होली की पूर्व संध्या पर दो नाबालिग हिंदू लड़कियों, 13 वर्षीय रवीना और 15 वर्षीय रीना का अपहरण करके उनका धर्मांतरण कर उनका पाकिस्तान के सिंध प्रांत में उनकी उम्र से बहुत बड़े मुस्लिम पुरुषों से जबरन निकाह करा दिया गया। इसी बीच, सिंध प्रांत के कई हिंदुओं ने अपहरणकर्ताओं के खिलाफ शिकायत दर्ज करने से इनकार करने के बाद पुलिस अधिकारियों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया।
नई दिल्ली: विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने इन दो हिंदू किशोरियों के मामले में पाकिस्तान स्थित भारतीय दूतावास से विस्तृत जानकारी मांगी है.।पहले सुषमा स्वराज ने सूचना और प्रसारण मंत्री फवाद चौधरी को टैग करते हुए लिखा -, ‘मैंने सिर्फ इस्लामाबाद में भारतीय उच्चायुक्त से हिंदू नाबालिग लड़कियों का अपहरण कर उनके धर्म परिवर्तन कराने को लेकर रिपोर्ट देने को कहा है। सुषमा ने आगे लिखा कि यह आपके विवेक को दोषी बताने के लिए काफी है। इसके जवाब में फवाद चौधरी ने कहा –यह पाकिस्तान का अंदरूनी मामला है।
बीबीसी के मुताबिक पाकिस्तान में लोग सवाल खड़ा कर रहे हैं कि आख़िर कम उम्र की हिंदू लड़कियां ही क्यों इस्लाम से प्रभावित होकर धर्म परिवर्तन करती हैं? यहां के पत्रकार कपिल देव ने सवाल किया है, "आख़िर नाबालिग़ हिंदू लड़कियां ही इस्लाम से क्यों प्रभावित होती हैं? क्यों उम्रदराज़ मर्द या औरतें इससे प्रभावित नहीं होते? क्यों धर्मपरिवर्तन के बाद लड़कियां केवल पत्नियां बनती हैं, बेटियां या बहनें नहीं बनतीं?"
पाकिस्तान के नए प्रधानमंत्री इमरान खान को तालिबान खान भी कहा जाता रहा है क्योंकि उनके कट्टरपंथी तत्वों के साथ रिश्ते रहे हैं। मगर प्रधानमंत्री बनने के बाद वे नया पाकिस्तान चाहते हैं। उनका दावा है कि ‘नये पाकिस्तान’ में अल्पसंख्यकों को बराबरी का दर्जा मिलेगा।
मगर बराबरी का दर्जा मिलना तो दूर रहा पाकिस्तान अलपसंख्यकों के लिए नरक ही साबित हो रहा है जहां उनका जीना दुश्वार है। टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी खबर (पेज 9)का हेडिंग ही है – फोर्स्ड कन्वर्जन कॉमन इन सिंध। उसने साथ ही धर्मांतरण के कई उदाहरण भी छापे गए हैं। उल्लेखनीय है कि सिंध मे ही हिन्दुओं की सबसे ज्यादा आबादी है।
पाकिस्तान में अलपसंख्यकों के हालात इतनी बुरी है कि मानवाधिकार संगठनों के अनुसार, पिछले पचास वर्षों में पाकिस्तान में बसे नब्बे प्रतिशत हिंदू देश छोड़ चुके हैं और धीरे-धीरे उनके पूजा स्थल और मंदिर भी नष्ट किए जा रहे हैं। हिंदुओं की संपत्ति पर जबरन कब्जे के कई मामले सामने आ रहे हैं।
