जाकिर मूसा का मारा जाना आतंकवाद विरोधी जेहादी लड़ाई के खिलाफ बहुत बड़ी सफलता

By Avdhesh Kumar  |  First Published Jun 3, 2019, 5:08 PM IST

चुनाव परिणामों और परवर्ती राजनीतिक घटनाओं के कारण जम्मू कश्मीर में जेहादी आतंकवाद के विरुद्ध सुरक्षा बलों की अति महत्वपूर्ण सफलता सुर्खियां नहीं बन सकीं। वास्तव में पुलवामा में खूंखार आतंकवादी जाकिर मूसा का मारा जाना आतंकवाद विरोधी लड़ाई की ऐसी महत्वपूर्ण सफलता है जिसका असर दूरगामी होगा। 
 

नई दिल्ली: बुरहानी वानी के बाद घाटी में जाकिर मूसा उससे भी बड़ा आतंकवादी आइकॉन बन चुका था। वह पहले बुरहान वानी के साथ हिज्बुल मुजाहिद्दीन में उसके सहयोगी के रुप में सक्रिय था। 11 जुलाई 2016 को बुरहान के मारे जाने के बाद वह आतंकवाद का पोस्टर ब्वॉय बना और धीरे-धीरे वह मॉडल और नारा बन गया। उसके प्रभाव का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पिछले दो वर्षों में आतकवादियों के जनाजे में जाकिर मूसा जिंदाबाद के नारे लगते थे। यहां तक कि बिजली-पानी की लड़ाई में भी जाकिर मूसा जिन्दाबाद नारा लगता था। 

इसके पहले किसी आतंकवादी की यह हैसियत वहां नहीं थी। बुरहान वानी का असर उसके मारे जाने के बाद कुछ समय तक रहा और उसके नारे भी लगते थे। किंतु जाकिर मूसा उससे काफी आगे निकल गया। उसके सिर पर 15 लाख का इनाम रखा जा चुका था। जेहाद के लिए आतंकवाद को ग्लैमराइज करने में उसकी पिछले ढाई वर्षों में बहुत बड़ी भूमिका थी। उसने अनेक युवाओं को आतंकवादी बनने के लिए प्रेरित किया। जाहिर है, चुनाव परिणाम नहीं होता तो मूसा का मारा जाना देश में मीडिया की सुर्खियां होता और उस पर व्यापक चर्चा होती। 

बुरहान के मारे जाने के बाद घाटी में जिस तरह की अशांति पैदा हुई ठीक वैसे ही हालात की आशंका पैदा हो गई थी। इसलिए सुरक्षा बलों ने उसकी मौत की खबर को काफी देर तक सार्वजनिक नहीं किया। इस बीच सुरक्षा की पूरी व्यवस्था कर दी गई। किंतु जिस गांव में उसे घेरा गया था वहां से लोगों को भनक लगी और फिर तनाव फैलने लगा। कुल लोग नारेबाजी करते हुए सड़कों पर उतर आए। जगह-जगह पुलिस के साथ उनकी झड़प होने लगी। स्थिति को देखते हुए प्रशासन ने त्राल और उसके साथ सटे इलाकों में निषेधाज्ञा लागू कर अलर्ट जारी कर दिया। अगले आदेश तक सभी स्कूल-कॉलेज बंद कर दिए गए। कश्मीर में इंटरनेट सेवाएं भी बंद कर दी गईं।  संवेदनशील इलाकों में पुलिस और केन्द्रीय सशस्त्र बलों की अतिरिक्त टुकड़ियों को तैनात किया गया। 

वैसे पिछले कुछ महीने के अंदर कश्मीर में जिस तरह की सुरक्षा कार्रवाई हुई है उसमें बहुत ज्यादा हिंसा की संभावना नहीं थी। बावजूद एहतियातन कदम उठाए गए। हुर्रियत नेताओं के खिलाफ कार्रवाइयों से लेकर जमात-ए-इस्लामी जम्मू कश्मीर पर प्रतिबंध एवं इसके सभी प्रमुख नेताओं की गिरफ्तारी के बाद पहले की तरह आग भड़काना संभव नहीं, अन्यथा जाकिर मूसा की मौत के बाद अभी तक घाटी में हिंसा परवान चढ़ चुकी होती। ऐसा कुछ नहीं हुआ। इसके बाद सारी बंदिशें हटा ली गई। यह कश्मीर के वातावरण में आया एक बड़ा परिवर्तन है जो अपने-आप बहुत कुछ कहता है। 

दरअसल, जाकिर ने आतंकवाद का बिल्कुल अलग और खुला लक्ष्य घोषित कर दिया और यह एक धारा बन गई। आजादी या पाकिस्तान में कश्मीर को मिलाने की जगह उसने लड़ाई का आधार इस्लामी राज स्थापना को घोषित किया। उसका संगठन अंसार-उल-गजवात-ए-हिंद को अल कायदा से संबद्ध माना जाता था। मूसा को बुरहान वानी की मौत के बाद हिजबुल मुजाहिद्दीन का कमांडर बनाया गया। लेकिन उसकी विचारधारा हिजबुल से मेल नहीं खाती थी इसलिए उसने उससे दूरी बना लिया। 

