सैन्य अधिकारियों की कथित चिट्ठी का उपयोग करके कांग्रेस ने किया सेना का राजनीतिक दुरुपयोग

By Avdhesh Kumar  |  First Published Apr 13, 2019, 11:42 PM IST

कथित रुप से सैन्य अधिकारियों द्वारा जारी पत्र पर जिनके नाम हैं उनमें से किसी ने नहीं कहा कि हमने आपस में बैठकर यह फैसला किया। पत्र पर तूफान खड़ा हो ही रहा था कि कुछ लोग यह कहते हुए सामने आ गए कि पत्र में मेरा नाम बिना मेरे से पूछा लिखा गया है। हमें जब पता ही नहीं कि ऐसा कोई पत्र लिखा गया है तो उस पर हस्ताक्षर करने का प्रश्न कहां से पैदा होता है।
 

नई दिल्ली: लोकसभा चुनाव 2019 के दौरान एक अजीबोगरीब घटना हुई। पूरा घटनाक्रम कुछ इस प्रकार है। सेना के सेवानिवृत्त अधिकारियों ने कथित रुप से एक पत्र लिखा। लेकिन इस पत्र की सूचना कांग्रेस पार्टी के मुख्यालय 24 अकबर रोड से आई। कांग्रेस की प्रवक्ता ने पत्रकार वार्ता बुलाकर बताया कि 156 पूर्व सैन्य अधिकारियों ने राष्ट्रपति को पत्र लिखकर अपील की है कि सेना के राजनीतिकरण को रोका जाए। उस समय तक देश को पता ही नहीं था कि ऐसा कोई पत्र लिखा भी गया है। उसके बाद कांग्रेस के नेता उस पत्र की कॉपी लेकर चुनाव आयोग के पास पहुच गए। वहां से बाहर आकर बयान दिया कि भाजपा सेना का वोट के लिए राजनीतिक इस्तेमाल कर रही है जिससे पूर्व सैन्य अधिकारी नाराज हैं जिससे हमने चुनाव आयोग को अवगत कराया है।


 प्रश्न है कि अगर वाकई सेना के पूर्व अधिकारियों ने मिल-बैठकर ऐसा पत्र लिखने का निर्णय किया तो वे खुद राष्ट्रपति से समय मांग कर मिल सकते थे। ये सब बड़े अधिकारी रहे हैं। इनको समय मिलने में तनिक भी देर नहीं लगता। ये स्वयं चुनाव आयोग के पास जा सकते थे। पत्रकारों को बुलाकर अपनी बात रख सकते थे। 

इसका अर्थ हुआ कि इसकी योजना कहीं और से बनी। इन योजना बनाने वालों ने पत्र लिखा। उसके बाद सेवानिवृत अधिकारियों को मेल और व्हाट्सऐप पर भेजकर या फोन करके पूछा गया कि आप इससे सहमत हैं? एक सैनिक का भी तो कोई राजनीतिक विचार होता है। सेवानिवृत सैन्य अधिकारी भले राजनीति न करते हों, लेकिन इनका राजनीतिक झुकाव किसी न किसी ओर होगा। तो कुछ लोग झट से हस्ताक्षर करने को तैयार भी हो गए होंगे। हालांकि उन्हें भी इसके राजनीतिक उपयोग का अनुमान था या नहीं कहना कठिन है। साफ है योजनाकारों की सोच यही थी कि कि एक बार पूर्व सैन्याधिकारियों के नाम से पत्र जारी करके फिर इसका अपने अनुसार राजनीतिक दुरुपयोग किया जाए। यही हुआ है। 


उस पत्र पर जिनके नाम हैं उनमें से किसी ने नहीं कहा कि हमने आपस में बैठकर यह फैसला किया। तो फिर? तस्वीर साफ है। वैसे राष्ट्रपति भवन ने ऐसा कोई पत्र मिलने से ही इन्कार कर दिया। हो सकता है आगे किसी दिन उनके पास पहुंच भी जाएं। 

लेकिन कांग्रेस की पत्रकार वार्ता के बाद क्षण भर में यह खबर फैल गई कि सेना के सेवानिवृत्त बड़े अधिकारियों ने भाजपा और सरकार का विरोध किया है। कुछ समय तक यही खबर तैरती रही कि राष्ट्रपति से इन लोगों ने अपील की है इसे सेना के राजनीतिकरण को रोकें। 

राष्ट्रपति सैन्य बलों के सर्वोच्च कमांडर हैं। देश के अभिभावक हैं। इसलिए यदि सेना के कुछ पूर्व अधिकारियों को लगा कि सही नहीं हो रहा है तो ऐसा पत्र लिखने में कोई समस्या नहीं हैं। किंतु जैसा कि हमने समझा यहां तो स्थिति ही दूसरी है। जब इनकी कोई बैठक नहीं हुई तो फिर फैसला कहां हुआ? 