भारत के बंटवारे के समय, पश्चिमी पाकिस्तान या मौजूदा पाकिस्तान में, 15 प्रतिशत हिंदू रहते थे। 1998 में देश में की गई अंतिम जनगणना के अनुसार, उनकी संख्या मात्र 1.6 प्रतिशत रह गई और देश छोड़ने की एक बड़ी वजह असुरक्षा थी। शोधकर्ता रीमा अब्बासी के अनुसार “पिछले कुछ वर्षों में लाहौर जैसी जगह पर एक हज़ार से अधिक मंदिर ख़त्म कर दिए गए हैं।
पाकिस्तान से हिंदुओं के पलायन का कारण समाज की असहिष्णुता और सरकार की उदासीनता है.वहां हिंदुओं की सुरक्षा की कोई चिंता नहीं करता। वहां आए दिन हिंदुओं पर अत्याचार होते हैं, उनके घरों को हड़पा जाता है। उनके धार्मिक स्थलों भी सुरक्षित नहीं हैं। उन पर हमले किए जाते हैं और जब शिकायतें दायर की जाती हैं, तो उनकी कोई सुनवाई नहीं होती।
एक्सप्रेस ट्रिब्यून की रिपोर्ट के अनुसार साल 2014 के आंकड़ों में सामने आया है कि यहां 95 फीसदी हिंदू मंदिरों को नष्ट किया जा चुका है। आंकड़ों के अनुसार साल 1990 के बाद से अल्पसंख्यकों के 428 पूजा स्थलों में से 408 को नष्ट कर, वहां समाधि, शौचालय, टॉय स्टोर, रेस्टोरेंट, सरकारी ऑफिस और स्कूल आदि बनाए गए हैं। केवल 20 ही पूजा स्थल ऐसे हैं जहां पूजा की जा रही है।
अगर कहीं कोई मंदिर बचे भी हैं तो उनतक पहुंचने के रास्ते बंद कर दिए गए हैं। ताकि वहां कोई पूजा करने न जा सके। कराची में स्थित 1000 साल पुराने वरुण मंदिर को अब शौचालय के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है।
कई स्थानों पर हिंदुओं में अगर किसी की मौत हो जाती है तो उन्हें अंतिम संस्कार के लिए जलाने नहीं देते। दफनाने पर मजबूर किया जाता है।
पाकिस्तान हिंदू काउंसिल के अनुसार इस समय देशभर में सभी धार्मिक अल्पसंख्यकों के ऐसे 1400 से अधिक पवित्र स्थान हैं, जिन तक उनकी पहुंच नहीं है। या फिर इन्हें समाप्त कर दुकानें, खाद्य गोदाम और पशु बाड़ों में बदला जा चुका है।
पाक में हिंदुओं को इस्लाम कबूल करने पर मजबूर किया जा रहा है। पाकिस्तान में हिंदुओं की संख्या बहुत कम है और शायद आने वाले समय में बचे ही ना क्योंकि वहां पर बचे-खुचे हिंदुओं को भी इस्लाम कबूल करने के लिए मजबूर किया जा रहा है।
पाकिस्तान से आये दिन हिंदू लड़कियों के अगवा होने और फिर जबरन उन्हें इस्लाम कबूल करवाकर उनका निकाह करने की सूचनाएं आती रहती हैं। वहां के सभी प्रमुख राजनीतिक दल इसे एक बड़ी समस्या मानते हैं, लेकिन कट्टर इस्लामिक संगठनों के सामने कोई कदम नहीं उठा पाते। एक अनुमान के मुताबिक वहां हर साल 1000 हिंदू लड़कियों को अगवा कर उनका जबरन धर्मांतरण व फिर शादी की जाती है।
पाकिस्तान के मानवाधिकार आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष अमरनाथ मोतुवल ने कुछ दिनों पहले कहा था कि सिर्फ सिंध राज्य में हर महीने 20 से 25 हिंदू लड़कियों का वहां जबरन धर्मातरण कर शादी करने की सूचनाएं मिलती हैं। ज्यादातर मामलों की कोई रिपोर्ट नहीं लिखी जाती।