ध्यान रखिए, उसे भी हिजबुल में आरिफ और आदिल नामक दो आतंकवादी कमांडरों ने भर्ती किया था जिसने बुरहान को आतंकवादी बनाया था। आतंकवादी बनने के बाद वह बुरहान वानी के साथ आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम देने के कारण  कुछ ही महीनों में हिज्ब के प्रमुख आतंकवादियों में गिना जाने लगा था। 

बुरहान गुट के जिंदा पकड़े गए आतंकवादी तारिक पंडित ने पुलिस को बताया था कि जाकिर के विचार हिजबुल से नहीं मिलते थे। सितंबर 2015 के दौरान बुरहान वानी ने अपने वीडियो में जिस तरह से हिज्ब की घोषित नीतियों के खिलाफ जाते हुए कश्मीर में खिलाफत की बात की थी, वह मूसा का ही प्रभाव था। उसी ने उसे खिलाफत यानी खलीफा के शासन की वैचारिकता से परिचित कराया। 

बुरहान की मौत के कुछ ही समय बाद उसने हिजबुल के नेतृत्व तथा हुर्रियत कॉन्फ्रेंस सहित विभिन्न अलगाववादी संगठनों को खुली चुनौती दे दी। उसने कहा कि यहां पाकिस्तान सिर्फ अपने निजी फायदे के लिए कश्मीरियों को आजादी का ख्वाब दिखाकर बंदूक थमा रहा है, लेकिन हमारा मकसद सिर्फ और सिर्फ यहां निजाम व इस्लाम का राज है। राष्ट्रवाद  इस्लाम के खिलाफ है। उसने कहा कि अगर हुर्रियत नेता नहीं सुधरे तो उनको लाल चौक में लटका दिया जाएगा। जाकिर का यह वक्तव्य कश्मीर में आतंकवाद प्रायोजित करने वाले ढांचे को खुली चुनौती तो थी ही अन्य आतंकवादी संगठनों का भी इसमें विरोध था। यहां से आतंकवाद का रुख बदल गया। 

जाकिर मूसा ने अप्रैल 2017 में स्वयं घोषणा करके हिजबुल का परित्याग कर दिया और जुलाई 2017 में उसने अंसार उल गजवात-ए-हिंद की नींव रखी। वह अलकायदा से जुड़ा। उसकी जो भी तस्वीरें और आडियो-वीडियो वायरल हुए, वे अल कायदा के कमांडरों द्वारा जारी किए जाने वाले आडियो वीडियो की तरह ही थे। यह कश्मीर मे जारी आतंकवाद की एक अलग धारा बन गई।

वस्तुतः मूसा कश्मीर में इस्लामी जेहाद का इस समय सबसे बड़ा चेहरा था। उसका मानना था कि कश्मीर राजनीतिक नहीं, इस्लामिक राज्य स्थापित करने की लड़ाई है। मई 2017 का उसका वीडियो वायरल हुआ था जिसमें उसने इस्लामिक शरिया के मुताबिक खलीफा राज्य स्थापित करने की बात कही थी। अपने वीडियो संदेश में मूसा कह रहा था कि कश्मीर उसके लिए कोई फ्रीडम स्ट्रगल नहीं है, बल्कि इस्लामिक स्ट्रगल है। 

इस तरह मूसा ने पूरे कश्मीर में 30 साल से जारी आतंकवादी हिंसा को शायद पहली बार खुला मजहबी वैचारिक धारा बताया जिसने उसे वैश्विक जेहाद के साथ जोड़ा। ऐसा नहीं है कि हुर्रियत या अन्य आतंकवादियों के अंदर संघर्ष में इस्लाम मुख्य प्रेरणा नहीं है। स्वयं पाकिस्तान भी इसी नाम पर तो आतंकवादियों की भर्ती कर पता है। पाकिस्तान में गजवात-ए-हिन्द की बात करने वाले हैं, पर कश्मीर के संदर्भ में इस तरह कोई आतंकवादी संगठन इतना खुलकर विस्तृत और साफ धर्मांध विचारधारा के साथ सामने नहीं आया था। 

हुर्रियत के पाकिस्तान समर्थक नेता भी मजहब के कारण ही कश्मीर को भारत से अलग करने की बात करते हैं, पर उस पर उदारवाद का मुलम्मा चढ़ाने का पाखंड करते हैं। ये सब इस्लाम की मुख्य प्रेरणा को स्पष्ट घोषित नहीं करने की रणनीति पर चलते हैं। जाकिर ने उनके चेहरे से नकाब उतारने की कोशिश की और खुलकर इसे इस्लामिक राज में परिणत करने का ऐलान करने लगा। 

