#ModiWithAkshay निर्धनता से महानता की यात्रा

By Anshuman Anand  |  First Published Apr 24, 2019, 4:21 PM IST

अक्षय कुमार ने प्रधानमंत्री मोदी का इंटरव्यू लिया और हर तरफ इसकी चर्चा होने लगी। बीच चुनाव में राजनीति से परे चुटीले सवाल जवाब ने पीएम के जीवन के कई पहलुओं को दिखाया। लेकिन इस इंटरव्यू के दौरान मजाकिया अंदाज में एक बेहद गंभीर बात कही गई जिसपर शायद किसी का ध्यान नहीं गया। यह थी प्रधानमंत्री की एक कठिन यात्रा की कहानी: 

नई दिल्ली: अक्षय कुमार ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का जो इंटरव्यू लिया, वह कई मायनों में खास रहा। लेकिन इसमें सबसे ज्यादा ध्यान खींचने वाले बात थी पीएम के बचपन से प्रधानमंत्री बनने तक के सफर की कुछ कठोर हकीकतें। 

एक आम भारतीय का जीवन कितनी कठिन परिस्थितियों में गुजरता है यह प्रधानमंत्री के इंटरव्यू में स्पष्ट दिखाई दिया। 

‘अक्षय कुमार ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से कहा- एक बार मेरे ड्राइवर की बेटी से मैंने पूछा कि मोदी जी मिलें तो क्या सवाल करोगी? उसने कहा- क्या हमारे प्रधानमंत्री आम खाते हैं, खाते हैं तो कैसे, काटकर या गुठली के साथ?

पीएम मोदी ने जवाब दिया:  आम खाता हूं। यह मुझे पसंद भी है। गुजरात में आम रस की परंपरा है। छोटा था तो आम-वाम खरीदना, उस तरह की हमारी फैमिली लक्जरी तो थी नहीं। बचपन में पेड़ से पके आम तोड़कर खाना पसंद था। हम खेतों में चले जाते थे और वहां पेड़ के पके आम खाते थे। बाद में आम रस खाने की आदत लगी। लेकिन अब मुझे कंट्रोल करना पड़ता है कि खाऊं या नहीं।

इस जवाब में एक बच्चे के जीवन की हसरतें छिपी हुई हैं। जिसे आम खाना पसंद तो है, लेकिन उसके परिवार की ऐसी हैसियत नहीं है कि वह उसे आम खरीदकर दे सके। ऐसे में उसके पास पेड़ों से तोड़कर आम खाने के सिवा कोई और चारा नहीं बचता। पीएम ने अपने इंटरव्यू में यह भी माना कि कई बार आम चोरी पर उन्हें किसानों से डांट भी पड़ती थी। 

प्रधानमंत्री के प्रारंभिक जीवन के संघर्ष की झलक इस सवाल से भी मिलती है। अक्षय़ ने पीएम मोदी के बैंक बैलेन्स से संबंधित सवाल पूछा?

जिसके जवाब में पीएम ने बताया कि विधायक बनने से पहले मेरा बैंक खाता नहीं खुला था। बचपन में स्कूल में देना बैंक वाले अधिकारी आए थे। उन्होंने उस दौरान स्कूली बच्चों को गुल्लक दी और कहा कि इसमें पैसे एकत्रित करके हर महीने जमा कराना। लेकिन मेरी गुल्लक में पैसे नहीं थे तो खाते में भी पैसे जमा नहीं हुए। इसके बाद मैं गांव छोड़कर चला गया। 30-32 साल बाद बैंक अधिकारियों को पता चला कि मैं अब राजनीति में हूं। तब वो मेरे पास आए और अकाउंट बंद कराने के लिए मेरे से हस्ताक्षर कराए। विधायक बनने के बाद ही मेरा बैंक अकाउंट खुला था। इसके बाद मैं गुजरात का सीएम बना तो अकाउंट में वेतन आना शुरू हो गया। लेकिन इन पैसों की मुझे कोई जरूरत नहीं थी। मैंने वेतन से इकट्ठा हुए इस पैसे में से 21 लाख रुपये सचिवालय के ड्राइवर, सेक्रेटरी के बच्चों की शिक्षा-दीक्षा के लिए दे दिए।

प्रधानमंत्री के इस जवाब में भी उनके बचपन की गरीबी की यादें छिपी हुई हैं। कैसे एक बच्चे के पास इतने भी पैसे नहीं होते कि वह उसने अपनी गुल्लक में जमा कर सके। 
शायद यही वजह है कि प्रधानमंत्री मोदी आज भी अपनी मां हीराबेन से जेबखर्च लेकर अपने बचपन की हसरतें पूरी करते हैं। 
यह भी पढ़िए-आज भी अपनी मां से जेबखर्च लेते हैं पीएम मोदी
अक्षय़ ने पीएम से पूछा कि आप अपनी सैलरी में से परिवार को कुछ देते हैं?
जिसके जवाब मे पीएन ने कहा कि वह तो देने की बजाए अपनी मां से अभी तक जेबखर्च लेते ही हैं। मेरी सैलरी से परिवार को कुछ नहीं जाता है। मेरा परिवार को सरकारी खर्च नहीं लेता है।

 पीएम के अभावग्रस्त बचपन से जुड़ा एक और वाकया तब सामने आया जब अक्षय ने उनसे पूछा कि आपने कभी सोचा था प्रधानमंत्री बनेंगे?

इसके जवाब में पीएम ने कहा कि कभी मेरे मन में प्रधानमंत्री बनने का विचार नहीं आया और सामान्य लोगों के मन में ये विचार आता भी नहीं हैं और मेरा जो फैमिली बैकग्राउंड हैं उसमें मुझे कोई छोटी नौकरी मिल जाती तो मेरी मां उसी में पूरे गांव को गुड़ खिला देती। 
यानी देश के सर्वोच्च पद पर आसीन एक व्यक्ति के जीवन में मामूली नौकरी भी कभी एक बड़ी उपलब्धि की तरह थी। उसी में यह परिवार इतना प्रसन्न हो जाता कि पूरे गांव को गुड़ बांटकर उसका मुंह मीठा कराता। 

दरअसल प्रधानमंत्री ने जो आयुष्मान भारत, जनधन, मुद्रा योजना जैसी गरीबों के लिए जो योजनाएं लागू की हैं। उसके पीछे उनके बचपन की वही अभावग्रस्त जीवन की यादें हैं। जिसे प्रधानमंत्री ने सकारात्मक स्वरुप दिया। शायद पीएम मोदी यही चाहते हों कि जिस तरह उन्होंने अपना बचपन गरीबी से संघर्ष करते हुए बिताया है, दूसरे लोगों को इस तरह की मुश्किलें न उठानी पड़े। 
 

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