जनवरी, 2019 में अनुषा कुमारी का अपहरण किया गया और फिर किसी मुस्लिम युवक से उसकी शादी की गई। वर्ष 2017 में दो हिंदू लड़कियों रवीता मेघवार और आरती कुमारी और सिख युवती प्रिया कौर का मामला पाकिस्तान की मीडिया ने काफी उठाया था, लेकिन उसका कोई असर नहीं हुआ। इन सभी को अपहरण किया गया और फिर इनका निकाह मुस्लिम युवकों से किया गया।
हिन्दुओं की तरह ईसाइयों की भी हालत खराब है। मुस्लिम बहुल पाकिस्तान में ईसाइयों की आबादी सिर्फ 20 लाख है.मगर उनपर आतंकी हमले भी होते है और उनके साथ भेदभाव भी होता है।
मार्च 2016 में पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के राजनीतिक गढ़ लाहौर के एक पार्क में आत्मघाती हमला हुआ। लोग ईस्टर वीकएंड का मजा ले रहे थे । गुलशने इकबाल पार्क में ईसाइयों सहित बहुत से लोग मौजूद थे । इनमें मरनेवालों में भले ही मुसलमान ही ज्यादा थे लेकिन हमलावरों का निशाना मुख्यरूप से ईसाई थे।
पाकिस्तानी तालिबान के एक धड़े जमात उल अहरार ने साफ तौर पर कहा, "लक्ष्य ईसाई लोग थे। हम प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को यह संदेश देना चाहते हैं कि हम लाहौर पहुंच गए हैं।"
लाहौर पाकिस्तान के सबसे धनी प्रांत पंजाब की राजधानी है और देश की राजनीति और संस्कृति का केंद्र माना जाता है। वहां भी अल्पसंख्यक असुरक्षित हो तो बाकी पाकिस्तान की तो बात क्या कहें।
लेकिन ईसाइयो पर ऐसा आत्मधाती आतंकी हमला पहली बार नहीं हुआ था। हाल के सालों में ईसाइयों को निशाना बनाकर कई बड़े हमले किए गए हैं।
- मार्च 2015 में लाहौर के चर्चों में दो बम धमाके हुए थे जिनमें 14 लोग मारे गए थे और 70 घायल हुए थे।
- 2013 में पेशावर के चर्च में हुए दो आत्मघाती धमाकों में 80 लोग मारे गए थे।
कई राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि ईसाइयों को निशाना बनाए जाने की वजह यह है कि कि ईसाई समुदाय को पश्चिम समर्थक माना जाता है और मुस्लिमों पर किसी भी तरह पश्चिमी देशों के हमले का जवाब बताकर ईसाइयों पर हमले का औचित्य साबित किया जाता है। कई विशेलषक यह मानते हैं कि 11 सितंबर और उसके बाद ईसाइयों पर हमले बढ़ गए हैं।
पाकिस्तानी अल्पसंख्यकों की मुश्किलें ईश-निंदा कानून ने काफी बढ़ाई । जैसे ही किसी पर ईश-निंदा का आरोप लगता है, उसके खिलाफ सामाजिक भावना यूं भड़क उठती है कि अदालत से निर्दोष साबित होने पर भी उन पर खौफ का साया मंडराता रहता है। भीड़ कभी भी हमला कर देती है।
यह बताता है कि वहां के समाज पर कट्टरपंथी सोच किस कदर हावी है। 1990 के बाद से कई ईसाइयों को क़ुरान का अपमान करने और पैगंबर की निंदा करने के आरोपों में दोषी ठहराया जा चुका है। 2005 में क़ुरान जलाने की अफ़वाह के बाद पाकिस्तान के फ़ैसलाबाद से ईसाइयों को अपने घर छोड़कर भागना पड़ा था। हिंसक भीड़ ने चर्चों और ईसाई स्कूलों को आग लगा दी थी।
