महाकुंभ 2025: संगम स्नान बाद इस मंदिर दर्शन से मिलेगा पूर्ण फल, समुद्र मंथन से क्या कनेक्शन?

By Rajkumar Upadhyaya  |  First Published Dec 11, 2024, 11:40 PM IST

महाकुंभ 2025: प्रयागराज के पौराणिक मंदिरों में एक खास मंदिर है–नागवासुकी मंदिर। यह मंदिर गंगा नदी के तट पर स्थित है। जानिए इसका धार्मिक महत्व।

महाकुम्भ नगर। यूपी के प्रयागराज को तीर्थराज भी कहा जाता है। महाकुंभ के अवसर पर देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु यहां संगम स्नान के लिए आते हैं। साथ ही पौराणिक और धार्मिक महत्व वाले स्थलों के दर्शन भी करते हैं। ऐसे धार्मिक स्थलों के बीच नागवासुकी मंदिर को विशेष दर्जा प्राप्त है। मान्यताओं के मुताबिक, संगम स्नान करने के बाद मंदिर का दर्शन करना चाहिए, तभी पूर्ण फल मिलता है। हमारे पौराणिक कथाओं में इसकी वजह भी बताई गई है। आइए उसके बारे में जानते हैं। 

नागवासुकी मंदिर का समुद्र मंथन से क्या कनेक्शन?

पुराणों के अनुसार, समुद्र मंथन के समय नागवासुकी को देवताओं और असुरों ने रस्सी के रूप में उपयोग किया था। मंदराचल पर्वत को मथानी बनाया गया और नागवासुकी को पर्वत के चारों ओर लपेटा गया। समुद्र मंथन के दौरान पर्वत की रगड़ से नागवासुकी का शरीर घायल हो गया। भगवान विष्णु के आदेश पर नागवासुकी ने त्रिवेणी संगम में स्नान किया और अपने घावों से मुक्ति पाई और तब नागवासुकी जी ने प्रयाग में विश्राम करने का निर्णय लिया। 

प्रयागराज में नागवासुकी मंदिर कैसे बना?

मान्यताओं के अनुसार, एक बार वाराणसी के राजा दिवोदास ने तपस्या कर उन्हें प्रसन्न किया और उनसे काशी चलने का वरदान मांगा। पर देवताओं के आग्रह पर वह संगम तट पर ही स्थायी रूप से स्थापित हो गए। उन्होंने शर्त रखी कि संगम स्नान के बाद उनका दर्शन करना आवश्यक होगा और नागपंचमी के दिन उनकी पूजा तीनों लोकों में होनी चाहिए। ब्रह्माजी के मानस पुत्र ने नागवासुकी जी के लिए गंगा तट पर मंदिर का निर्माण कराया। यह मंदिर आज प्रयागराज के दारागंज मोहल्ले में स्थित है और संगम के तट पर श्रद्धालुओं के लिए एक प्रमुख आस्था का केंद्र है।

भोगवती तीर्थ कुंड का मां गंगा से क्या संबंध?

एक अन्य कथा के अनुसार, जब गंगा का धरती पर अवतरण हुआ तो उनका वेग इतना तीव्र था कि वे सीधे पाताल लोक में प्रवेश करने लगीं। नागवासुकी ने अपने फन से भोगवती तीर्थ का निर्माण किया और गंगा के वेग को नियंत्रित किया। मंदिर के पुजारी के अनुसार, प्राचीन काल में मंदिर के पश्चिमी भाग में भोगवती तीर्थ कुंड स्थित था। हालांकि, अब यह समाप्त हो चुका है।

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