इस तरह कह सकते हैं कि वह पहला आतंकवादी कमांडर था, जिसने कश्मीर में जारी धर्मांध जेहाद पर चढ़ाए गए आजादी के नकाब को उतारते हुए साफ शब्दों में कहा कि यहां कोई आजादी के नाम पर बंदूक नहीं उठाता, सब इस्लाम के नाम पर बंदूक उठाते हैं। उसने कहा कि कश्मीर तो गजवा-ए-हिंद का दरवाजा है और इस कारण काफी युवा उससे जुड़े।  अबु दुजाना, आरिफ ललहारी जैसे कुख्यात आतंकवादी तक उसके साथ आ गए। 

साफ है कि उसके रवैये से पाकिस्तान भी परेशान था और हुर्रियत भी, क्योंकि इसके बाद दुनिया के सामने वो कश्मीर का रोना नहीं रो सकते थे। अगर यह गजवात-ए-हिन्द की लड़ाई यानी भारत को इस्लामी मुल्क बनाने की लड़ाई का दरवाजा है तो फिर इसके खिलाफ पूरी दुनिया होगी। भले उसका संगठन बड़ा नहीं हो पाया लेकिन उसकी खतरनाक विचारधारा का विस्तार हो गया। कश्मीर के बाहर भी उसकी प्रेरणा से पिछले साल जालंधर में हमले हुए तथा दिल्ली में हमलों की साजिश रचने वाले पकड़े गए आतंवादियों ने बताया कि उनका जाकिर मूसा से संबंध है। 

जाकिर मूसा ने कश्मीर के बाद भारत के अन्य हिस्सों में रहने वाले मुसलमानों को भी इस्लाम के नाम पर बगावत करने के लिए उत्तेजित किया था। वह अपने भाषणों में हिंदू समुदाय को गाय पूजने वाली कौम कहता था। उसने तुरंत आतंकवादी घटनाओं का अंजाम देने की जगह अपने संगठन को मजबूत करने पर जोर दिया। वह स्वयं सोशल मीडिया एवं फोन आदि के अनावश्यक इस्तेमाल से बचता था तथा अपने साथियों को भी इससे बचने की सलाह देता था। वह साथियों को कहता था कि अपनी सही स्थिति किसी को न बताएं, क्योंकि कई बार उनके पाकिस्तानी आका ही उनकी मुखबिरी कर देते हैं।

इसके बाद बताने की आवश्यकता नहीं है कि उसका मारा जाना कितनी बड़ी घटना है। इस तरह का आतंकवादी इसके पहले कश्मीर में कभी हुआ ही नहीं। कुछ विश्लेषक उसे किंवदंती कहने लगे थे। हालांकि वह मारा गया है लेकिन उसने जो बीज बो दिया है वह अत्यंत खतरनाक है। वैसे विचार करने वाली बात यह भी है कि एक संभ्रांत परिवार का तीव्र बुद्धि वाला लड़का कैसे आतंकवादी बन गया? 

उसके पिता अच्छे पद पर हैं, भाई डॉक्टर है और बहन बैंककर्मी है। स्वयं मूसा ने दसवीं में अच्छा अंक प्राप्त किया था। मूसा के भाई डॉ. शाकिर का बयान है कि किसी को उम्मीद नहीं थी कि वह आतंकी बनेगा। वह पढ़ने में ठीक था, मस्त रहता था और फैशनेबल कपड़े पहनने में यकीन रखता था। उसकी बहन शाहीना ने बताया कि वह कब आतंकवाद की तरफ बढ़ा, हमें पता ही नहीं चला।


 ऑपरेशन ऑल आउट के तहत पिछले साल ही पहले बुरहान वानी उसके बाद जाकिर मूसा गिरोह को खत्म किया जा चुका था। 22 दिसंबर 2018 को सेना ने घोषणा की थी कि जाकिर मूसा गैंग का सफाया किया जा चुका है। उस दिन कश्मीर घाटी में छः आतंकवादी मारे गए थे। इनके नाम थे सोलिहा अखून, फैजल, नदीम सोफी, रसिक मीर, रऊफ और उमर। ये सब जाकिर मूसा गिरोह के सदस्य थे एवं स्थानीय थे। इनमें सोलिहा का स्थान जाकिर मूसा के बाद था। घाटी के त्राल इलाके में यह तब आतंकवाद के विरुद्ध बहुत बड़ी सफलता मानी गई थी। 

लेकिन इसके बाद भी जाकिर मूसा बचा हुआ था। जाकिर मूसा को पंजाब के अमृतसर में देखे जाने की खबर आई थी और पंजाब पुलिस ने उसके पोस्टर जारी किए थे। इससे कुछ समय पहले ही यहां पुलिस को जैश के आतंकवादियों के राज्य में घुसने के इनपुट मिले थे, जिसके बाद से राज्य में हाई अलर्ट घोषित किया था। तब खुफिया रिपोर्टों में बताया गया था कि मूसा सिख के भेष में पगड़ी पहने छिपा हुआ हो सकता है। इस वर्ष अब तक 100 से ज्यादा आतंकवादी मौत के घाट उतारे जा चुके हैं जिनमें 22 पाकिस्तानी थे। उम्मीद करनी चाहिए कि सैन्य अभियानों द्वारा शेष बचे आतंकवादियों का भी सफाया होगा। 


अवधेश कुमार
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और विश्लेषक हैं)
 

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