राजनीतिक रूप से सबसे महत्वपूर्ण कहे जाने वाले उत्तर प्रदेश के नतीजों ने लगातार तीसरी बार चौंकाया है। 2014 से यूपी में मजबूत हुई भाजपा ने 2019 में भी अपनी पकड़ बनाए रखी। सपा-बसपा के मजबूत गठबंधन के बावजूद पार्टी ने लगभग 50 प्रतिशत वोट हासिल कर किसी भी तरह की आशंका को टाल दिया। संगठन कौशल के दम पर पार्टी ने 62 सीटें जीतीं और सहयोगी पार्टी अपना दल (सोनेलाल) को भी दो सीटें दिलाईं।

परिवारवाद और जाति का घेरा टूटा

उत्तर प्रदेश के नतीजों पर नजर डालें तो भाजपा ने पीएम मोदी के करिश्मे की बदौलत जाति के तिलिस्म को तोड़ा। भाजपा 49.55 प्रतिशत वोट और 4,28,57,221 वोट हासिल हुए। दूसरी ओर बसपा को 19.29 प्रतिशत वोट मिले। एसपी का मत प्रतिशत 17.97 रहा। वहीं राष्ट्रीय लोकदल को 1.67 प्रतिशत वोट मिले। कांग्रेस के वोट प्रतिशत में 2014 के मुकाबले गिरावट देखने को मिली। पार्टी को 6.31 प्रतिशत वोट मिले। खास बात यह है कि सपा, बसपा और आरएलडी को जाति आधारित पार्टी माना जाता है। सपा जहां पूरी तरह यादव और मुस्लिम वोटों के गठजोड़ पर आधारित है, वहीं बसपा के पास बड़ा दलित वोट बैंक है। आरएलडी की राजनीति भी जाट वोटवैंक के इर्दगिर्द सीमित नजर आती है। जहां 2019 के चुनाव में आरएलडी सुप्रीमो अजीत सिंह और उनके बेटे जयंत हार गए, वहीं सपा को भी अपने मजबूत वोटबैंक वाले इलाकों में हार का सामना करना पड़ा। पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव की पत्नी और पूर्व सांसद डिंपल यादव कन्नौज सीट से चुनाव हार गईं। बदायूं से धमेंद्र यादव और फिरोजाबाद से अक्षय यादव को हार का सामना करना पड़ा है। 

भाजपा ने लगातार बढ़ाया अपना वोट प्रतिशत

2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को 42.63 प्रतिशत वोट हासिल हुए थे। 2019 में पार्टी ने अपने वोट शेयर में 7 फीसदी से ज्यादा का इजाफा किया है। पार्टी का वोट प्रतिशत 49.55% पहुंच गया। वहीं सपा-बसपा के साथ-साथ कांग्रेस का वोट शेयर पहले से घट गया है। सपा को साल 2014 में 22.35%, बीएसपी को 19.77% और कांग्रेस को 7.53% प्रतिशत वोट मिले थे। यानी साल 2014 के मुकाबले सपा को इस बार 4 फीसदी और कांग्रेस को 1 फीसदी से ज्यादा का नुकसान हुआ है। बीएसपी कुछ हद तक वोट बैंक बचाने में कामयाब रही लेकिन उसे भी दशमलव 34 प्रतिशत का नुकसान झेलना पड़ा है। 

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10 साल में 17 से 50 प्रतिशत के पास पहुंची भाजपा

भाजपा को साल 2009 के लोकसभा चुनाव में 17.5 प्रतिशत वोट मिले थे। तब पार्टी 10 सीट जीतने में सफल रही थी। वहीं बसपा को 27.4%, सपा को 23.26% और कांग्रेस को 18.25% वोट मिले थे। लेकिन बसपा को 20, कांग्रेस को 21 और सपा को 23 सीटें मिली थीं।  भाजपा ने 2014 के लोकसभा चुनावों में अप्रत्याशित रूप से अपना वोटबैंक बढ़ाया और 42.63% वोट हासिल किए। पार्टी ने 71 सीटें जीती थीं। बसपा के वोट में 8 प्रतिशत की गिरावट आई और पार्टी 0 पर पहुंच गई। वहीं  सपा ने अपने वोट प्रतिशत को बरकरार रखा और 22.35% वोट के साथ 5 सीटें जीतीं। कांग्रेस को साल 2014 में 7.35% वोट और दो सीटें मिलीं। चुनाव आयोग के मुताबिक, 2019 में भाजपा का वोट प्रतिशत 49.55% पहुंच गया है। सपा को 17.97% और बसपा को 19.29% वोट मिले हैं। कांग्रेस के खाते में 6.28%वोट आए हैं। 

2017 के विधानसभा चुनाव से बन गया था माहौल

राजनीतिक में गठजोड़ से ज्यादा केमिस्ट्री असर डालती है। भाजपा की 2017 के विधानसभा चुनाव में मिली अप्रत्याशित कामयाबी से साफ हो गया था कि पार्टी इस सूबे को अपना गढ़ बना रही है। भाजपा ने 2017 के विधानसभा चुनाव में 326 सीटें जीतकर तहलका मचाया था। पार्टी को विधानसभा चुनाव में 41.35% वोट मिले थे। यानी भाजपा अपने 2014 के वोट प्रतिशत 42.63 के आसपास ही रही। वहीं सपा को 28.7% और बसपा को 22.23% वोट मिले। इन नतीजों ने साफ कर दिया था कि भाजपा की 2014 की सफलता को एक बार मिली जीत मानना बड़ी चूक थी। साथ ही सपा-बसपा के लिए अकेले भाजपा से टक्कर लेना मुश्किल है। इसके बाद सपा-बसपा ने साझा रणनीति की पहल की। सफलता गोरखपुर, फूलपुर, कैराना लोकसभा सीट पर मिली। इसके बाद 2019 चुनाव से पहले यूपी में महागठबंधन की बुनियाद पड़ी। हालांकि यह भी सपा-बसपा के खाते में नहीं गया और तमाम जोड़-घटाने के बावजूद दोनों पार्टियां सूबे में 15 सीटें ही जीत सके। वहीं भाजपा ने अपने वोट में सात प्रतिशत का इजाफा कर किसी बड़ी सियासी हार को  टाल दिया।