ममता के बंगाल में सरस्वती पूजा पर इस्लामिक फरमान कर रहे संस्कृति पर आघात

By abhijit majumderFirst Published Feb 10, 2019, 6:12 PM IST
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यह मुद्दा आज बंगाल के हर घर में चर्चा में है। 'अति होय गेछै'... इस पर लगभग आम सहमति नजर आती है। यानी लोगों में यह बात घर करने लगी है कि चीजें अब हर स्तर की सहनशीलता को पार कर चुकी हैं। 

वामपंथी भले ही नास्तिक होने का दम भरते हों लेकिन बंगाल में उनके 34  साल लंबे शासन के दौरान भी सदियों से चली आ रही दुर्गा, काली, लक्ष्मी और सरस्वती पूजा की परंपरा से छेड़छाड़ का प्रयास नहीं किया गया। अलबत्ता हर पूजा पंडाल के बाहर वामपंथी बुकस्टॉल नजर आते रहे। 

ममता बनर्जी के मुख्यमंत्रित्व काल में बंगाल में कई गलत कारणों से परिवर्तन आया है। इनमें ममता की तुष्टिकरण की राजनीति के चलते मुस्लिम कट्टरपंथियों की भभकियां, बदमाशी, ब्लैकमेलिंग और सरस्वती पूजा पर रोक लगाने जैसे फरमान शामिल हैं। इसे बंगाली हिंदुओं को आघात पहुंचा है। बंगाल में हिंदुत्व के उभार का एक बड़ा कारण उनके खिलाफ लगातार हो रहे हमले हैं। 

यह मुद्दा आज बंगाल के हर घर में चर्चा में है। 'अति होय गेछै'... इस पर लगभग आम सहमति नजर आती है। यानी लोगों में यह बात घर करने लगी है कि चीजें अब हर स्तर की सहनशीलता को पार कर चुकी हैं। 

सरस्वती ही केंद्र में क्यों?

ज्ञान, संगीत और संस्कृति की देवी सरस्वती की पूजा पर हो रहे हमले हमारी सभ्यता के केंद्र पर हो रहे हैं। इन हमलों का उद्देश्य जीवन की बेहतरीन चीजों के उत्सव को कमजोर करना है। वह उत्सव जो हिंदुओं को अस्तित्व के आनंद का उपहार देता है। 

मां सरस्वती उदारता की प्रतीक हैं। सरस्वती पूजा आनंद, ज्ञान और संगीत का उत्सव है। इसका शुरुआती जिक्र पवित्र ऋग्वेद में मिलता है। हमारी एक नदी जो बाद में अलोप हो गई उसे भी प्राचीन ग्रंथों में सरस्वती के नाम से पुकारा जाता है।  ऋग्वेद (ऋचा 2:41:16) में कहा गया है, 'अम्बी तमे, नदी तमे, देवी तमे सरस्वती' अर्थात् सबसे बड़ी मां, सबसे बड़ी नदी, सबसे बड़ी देवी सरस्वती तुम ही हो।  

तेहट्टा हाईस्कूल बना युद्धभूमि

फरवरी 2017 में बंगाल के उलूबेरिया स्थित तेहट्टा हाईस्कूल के सैकड़ों छात्रों ने मां सरस्वती की मूर्ति के साथ नेशनल हाईवे 6 पर मार्च निकाला और सड़क जाम कर दी। ये सभी छात्र उन्हें सरस्वती पूजा मनाने से रोकने के लिए स्कूल बंद किए जाने के आदेश के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे थे। कुछ मुस्लिम कट्टरपंथियों की मांग ती कि सरस्वती पूजा को तब तक नहीं होने देना चाहिए जब तक नबी दिवस मनाने की अनुमति नहीं दी जाती। 

सातवीं और 12वी तक के छात्र-छात्राएं स्कूल बंद किए जाने के खिलाफ स्थानीय लोगों के साथ विरोध प्रदर्शन कर रहे थे। पुलिस ने न सिर्फ उन पर आंसू गैस के गोले दागे बल्कि लाठी चार्ज भी किया। 

स्कूलों में सरस्वती पूजा का आयोजन करना बंगाल की सबसे प्राचीन परंपरा रही है। यह उत्सव स्कूलों में इसलिये मनाया जाता है कि क्योंकि यह सीधे ज्ञान की देवी से जुड़ा है। 

सरस्वती पूजा बंगाल में हमेशा धार्मिक से ज्यादा सांस्कृतिक उत्सव रहा है। राज्य के बेहतरीन कवियों में शुमार काजी नजरूल इस्लाम ने अपने भक्ति गीतों में सरस्वती का जिक्र किया है। 
 
उत्पीड़न की लंबी फेहरिस्त

2018 में ममता शासन के दो मुस्लिम प्रशासकों ने उत्तर दिनाजपुर जिले के प्राइमरी स्कूलों के सर्कुलर से सरस्वती पूजी का वार्षिक छुट्टी को बाहर कर दिया। इस पर जमकर विवाद हुआ और प्रशासन को छुट्टियों को फिर से बहाल करना पड़ा। 

वर्ष 2014 में बंगाल के मुस्लिम आबादी बहुल (64% आबादी) जिले मुर्शिदाबाद में कट्टरपंथियों द्वारा स्कूलों में सरस्वती पूजा पर प्रतिबंध लगाने, शंख न बजाने अथवा घरों के बाहर ऐपण और रंगोली न बनाने देने के फरमान की खबरों के बाद राम प्रसाद सरकार नाम के वकील ने कलकत्ता हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की। कोर्ट ने न केवल उनकी याचिका को स्वीकार किया बल्कि हिंदुओं की धार्मिक अधिकारों के हक में फैसला सुनाया। 

हिंदुत्व का तेज होता उभार 

बंगाल विभाजन के बाद से ही धर्म को लेकर कभी चिंतित नहीं देखा गया। लेकिन तुष्टिकरण के नंगे नाच और बंगाली संस्कृति पर लगातार होते प्रहारों से इस सूबे में हिंदुत्व का तेजी से उभार हुआ है। बंगाल में हर जिले में वीएचपी, बजरंग दल अथवा दुर्गा वाहिनी जैसे संगठन सक्रिय हुए हैं, जो सरस्वती पूजा पर संभावित हमलों पर कड़ी नजर रखे हुए हैं। 

इस सबसे स्कूलों और कॉलेजों में पढ़ने वाले युवा बंगालियों में गुस्सा और चिंता बढ़ रही है। सरस्वती का कोप बंगाल के राजनीतिक भविष्य को नया आकार दे सकता है। 

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