जानकारों का कहना है कि ईसाइयों के ख़िलाफ़ ज़्यादातर आरोप व्यक्तिगत नफ़रत और विवादों से प्रेरित थे। 2012 में पाकिस्तान की एक ईसाई स्कूली छात्रा रिम्शा मसीह पहली ग़ैर मुसलमान बनीं थी जिसे ईशनिंदा के आरोपों से बरी किया गया था। बाद में पता चला था कि एक स्थानीय मौलवी ने उसे ग़लत तरीक़े से ईशनिंदा के आरोपों में फंसाया था ।
लेकिन सबसे चर्चित उदाहरण आशिया बीबी का है जिन्हें 2010 में कुछ मुस्लिम महिलाओं से बहस करने के बाद ईशनिंदा के आरोपों में फंसा दिया गया था।पंजाब के तत्कालीन गवर्नर सलमान तासीर ने कहा था कि आशिया बीबी के मामले में ईशनिंदा क़ानून का दुरुपयोग किया गया है लेकिन उनके ही बॉडीगार्ड मुमताज कादरी ने उनकी हत्या कर दी ।
क़ादरी को पिछले दिनों ही फांसी दी गई थी, जिसका विरोध करते हुए 30-40 हजार लोग सड़कों पर उतर आए थे। वे सलमान तासीर के हत्यारे मुमताज़ कादरी को शहीद का दर्जा देने की मांग कर रहे थे। वे उसका स्मारक बनाने की मांग कर रहे थे। कादरी को फांसी दी गई, इस बात पर लोग नाराज़ हैं।
पाकिस्तान की न्यायपालिका और सरकार की बड़ी हिम्मत दिखाई कि उन्होंने सलमान तासीर के हत्यारे को सजा-ए-मौत दी। सलमान की कादिरी ने हत्या इसलिए की क्योंकि उन्होंने पंजाब के राज्यपाल रहते हुए पाकिस्तान के ईश-निंदा कानून को बदलने की मांग की थी।
पिछले कुछ वर्षों में ऐसी घटनाएं पाकिस्तान में आए दिन होने लगीं थी कि कुछ लोगों पर धर्म-द्रोह का आरोप लगाकर उन्हें कठोरतम सजा दे दी जाती थी। ईश निंदा कानून में अकसर आरोपी को अदालत तो बरी कर देती है मगर समाज जीने नहीं देता ।
ऐसा ही अशिया बीवी के भी साथ हुआ ।सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें छोड़ दिया मगर उनके खिलाफ ऐसा माहौल था कि उन्हें देश छोड़कर जाना पड़ा।उग्रवादियों के सामने सरकार को भी झुकना ही पड़ता है।
कैसा है पाकिस्तान का कट्टरतावादी समाज यह युसूफ योहाना के उदाहरण से पता चलता है,वह ईसाई था पाकिस्तान की क्रिकेट टीम के लिए खेलता था मगर उसपर पाकिस्तान में इतना दबाव पड़ा कि वह उसे धर्मांतरण कर इस्लाम कबूल करने को मजबूर होना पड़ा। अब उसका नाम है मोहम्मद योहाना।उसने दाढी भी रख ली है। उसके साथी क्रिकेटर उससे कहते थे कि यदि तुम लम्बे समय तक पाकिस्तानी क्रिकेट टीम में रहना चाहते हो तो मुसलमान बन जाओ।
पाकिस्तान में रोजमर्रा के चरम भेदभाव से त्रस्त कई ईसाई देश छोड़ रहे हैं। इनमें से कुछ जान बचाने के लिए अवैध तरीके थाईलैंड पहुँचे, जहां उन्हें जेलों में डाल दिया गया । एक एनजीओ चर्च वर्ल्ड सर्विस के मुताबिक सैंकड़ों लोगों ने थाईर्लैंड और श्रीलंका में शरण पाने के लिए आवेदन किया है।
यह है इमरान खान का नया पाखिस्तान।पाकिस्तान नया हो या पुराना, जिन्ना का हो या मौदूदी का या इमरान खान का, अल्पसंख्यको के लिए कब्रिस्तान है।