साफ है कि यह पूरा प्रकरण कांग्रेस ने पैदा किया। हालांकि पत्र पर तूफान खड़ा हो ही रहा था कि कुछ लोग यह कहते हुए सामने आ गए कि पत्र में मेरा नाम बिना मेरे से पूछा लिखा गया है। हमें जब पता ही नहीं कि ऐसा कोई पत्र लिखा गया है तो उस पर हस्ताक्षर करने का प्रश्न कहां से पैदा होता है। 


इस पत्र में पूर्व सेना प्रमुख जनरल एसएफ रॉड्रिग्ज का नाम है। उन्होंने इसे फेक न्यूज का सबसे घटिया उदाहरण बताया। उन्होंने कहा कि मैं कभी ऐसा पत्र लिख ही नहीं सकता हूं। मैंने स्वयं को आज तक राजनीति से अलग रखा है। 42 साल सेना में सेवा देने के बाद मैं ऐसा पत्र कैसे लिख सकता हूं।

 एक पत्रकार ने जब उनसे पूछा कि फिर ऐसा पत्र क्यों लिखा गया? उनका जवाब था कि आप अच्छी तरह जानते हैं कि दुनिया में क्या चल रहा है। इसलिए यह बताने की जरुरत है कि पत्र क्यों लिखा गया? 

इस तरह पूर्व थलसेना प्रमुख रॉड्रिग्ज ने संकेतों में बता दिया कि एक व्यक्ति और पार्टी को हराने के लिए बहुत सारी कोशिशें चल रहीं हैं। यह भी उसी का भाग है। इसमें पूर्व वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल एनसी सूरी का भी नाम है। उन्होंने भी इसका खंडन किया और नाराजगी व्यक्त की। उन्होंने एकदम स्पष्ट कहा कि इस चिट्ठी में जो कुछ भी लिखा है, मैं उससे सहमत नहीं हूं। हमारी जो राय हो सकती है उसे हमारे नाम से गलत ढंग से पेश किया गया है। 


पहले यह खबर उड़ी कि नौसेना के पूर्व प्रमुख एडमिरल रामदास ने पत्र लिखा है। किंतु वो सामने नहीं आए। दूसरे, एअर मार्शल एनसी सूरी ने साफ कर दिया कि एडमिरल रामदास ने पत्र लिखा ही नहीं। यह किसी मेजर चौधरी ने लिखा है। उनके अनुसार यह पत्र ईमेल और ह्वाट्सएप पर अवश्य घूम रहा है। 


पूर्व उप सेना उपप्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल एमएल नायडु का नाम भी चिट्ठी में 20 वें नंबर पर है। उनसे पूछा गया तो उन्होंने पहले आश्चर्य व्यक्त किया कि ऐसे पत्र में उनका नाम भी शामिल हैं। उन्होंने तो कहा कि नहीं इस तरह के किसी भी पत्र के लिए मेरी सहमति नहीं ली गई और न ही मैंने कोई पत्र लिखा है। उनके तेवर काफी तल्ख थे। 


वास्तव में इन तीनों पूर्व शीर्ष सेनाधिकारियों के चेहरे को पढ़े तो साफ दिखाई दे रहा था कि अगर राजनीतिक बयान देने से इन्होंने अब तक स्वयं को अलग नहीं रखा होता तो फिर पूरी निंदा करते तथा कुछ और बात कहते। इसमें 31 वें नबर पर एक नाम मेजर जनरल हर्ष कक्कड़ का है। उन्होंने कहा कि मेरे से ईमेल पर पूछा गया था कि क्या आप इससे सहमत हैं तो मैंने कहा, हां। यानी मैंने भले हस्ताक्षर नहीं किया लेकिन मैंने पत्र की सहमति दी। किंतु इससे यह न समझिए कि उनकी सोच भी वही है जैसा इस पत्र के आने के बाद से राजनीतिक दलों के नेता प्रकट कर रहे हैं। उन्होंने यह साफ किया कि सरकार ने पाकिस्तान की वायुसीमा में घुसकर एअरस्ट्राइक का निर्णय किया यह बहुत साहसी कदम है। किसी सरकार ने यह साहस नहीं दिखाया था। इसने जो सर्जिकल स्ट्राइक की अनुमति दी वह भी बहुत बड़ा निर्णय था। पहले की सरकारें ऐसा करने से बचतीं थीं। इसलिए सरकार को इसके नाम पर वोट मांगने का अधिकार है। यह निर्णय उसका है और ऐसा बोलने में कोई समस्या नहीं है।

