भारत के हथियारों की बढ़ती लोकप्रियता के पीछे क्या वजह है? जानें कैसे भारतीय डिफेंस इंडस्ट्री ने वैश्विक बाजार में अपनी जगह बनाई, ब्रह्मोस मिसाइल से लेकर अमेरिकी पुर्जों तक की बढ़ती मांग, और डिफेंस एक्सपोर्ट में हुई रिकॉर्ड बढ़ोत्तरी।
नयी दिल्ली। पिछले कुछ वर्षों में भारत ने डिफेंस सेक्टर में लंबी छलांग लगाई है। ग्लोबल मार्केट भारतीय हथियारों को पसंद कर रहा है। देश में बने हथियार, मिसाइल, बंदूकें और जहाज दुनिया भर में पॉपुलर हो रहे हैं। ब्रह्मोस मिसाइल की मांग, अमेरिका के लिए पुर्जे बनाने से लेकर आर्मेनिया को तोपें देने तक, यह सब चीजें देश की नयी पहचान बनकर उभरी हैं। मौजूदा वर्ष में भारत का डिफेंस एक्सपोर्ट 21,000 करोड़ रुपये पार कर गया है, जो दस साल पहले की तुलना में 30 गुना ज्यादा है। भले ही पहले देश महंगे विदेशी हथियारों के इम्पोर्ट के लिए जाना जाता था। पर अब भारत ग्लोबल लेबल पर अपने हथियारों के एक्सपोर्ट की वजह से भी जाना जा रहा है।
आजादी मिलने के बाद कंट्रोल में लिया डिफेंस सेक्टर
हालांकि, ट्रेडिशनली भारत डिफेंस इंडस्ट्री का बड़ा प्लेयर नहीं रहा है। 1947 में आजादी मिलने के बाद भारत सरकार ने डिफेंस सेक्टर को अपने कंट्रोल में लिया और पब्लिक सेक्टर की कई महत्वपूर्ण कम्पनियां स्थापित की। उनमें भारत इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड (BEL), मझगांव डॉक्स और हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) प्रमुख हैं। बुनियादी रक्षा उपकरण बनाने पर फोकस किया। विदेशों से घातक हथियारों के अलावा उपकरण बनाने के प्रमुख सामान खरीदने शुरू किए।
हथियारों के निर्यात के आंकड़े
1959 से दशकों तक छोटे पैमाने पर शुरू हुआ भारत का डिफेंस एक्सपोर्ट।
प्रमुख रूप से मित्र देशों को पुरानी तकनीक बेचने का काम किया।
2001 में डिफेंस सेक्टर की तस्वीर बदलनी शुरू हुई।
साल 2004 से 2014 तक रक्षा निर्यात ₹4,312 करोड़ हुआ।
2014-15 से पिछले साल तक ₹88,319 करोड़ तक बढ़ गया।
अब दुनिया के 90 देशों को भारत हथियार एक्सपोर्ट कर रहा है।
डिफेंस एक्सपोर्ट में बदलाव के प्रमुख कारण
भारत के डिफेंस सेक्टर में बदलाव आने की तीन प्रमुख वजहें मानी जाती हैं।
सितम्बर 2014 में हथियारों की बिक्री को बढ़ावा देने के लिए टॉप ब्यूरोक्रेटस को साथ लाकर डिफेंस एक्सपोर्ट स्ट्रेटजी पेश की।
2025 तक डिफेंस एक्सपोर्ट में $5 बिलियन का लक्ष्य निर्धारित तय किया गया।
आत्मनिर्भरता के महत्व पर फोकस करने की रणनीति ने भी रंग दिखाया।
सशस्त्र बलों के लिए स्वदेशी प्रोडक्ट को प्रॉयरिटी दी गई।
हजारों रक्षा उपकरणों के इम्पोर्ट पर बैन लगाया गया तो भारतीय फर्मों ने मजबूर होकर देश में ही ऐसे उपकरण बनाने शुरू किए।
आसान बनाया प्रॉसेस
भारत सरकार ने डिफेंस सेक्टर की कम्पनियों के एक्सपोर्ट लाइसेंस का प्रॉसेस आसान बनाया।
भारत ने अफ्रीका के देशों को लोन देने की सीमा बढ़ाई, ताकि वह अनुकूल शर्तों पर रक्षा उपकरण खरीद सकें।
श्रीलंका, वियतनाम, गुयाना और तंजानिया जैसे देशों को इसका फायदा मिला।
भारत के डिफेंस एक्सपोर्ट का 50 फीसदी अमेरिका को जाता है।
देश की जानी मानी कंपनियां सरकारी संस्थाओं के साथ मिलकर तेजी से काम कर रही हैं।
प्राइवेट सेक्टर की कंपनियां भी डिफेंस सेक्टर में 20 साल पहले उभरकर सामने आईं।