गौधन सिर्फ दूध ही नहीं पर्यावरण सुरक्षा के लिए भी बेहद जरुरी

By Sanjay Upadhyay  |  First Published Mar 13, 2019, 7:00 PM IST

दक्षिणी रोडेसिआ में गत 1960 में वन और पर्यावरण में कार्य कर रहे  वैज्ञानिकों ने जब विश्व के बदलते पर्यावरण के कारण  वहां के हरे भरे  वनीय क्षेत्र की हरियाली समाप्त होते देखी   तो सब का यह विचार था कि शाकाहारी पशु हाथी, गौ इत्यादि वनों की हरियाली खा कर समाप्त कर देते हैं|  उस वन में हाथी बड़ी संख्या में थे|  निर्णय हुआ कि सब हाथियों  का वध कर दिया जाए| 
 इस अभियान में उस दशक में 40,000 से अधिक हाथी मारे गए  जो आर्थिक व्यापार की दृष्टि से भी बड़ा लाभदायक रहा | परंतु हाथियों के मारे जाने के बाद बड़ा आश्चर्य हुआ कि जो रही सही हरियाली बची थी वह भी समाप्त हो गई | 

दोबारा अनुसंधान के लिए हाथी तो अब समाप्त हो चले थे , शाकाहारी बड़े पशुओं से अनुसंधान करने के लिए केवल गौओं पर ध्यान गया|  कुछ क्षेत्र चुने गए और वहां गौओं के बड़े समूह रखने की योजना बनी|  
बड़ा आश्चर्य हुआ जब यह देखा कि जिस भूमि पर  गौओं का गोबर गोमूत्र  भूमि पर उन के पैरों से  खूब मिला हुआ था  वहां जब अगली बार वर्षा हुई तो वर्षा का पानी  बह कर आगे नहीं गया और वहीं भूमि में सोख लिया गया | भूमि की आर्द्रता बढ़ जाने से हरियाली पुन:उत्पन्न होने लगी | 

अनुसंधान से यह पाया गया कि जिस भूमि में 1 किलो गौ का  गोबर  मिला होता है वह 9 गुणा यानि 9 किलो पानी सोख कर रखती है | इस प्रकार उजड़े जंगलों में गौ  के समूह पालन करने से उन्हें पुन: हरा भरा बनाया जा सका | 

एलेन सेवरी नाम के पर्यावरण वैज्ञानिक इस निष्कर्ष पर पहुंचे , कि गौओं के बड़े बड़े समूह बना कर योजना बद्ध तरीके से पृथ्वी पर छोड़ कर  आधुनिक काल में पर्यावरण  सुधार के लिए प्रागैतिहासिक काल (Prehistoric  times ) जैसी व्यवस्था की कृत्रिम  रूप से नकल की जानी चाहिए |   गौएं ही बड़े स्तर पर पर्यावरण सुरक्षा का सब से सरल उपाय है | 
जितनी  अधिक गौएं भूमि पर घूम कर चरते हुए गोबर छोड़ेंगी उतनी ही भूमि उर्वर और पर्यावरण के लिए सुरक्षित हो जाएंगी। 

भूमि की वर्षा के जल को समाहित करने की क्षमता बढ़ जाती है, भूमि में कार्बन डाइओक्साइड गैस को समाहित करनेकी क्षमता बढ़ती है जिस के परिणाम स्वरूप ओज़ोन आच्छादन सुरक्षित होता है |  इस प्रकार गौओं की संख्या बढ़ा कर गोचरों में छोड़ने के साथ  अन्य गैर पारम्परिक ऊर्जा के सौर ऊर्जा जैसे स्रोतों के उपयोग से विश्व में पर्यावरण की पूर्ण रूप से सुरक्षा सम्भव हो सकेगी | भारत वर्ष की गो रक्षा और सौर ऊर्जा के आधार पर्यावरण नीति पर विश्व की सब से उन्नत पर्यावरण सुरक्षा नीति सिद्ध होने जा रही है | इस प्रकार पर्यावरण में बदलाव के कारण से विश्व के तापमान में जो बराबर वृद्धि हो रही  है रोकी जा सकेगी |  भारत वर्ष में विश्व के देशों में सब से अधिक कृषि योग्य भूमि बताई जाती है | जिस में से लगभग आधी ऊसर पड़ी है | समस्त ऊसर भूमि को गौओं द्वारा कृषि योग्य बनाने का साधन जैसा आधुनिक वैज्ञानिक एलेन सेवरी बता रहे हैं  वही ऋग्वेद 6.47. 20 से 23 में भी दिया गया है | 

गौओं की सुव्यवस्था से  गोचर स्वयं से हरे भरे रहते हैं | गोचर में पोषित गौओं के दूध में औषधिक गुण आ जाते हैं , साथ में गौ के गोचर मे पोषण से गौ के आहार पर व्यय लगभग शून्य होने से दूध लगभग मुफ्त पड़ता है |  इस प्रकार गौ का गोचर से सम्बंध पर्यावरण  और स्वास्थ्य कि दृष्टि से अमूल्य होता है  | 

देश में जितनी गौएं अधिक होंगी  और गोचरों में आहार ग्रहण करेंगी उतना ही अधिक गोबर से जैविक कृषि हो सकेगी | कृषि  की  भूमि की आर्द्रता बढ़ी रहने से सिंचाई के लिए पानी और बिजली की भी आवश्यकता बहुत कम हो जाती है | 

इसी लिए गौ के इतने बड़े महत्व के कारण भारतीय संस्कृति में गौ को अघ्न्या कह कर गोवध के  दोषी को मृत्यु दण्ड  का प्रावधान दिया गया है | 

 पाश्चात्य विद्या से प्रभावित भारतीय समाज और प्रसार माध्यम , गौ के इस महत्व के वैज्ञानिक महत्व के बारे में कुछ  जानने के बाद भी  केवल राजनैतिक  लाभ के लिए गौ रक्षा को हिंदुओं द्वारा अल्पसंख्यक समुदायों पर अपनी मनमानी थोपने का आरोप लगा रहे हैं |

लेखक परिचय:
संजय उपाध्याय 
लेखक शाहजहां उत्तर प्रदेश में कृभको में इंजीनियर के पद पर कार्यरत हैं। गोवंश के प्रति अपने प्रेम से प्रेरित होकर उन्होंने कामधेनु अवतरण अभियान चलाया है।  जो कि ग्राम संस्कृति पुनर्जीवन और गोवंश से संबंधित सभी आयामों पर कार्य करता है। 
वह कामधेनु अवतरण अभियान के सचिव के तौर पर गोसेवा का पुनीत कार्य कर रहे हैं। उनके प्रयासों से लाखों गायों की जान बची है और हजारों किसान लाभान्वित हुए हैं। लेखक ने गोवंश के संरक्षण और सेवा के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया है।  

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