 मेजर जनरल कक्कड़ ने कहा कि हम केवल सेना के नाम का दुरुपयोग करने को उचित नहीं मानते। इस मामले में भी उनका मत देखिए- आदित्यनाथ योगी जी ने कह दिया मोदी जी की सेना, कांग्रेस के नेता दीक्षित ने कैसी बात बोल दी, कुमारस्वामी ने क्या बोल दिया...हम चाहते हैं कि ऐसा न हो। इसमें प्रधानमंत्री का कहीं नाम नहीं लिया। जैसा हम जानते हैं संदीप दीक्षित ने थल सेना प्रमुख जनरल बिपन रावत के बारे में कहा था कि सेना प्रमुख गली के गुंडों की भाषा बोलते हैं। 

कर्नाटक के मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी ने कह दिया कि जिसके पास खाना नहीं, जो गरीब है वो ही केवल सेना में जाता है। ये दोनों बयान वाकई सेना का ऐसा अपमान है जैसा आजादी के बाद से नहीं हुआ होगा। आदित्यनाथ योगी ने अपमान तो नहीं किया लेकिन सेना को मोदी जी की सेना कहना अनुचित था। विवाद बढ़़ने के बाद उन्होंने बोलना बंद कर दिया। यह मामला चुनाव आयोग तक गया। 


चुनाव आयोग ने बयान जारी कर कहा कि बड़े नेता होने के कारण सेना के बारे में सोच-समझकर बयान दिया जाना चाहिए। सेना हमारी और सीमा की रक्षा करती है और उसका चरित्र अराजनीतिक होता है। 

 पूर्व सेना प्रमुख जनरल शंकर रॉयचौधरी और जनरल दीपक कपूर,  चार पूर्व नौसेना प्रमुखों एडमिरल एल रामदास, एडमिरल अरुण प्रकाश, एडमिरल मेहता और एडमिरल विष्णु भागवत के भी नाम इस पत्र में है। इनमें सभी तो सामने नहीं आए। हां, जनरल शंकर राय चौधरी ने कहा कि मैंने पत्र पर हस्ताक्षर किया है। हालांकि उन्होंने भी नहीं कहा कि पाकिस्तान में वायुसेना की कार्रवाई तथा सर्जिकल स्ट्राइक पर राजनीति में बात किया जाना आपत्तिजनक है। 

कुल मिलाकर इसका अर्थ हुआ कि यह एक विशेष राजनीतिक प्रयोजन से चलाया गया पत्र अभियान था जिसके साथ बड़े सैन्य अधिकारियों का नाम जोड़कर देश में अलग प्रकार का संदेश देने की रणनीति अपनाई गई। इसमें जिन लोगों ने हस्ताक्षर किया उनमें से भी ज्यादातर पूर्व सेनाधिकारियों का मत वही नहीं था जो कांग्रेस पार्टी ने बताया। 

सेना का राजनीतिक दुरुपयोग न हो यह तो ठीक है और इसके लिए पूर्व सैन्य अधिकारी आगे आएं इसमें कोई समस्या नहीं है। इसकी पहल इन पूर्व सैन्य अधिकारियों की ओर से होनी चाहिए थी। सेना के कुछ अधिकारियों को एक साथ आकर मीडिया को बताना चाहिए था। ऐसा न हुआ न होने की गुंजाइश है। इसके सूत्रधार के रुप में जिन मेजर चौधरी का नाम लिया जा रहा है वो अभी तक सामने आए ही नहीं। दूसरे, मेजर हर्ष कक्कड़ कह रहे हैं कि सरकार को वायुसेना की कार्रवाई तथा सर्जिकल स्ट्राइक का फैसला करने पर वोट मांगने का अधिकार है, पत्र में इसे भी गलत बताया गया है।

 पत्र का वह अंश देखिए-‘ ‘महोदय हम नेताओं की असामान्य और पूरी तरह से अस्वीकृत प्रक्रिया का जिक्र कर रहे हैं जिसमें वह सीमा पार हमलों जैसे सैन्य अभियानों का श्रेय ले रहे हैं और यहां तक कि सशस्त्र सेनाओं को मोदी जी की सेना बताने का दावा तक कर रहे हैं।’ इसमें कहा गया है कि सेवारत तथा सेवानिवृत्त सैनिकों के बीच यह चिंता और असंतोष का मामला है कि सशस्त्र सेनाओं का इस्तेमाल राजनीतिक एजेंडा चलाने के लिए किया जा रहा है। पत्र में चुनाव प्रचार अभियानों में भारतीय वायु सेना के पायलट अभिनंदन वर्धमान और अन्य सैनिकों की तस्वीरों के इस्तेमाल पर भी नाखुशी जताई गई है।

