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इन्फीबीम एवेन्यूज क्‍या काम करती है, मालिक कौन? जिसने Rediff में हासिल की बड़ी हिस्सेदारी

Rajkumar Upadhyaya |  
Published : Aug 03, 2024, 07:05 PM ISTUpdated : Aug 03, 2024, 07:07 PM IST
इन्फीबीम एवेन्यूज क्‍या काम करती है, मालिक कौन? जिसने Rediff में हासिल की बड़ी हिस्सेदारी

सार

इन्फीबीम एवेन्यूज ने रेडिफ इंडिया की 54% हिस्सेदारी खरीदी है। जानिए इन्फीबीम एवेन्यूज क्या करती है, इसका मालिक कौन है, और रेडिफ की स्थिति क्या है।

नई दिल्ली। गुजरात की फिनटेक कंपनी इन्फीबीम एवेन्यूज (Infibeam Avenues) ने न्यूज वेबसाइट रेडिफ (Rediff) इंडिया की 54 फीसदी हिस्सेदारी खरीदी है। यह देश का ऐसा शुरूआती पोर्टल है, जिसने ईमेल, न्यूज, ऑनलाइन शॉपिंग जैसी फेसिलिटी उपलब्ध कराई। ऐसे में आप भी जानना चाहते होंगे कि इन्फीबीम एवेन्यूज क्या काम करती है, इसका मालिक कौन है? आइए उसके बारे में जानते हैं। 

क्या काम करती है इन्फीबीम एवेन्यूज?

Infibeam Avenues भारत के फाइनेंशियल टेक्नोलॉजी सेक्टर की दिग्गज डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर सर्विस कंपनी है, जो डिजिटल पेमेंट सॉल्यूशन, एंटरप्राइज सॉफ्टवेयर प्लेटफार्म और लैंडिंग सॉल्यूशन के काम से जुड़ी है। साथ ही अन्य कई फाइनेंशियल कारोबार करती है। कम्पनी का मुख्य काम कारोबारियों और सरकार को ई-कॉमर्स और पेमेंट सोल्यूशन उपलब्ध कराना है।

Infibeam Avenues का मालिक कौन?

साल 2007 में इन्फीबीम एवेन्यूज की स्थापना विशाल मेहता और विश्वास पटेल ने की थी। अजीत मेहता कम्पनी के अध्यक्ष हैं। उनके पास विभिन्न व्यवसायों में काम का 40 वर्षों से अधिक का अनुभव है। 10-15 करोड़ की शुरुआती पूंजी से कम्पनी की शुरूआत हुई थी। विकिपीडिया के मुताबिक, फाइनेंशियल ईयर 2023 में कम्पनी की शुद्ध आय 136 करोड़ रुपये है। साल 2022 के आंकड़ों के मुताबिक, कम्पनी में 650 कर्मचारी हैं।

कब हुई रेडिफ की शुरूआत, क्यों बिकी?

रेडिफ की शुरूआत साल 1996 में हुई थी। उस समय देश में ज्यादा लोगों के पास इंटरनेट की सुविधा नहीं थी। अच्छी सर्विस की वजह से रेडिफ जल्द ही लोगों की पसंद बन गया। तब Rediffmail और Rediff Shopping का ज्यादा यूज होता था। जिस पर इलेक्ट्रॉनिक्स और अन्य उपकरण बिकते थे। साल 2001 में रेडिफ.कॉम ने इंडिया अब्रॉड अखबार परचेज किया। 2010 में ईमेल सेवा रेडिफमेल एनजी और फिर एंड्रॉइड ऐप भी लॉन्च किया। कम्पनी का मुख्यालय मुंबई में था। बेंगलुरु, नई दिल्ली और न्यूयॉर्क में भी ब्रांच थे। अमेरिकी शेयर बाजार में भी लिस्ट थी। पर आमदनी के मुकाबले लागत बढ़ने की वजह से कम्पनी की हालात खराब हो गई।

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