियों में  गांव में कुएं बनाते थे। चूंकि यह एक रिस्क भरा काम है, इसलिए बहुत कम राजमिस्त्री इसे करते थे। कई बार, जब वह कुंए के अंदर काम कर रहे होते तो उन पर पत्थर गिरते थे। शुक्र है कि पत्थर उनके सिर पर नहीं बल्कि केवल हाथ और पैरों पर गिरे, जिससे वह घायल हो जाते थे। पिता के संघर्षों को याद कर भावुक होने वाले संतोष बताते हैं कि उनके माता पिता उनके भविष्य को लेकर बहुत परेशान थे।

माता-पिता ने संतोष को पढ़ने  के लिए किया प्रेरित
माता-पिता बेटे संतोष के बेहतर भविष्य बनाने के लिए उन्हें खूब पढ़ाना चाहते थे। इसलिए बेटे संतोष को माता- पिता दोनों उसे लगातार मोटिवेट करते रहते थे।  दृढ़ संकल्प और समर्पण ने उन्हें मिट्टी के तेल के लैंप के नीचे पढ़ाई करने और 10वीं कक्षा में टॉप करने के लिए माता-पिता ने दिन रात एक करके बेटे संतोष को कड़ी मेहनत करने के लिए प्रेरित किया।

15 महीने की मेहनत के बूते MPPSC में हासिल की 22वीं रैक
संतोष ने पुलिस बल में शामिल होने का फैसला करने से पहले अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई जारी रखी। 15 महीने की कड़ी तैयारी के बाद उन्होंने जुलाई 2017 में 22वीं रैंक के साथ परीक्षा पास की। आखिरकार 2018 में वह पुलिस बल में शामिल हो गए। कलम उठाने वाले संतोष कहते हैं कि मैं जनता की सेवा करना और पुलिस की छवि को बेहतर बनाना चाहता हूं। पुलिस से अपराधियों को ही डरना चाहिए। अपनी जांच में मैं यह सुनिश्चित करता हूं कि निर्दोष लोगों को कभी सलाखों के पीछे न डाला जाए।
 


ये भी पढ़ें...
जॉब छोड़ी, 40 हजार से किया कमाल: कैसे खड़ा किया IndiaMART?

click me!