तो क्या सहमति लेने के बाद इसका मजमून थोड़ा बदला गया? आखिर हर्ष कक्कड़ अगर मानते हैं कि सरकार ने साहसी फैसले किए और उसे पूरा अधिकार है कि जनता के सामने इसे रखकर वोट मांगे तो फिर पत्र में इस पर भी चिंता क्यों प्रकट की गई है? जाहिर है, कांग्रेस की जो भी रणनीति रही हो, इससे पूरा मामला संदेहास्पद हो जाता है। पूरे प्रकरण को देखते हुए सेवानिवृत्त विंग कमांडर प्रफुल्ल बख्शी का बयान सही लगता है कि असल में यह पत्र लिखना ही सेना पर राजनीति है। यहां राजनीति की गई है।


 योगी ने जब बोलना बंद कर दिया तो उसे मुद्दा बनाने का क्या औचित्य है। वास्तव में हजारों की संख्या में ऐसे सेवानिवृत्त सेनाधिकारी हैं जो इस पत्र को बिल्कुल गलत मानते हैं। आप किसी से बात कर लीजिए सच पता चल जाएगा। वास्तव में इसे ही कहते हैं राजनीति में सेना का उपयोग-दुरुपयोग। 

आपने राजनीतिक विरोध करने के लिए अपने संपर्क के पूर्व सेनाधिकारियों का नाम आगे लाकर पत्र जारी किया तो इसीलिए कि सीमा पार वायुसेना की कार्रवाई तथा सर्जिकल स्ट्राइक जिस तरह चुनावी मुद्दा बना हुआ है उसका लाभ भाजपा को न मिले। इतने बड़े-बड़े अधिकारियों का नाम सामने आने के बाद जनता भी जरुर सोचेगी कि अगर भाजपा की गलती नहीं होती ते ये लोग ऐसा न लिखते। इस तरह इसे राजनीतिक रणनीति की बजाय राजनीतिक साजिश भी कहा जा सकता है। 


यहां यह प्रश्न भी उठता है कि आखिर सेना का राजनीतिक उपयोग किसे कहते हैं? सेना का राजनीतिक दुरुपयोग तब होता जब कार्यरत जवानों को साथ लेकर उनके नाम पर वोट मांगा जाता। दुरुपयोग तब होता जब सेना के जवान किसी पार्टी के लिए वोट मांगते दिख रहे होते। जिस दिन भारत में ऐसा हुआ वह लोकतंत्र के लिए दुर्दिन होगा। पर यदि सरकार ने इतना बड़ा फैसला किया और जवानों ने उसे सफलतापूर्वक अंजाम दिया तो चुनाव में उसकी चर्चा होनी ही चाहिए। सरकार इसका श्रेय तो लेगी। 


1971 में बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के समय इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थीं। आज तक कांग्रेस कहती है कि इंदिरा जी ने पाकिस्तान को तोड़कर बांग्लादेश बनाया। यह सही है कि ऐसा निर्णय प्रधानमंत्री के स्तर पर ही होता है। उसके एक वर्ष बाद विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के लिए यह सबसे बड़ा मुद्दा था और उसे भारी सफलता मिली। तो कांग्रेस ने उस समय क्या किया? कोई भी सरकार होगी वह अपने ऐसे फैसले की चर्चा करके वोट पाने की कोशिश करेगी ही।  

ऐसा माहौल बनाया जा रहा है मानो सेना के शौर्य की चर्चा करना या मंचों पर शहीद या वीरता प्रदर्शित करने वाले जवानों की तस्वीरे लगाना, उनके नाम पर वोट मांगना राजनीतिक अपराध है। यह गलत सोच है। 

कम से कम बलिदान हुए जवान या वीरता प्रदर्शित करने वाले सेना के जवानों को सामने रखने से देश के लिए मरने-मिटने की प्रेरणा तो मिलेगी। अनुशासनबद्ध, संकल्पबद्ध रहने या होने की प्रेरणा मिलेगी। इससे भ्रष्टाचार करने, देश विरोधी गतिविधियों में शामिल होने, कायर बनने की प्रेरणा तो नहीं मिलेगी। 

यदि देश में वीरता और शौर्य राजनीति का मुद्दा बने तो इससे बढ़िया कुछ हो ही नहीं सकता। इससे जो माहौल बनेगा उससे देश के लिए काम करने, इसके लिए मरने मिटने के लिए अंतर्मन से हजारों तैयार हो जाएंगे। भाजपा भी ऐसा करे, कांग्रेस भी करे, दूसरी पार्टियां भी करें। यह देश के लिए अच्छा होगा। लेकिन भारत की नासमझ पार्टियां इसके उलट सोच रही है।

अवधेश कुमार
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और विश्लेषक हैं) 

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