सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक, बच्ची की कम उम्र, असहाय स्थिति और क्षत-विक्षत शव का पाया जाना फांसी की सजा के लिए जघन्य क्रूरतम अपराध होने की शर्त के दायरे में आता है।
कठुआ में आठ साल की बच्ची से बलात्कार और हत्या के बहुचर्चित मामले में स्पेशल कोर्ट ने छह दोषियों में से तीन को उम्रकैद की सजा सुनाई है। वहीं तीन अन्य को सबूत मिटाने के आरोप में पांच-पांच साल की सजा दी गई है। इस वीभत्स मामले में दोषियों के लिए फांसी की मांग कर रहे पीड़ित परिवार और सामाजिक संगठनों को भले ही निराशा हुई हो लेकिन दोषियों पर अब भी फांसी की तलवार लटक रही है। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कर रखा है कि फांसी की सजा किन मामलों में दी जा सकती है।
सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक, बच्ची की कम उम्र, असहाय स्थिति और क्षत-विक्षत शव का पाया जाना फांसी की सजा के लिए जघन्य क्रूरतम अपराध होने की शर्त के दायरे में आता है।
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किसी दोषी को फांसी की सजा किन परिस्थितियों सुनाई जा सकती है, इसको जानने के लिए नौ मई 1980 के बच्चन सिंह और 20 जुलाई 1983 के माछी सिंह के मामले में दिए गए सुप्रीम कोर्ट के फैसले को जानना जरूरी है। बच्चन सिंह के केस में कोर्ट ने हत्या के जुर्म में फांसी की सजा के कानून को संवैधानिक ठहराया था।
कोर्ट ने फांसी के लिए दिशा-निर्देश तय करते हुए कहा था कि हत्या में उम्रकैद की सजा देना नियम है जबकि फांसी अपवाद होगा।
कोर्ट ने तय किया था कि किस तरह के अपराध को फांसी के लिए जघन्य माना जाएगा। फांसी देने की परिस्थितियों का उदाहरण देते हुए कोर्ट ने कहा था कि सोच विचार कर पूर्व नियोजित, कोल्ड ब्लडेड हत्या हमेशा हत्या के लिए एक परिस्थिति मानी जा सकती है।
कोर्ट ने पूर्व फैसले का हवाला देते हुए कहा था कि अगर हत्या क्रूरतापूर्ण सोच के साथ बहुत क्रूर तरीके से की गई है तो ऐसे मामले में हत्यारे को फांसी दिया जाना सही है।
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कोर्ट ने कहा था कि हथियार और हत्या में उसके इस्तेमाल का तरीका, अपराध की भीषणता और पीड़ित की असहाय स्थिति आदि कठोर दंड देने के लिए कानून का दिल सख्त करती है।
हालांकि उसमें कोर्ट ने अपराधी को फांसी देते समय अपराधी और अपराध की परिस्थितियों पर भी विचार करने की बात कही थी। इसके तीन साल बाद माछी सिंह का फैसला आया और उसमें कोर्ट ने बताया कि कैसे अपराध में फांसी दी जा सकती है।
इन दोनों मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने दोनों को फांसी की सजा सुनाई थी। इन दोनों पर कई हत्याओं का आरोप था। सुप्रीम कोर्ट में की गई अपील में दोनों मामलों में फांसी की सजा के प्रावधान को चुनौती दी गई थी। जिस पर सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने फांसी की सजा की परिभाषा तय की थी।
कोर्ट ने कहा कि जब हत्या करने का तरीका बहुत क्रूर, भद्दा, भीषण और घिनौना हो या अपराध को ऐसे नीच तरीके से अंजाम दिया गया हो।
उदाहरण देते हुए कोर्ट ने कहा था कि जैसे किसी को जिंदा जलाने के लिए घर में आग लगा लेना या हत्या में प्रताड़ना, क्रूरता की गई हो। शव को टुकड़े किए गए हो। अपराध की असामाजिक और घृणित प्रकृति हो। अन्य श्रेणियां बताते हुए कोर्ट ने कहा था कि जब पीड़ित अबोध बच्चा हो, जो अपराध के लिए उकसाना तो दूर अपना बचाव करने में भी असमर्थ हो।