यूपी में सपा-बसपा-रालोद के महागठबंधन का प्रयोग मनमाफिक नतीजे नहीं दे पाया। एक-दूसरे को अपना वोट ट्रांसफर कर भाजपा का सियासी मंसूबा तोड़ने का दावा करने वाली सपा-बसपा अपना ही वोट प्रतिशत गंवा बैठी। वहीं लगातार दूसरी बार रालोद अपना प्रत्याशी लोकसभा में पहुंचाने में नाकाम रही।
उत्तर प्रदेश से भाजपा को उखाड़ फेंकने के नारे के साथ सपा-बसपा-रालोद ने महागठबंधन बनाया था। पश्चिमी उत्तर प्रदेश और पूर्वांचल के जातीय गणित के हिसाब से मजबूत माने जा रहे इस गठजोड़ को उम्मीद के मुताबिक सफलता नहीं मिली। महागठबंधन भले ही एनडीए का आंकड़ा 2014 के 73 से घटाकर 64 ले आया हो लेकिन ऐसा करिश्मा करने में नाकाम रहा जिसकी उम्मीद की जा रही थी। महागठबंधन के अति आत्मविश्वास और भाजपा की मजबूत रणनीति ने एनडीए को पहले चरण में बड़े झटके से बचा लिया और इससे मिले आत्मविश्वास ने ऐसी हवा बनाई जो अंतिम चरण तक बड़े सियासी तूफान में बदल गई और महागठबंधन की उम्मीदों को अपने साथ उड़ा ले गई। 2014 के चुनाव में भाजपा ने पश्चिम यूपी की सभी सीटें जीती थीं।
वोट प्रतिशत के लिहाज से सपा-बसपा-रालोद के महागठबंधन का प्रयोग बिल्कुल नाकाम साबित हुआ। एक-दूसरे को अपना वोट ट्रांसफर कर भाजपा का सियासी मंसूबा तोड़ने का दावा करने वाली सपा और बसपा अपना ही वोट प्रतिशत गंवा बैठी। चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में जहां सपा को 22.35 प्रतिशत वोट मिले थे, वहीं इस बार यह आंकड़ा घटकर 17.96 फीसद ही रह गया। पिछली बार बसपा को 19.77 प्रतिशत मत प्राप्त हुए थे, जो इस बार घटकर 19.26 फीसद रह गया।
जहां तक रालोद का सवाल है तो पिछली बार की तरह ही वह इस बार भी एक भी सीट जीतने में सफल नहीं रहा। हालांकि उसका वोट प्रतिशत 0.86 प्रतिशत से बढ़कर 1.67 फीसद हो गया। हालांकि सामूहिक सफलता के नाम पर सिर्फ बसपा को फायदा हुआ। 2014 में शून्य पर आ गई बसपा इस बार 10 सीटें जीत गई।
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11 अप्रैल को शुरु हुए लोकसभा चुनाव 2019 के पहले चरण में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में वोट डाले गए। यहां 8 सीट दाव पर थी। जातीय समीकरण के लिहाज से महागठबंधन के लिए मुफीद मानी जा रही इन सीटों में से छह सीटें भाजपा ने झटक लीं। इसमें उपचुनाव में हारी गई कैराना सीट भी शामिल है। इसके अलावा पार्टी ने मुजफ्फरनगर, मेरठ, बागपत, गाजियाबाद और गौतमबुद्धनगर सीट जीती। इस दौर में सहारनपुर और बिजनौर सीट बसपा के हाथ लगी।
18 अप्रैल को दूसरे चरण के मतदान में भाजपा ने 8 में से छह सीटें जीतीं। पार्टी ने जहां बुलंदशहर, अलीगढ़, हाथरस, मथुरा, आगरा और फतेहपुर सीकरी सीट अपने खाते में डाली वहीं नगीना और अमरोहा बसपा के हाथों गंवाई।
यूपी में तीसरे चरण के दौरान 23 अप्रैल को 10 सीटों के लिए मतदान हुआ था। इनमें मुरादाबाद, रामपुर, संभल, फिरोजाबाद, मैनपुरी, एटा, बदायूं, आंवला, बरेली और पीलीभीत शामिल हैं। भाजपा को यहां मुस्लिम बहुल मुरादाबाद, रामपुर और संभल सीट गंवानी पड़ी। मैनपुरी में सपा नेता मुलायम सिंह भी जीतने में सफल रहे। इस सीट के लिए बसपा अध्यक्ष मायावती ने मुलायम सिंह के समर्थन में रैली की थी।
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29 अप्रैल जिन 10 लोकसभा सीटों के लिए मतदान हुआ था, भाजपा ने सभी पर जीत दर्ज की है। इसमें कन्नौज सीट भी शामिल है। यहां भाजपा प्रत्याशी सुब्रत पाठक ने सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव की पत्नी और पूर्व सांसद डिंपल यादव को हराया। भाजपा ने इस चरण में शाहजहांपुर, खीरी, हरदोई, मिश्रिख, उन्नाव, फर्रुखाबाद, इटावा, कानपुर, अकबरपुर, जालौन, झांसी और हमीरपुर सीट भी जीती। छह मई को यूपी की 14 सीट के लिए चुनाव था। इस चरण में भाजपा ने महज एक सीट रायबरेली गंवाई। वहीं धौरहरा, सीतापुर, मोहनलालगंज, लखनऊ, रायबरेली, अमेठी, बांदा, फतेहपुर, कौशांबी, बाराबंकी, फैजाबाद, बहराइच, कैसरगंज और गोंडा उसके खाते में आई।
12 मई को यूपी की जिन 14 सीटों के लिए मतदान हुआ उनमें से भाजपा को पांच सीटें गंवानी पड़ी। पार्टी महागठबंधन से अंबेडकरनगर, श्रावस्ती, जौनपुर, लालगंज और आजमगढ़ सीट हार गई। वहीं सुल्तानपुर, प्रतापगढ़, फूलपुर, इलाहाबाद, डुमरियागंज, बस्ती, संतकबीरनगर, मछलीशहर और भदोही उसके खाते में गई। मछलीशहर सीट का फैसला 2019 के लोकसभा चुनाव में सबसे कम अंतर से हुआ। यह सीट भाजपा के भोलानाथ ने बसपा के त्रिभुवन राम से महज 181 वोट से जीती है।
19 मई को सातवें चरण में पूर्वांचल की 13 सीट के लिए मतदान हुआ। भाजपा ने इनमें से 13 सीटें महाराजगंज, गोरखपुर, कुशीनगर, देवरिया, बांसगांव, सलेमपुर, बलिया, चंदौली, वाराणसी, मिर्जापुर और रॉबर्ट्सगंज जीती हैं। वहां पार्टी को घोषी और गाजीपुर में बसपा के हाथों हार का सामना करना पड़ा। गाजीपुर सीट पर केंद्रीय मंत्री मनोज सिन्हा बाहुबली मुख्तार अंसारी के भाई अफजाल अंसारी से हार गए।