भारत में कहां आ सकती है वायनाड जैसी तबाही, जानें किसने और क्यों चेताया?

By Rajkumar Upadhyaya  |  First Published Aug 1, 2024, 8:46 PM IST

वायनाड में हाल की लैंडस्लाइड ने गाडगिल पैनल रिपोर्ट को फिर से चर्चा में ला दिया है। जानें क्यों माधव गाडगिल की रिपोर्ट ने वेस्टर्न घाटों को संवेदनशील बताया और कैसे इसकी सिफारिशें भविष्य की त्रासदी से बचने में सहायक हो सकती हैं।

नयी दिल्ली। केरल के वायनाड में हुए लैंडस्लाइड में 150 लोगों को मौत हो गई। राहत और बचाव कार्य अभी भी जारी है। इसी बीच एक बार फिर माधव गाडगिल पैनल रिपोर्ट चर्चा बटोर रहा है। जिसमें वेस्टर्न घाटों को बेहद संवदेनशील बताया गया था और इन क्षेत्रों में खनन और अन्य गतिविधियों पर रोक लगाने की सिफारिश की गई थी। रिपोर्ट में विशेष रूप से संवेदनशील क्षेत्रों की पहचान की गई थी, जिनमें से एक मेप्पाडी था, जो अब लैंडस्लाइड से प्रभावित हुआ है।

कौन हैं माधव गाडगिल?

महाराष्ट्र के माधव धनंजय गाडगिल (82 वर्ष) भारतीय इकोलॉजिस्ट (पारिस्थितिकीविद्) हैं। शिक्षाविद, लेखक, स्तंभकार के साथ पारिस्थितिकी विज्ञान केंद्र के फाउंडर भी हैं। यह केंद्र एक रिसर्च प्लेटफॉर्म है, जो भारतीय विज्ञान संस्थान के तत्वावधान में संचालित किया जाता है। वह प्रधानमंत्री के वैज्ञानिक सलाहकार परिषद के पूर्व सदस्य भी रहे हैं। साल 2010 में केंद्र सरकार के एक कार्यकारी आदेश से वेस्टर्न घाट के पारिस्थितिकी विशेषज्ञ पैनल (WGEEP) के प्रमुख बने थे। उसे ही गा​डगिल आयोग कहते हैं। आयोग को वेस्टर्न घाट के कायाकल्प और सुरक्षा का काम दिया गया था। उन्हें वोल्वो पर्यावरण पुरस्कार और टायलर पुरस्कार मिल चुका है। 1981 में पद्म श्री और 2006 में पद्म भूषण से भी सम्मानित किए गए थे।

2011 में केंद्र सरकार को सौंपी रिपोर्ट, हुई आलोचना

विकीपीडिया के मुताबिक, गा​डगिल आयोग ने 31 अगस्त 2011 को केंद्र सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंपी। जिसमें प्रमुख तौर पर एक राष्ट्रीय स्तर के वेस्टर्न घाट पारिस्थितिकी प्राधिकरण (WGEA) की सिफारिश की गई थी। पर उनकी रिपोर्ट का केरल के कुछ वर्ग के लोगों ने विरोध किया। उनका तर्क था कि वह वायनाड के पहाड़ी इलाको से अपनी जीविका चलाते हैं। गाडिगिल रिपोर्ट पर अधिक पर्यावरण-अनुकूल और जमीनी हकीकत के अनुरूप न होने का आरोप लगाया गया था। नतीजतन, केंद्र सरकार ने उनकी रिपोर्ट खारिज कर एक नई कमेटी का गठन कर दिया। उस कमेटी ने वेस्टर्न घाट में संवेदनशील इलाकों की सीमा को लगभग 37 प्रतिशत तक कम कर दिया। हालांकि यूनेस्को ने वेस्टर्न घाट के 39 स्थलों को विश्व धरोहर सूची में शामिल किया।

क्या कहती है गाडगिल कमेटी की रिपोर्ट?

  • वेस्टर्न घाटी की हिल रेंज इकोलॉजी के हिसाब से बेहद संवेदनशील।
  • संवेदनशील इलाकों में खनन पर रोक लगे।
  • संवेदनशील इलाकों में 5 वर्षों में खनन पूरी तरह बंद किया जाए।
  • रासायनिक कीटनाशकों का यूज 8 वर्षों में समाप्त किया जाए।
  • तीन वर्षों में प्लास्टिक की थैलियों को समाप्त करने की सिफारिश।
  • 142 तालुकों को 1, 2 और 3 कैटेगरी के पारिस्थितिक संवेदनशील क्षेत्रों में बांटा।
  • 1 और 2 कैटेगरी में स्पेशल इकोनॉमिक जोन से जुड़े निर्माण कार्य पर रोक की सिफारिश।
  • इन कैटेगरी में रेलवे, बांधों, हिल स्टेशन और रोड प्रोजेक्ट के निर्माण न हों।
  • वन से गैर वन और सार्वजनिक से प्राइवेट प्रॉपर्टी के रूप में भूमि उपयोग में परिवर्तन न करने की सिफारिश।

गाडगिल कमेटी: 18 संवेदनशील क्षेत्रों को किया आइडेंटिफाई

गाडगिल कमेटी ने ऐसे 18 पारिस्थितिकी संवेदनशील क्षेत्रों को आइडेंटिफाई किया था। जहां त्रासदी की संभावना थी। उनमें मेप्पाडी भी शामिल था, जो मंगलवार को लैंडस्लाइड में पूरी तरह बर्बाद हो गया। इन इलाकों में इनवायरमेंट को पहुंचाए जा रहे नुकसान की तरफ सरकार का ध्यान अट्रैक्ट किया गया था। साथ ही यह चेतावनी भी दी गई थी कि यदि इन क्षेत्रों में खनन और निर्माण के काम नहीं रूके तो कभी भी लैंडस्लाइड की घटना घट सकती है। जिसमें कई गांवों को नुकसान पहुंच सकता है। 

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