बालाकोट एयरस्ट्राइक: यह बदले हुए भारत का संदेश है

निस्संदेह, यह घटना ऐतिहासिक है। 1971 के बाद भारतीय वायुसेना ने कभी भी योजना बनाकर नियंत्रण रेखा पार नहीं किया था। 1999 के करगिल युद्ध में वायुसेना कार्रवाई में शामिल थी, लेकिन उसे सरकार का सख्त निर्देश था कि किसी सूरत में सीमा पार नहीं किया जाए। इसलिए वायुसेना की इस कार्रवाई का व्यापक रणनीतिक, मनोवैज्ञानिक महत्व है। 

Senior Journalist Avdhesh Kumar on balakot air strike in Pakistan

14 फरबरी को पुलवामा आतंकवादी हमले के बाद सरकार पर कार्रवाई का दबाव था लेकिन यह कल्पना बहुत कम लोगों को थी इस तरह मिराज 2000 विमान सीमा पार करके आतंकवादी ठिकानों को ध्वस्त करने का साहस किया जाएगा। ध्यान रखिए, शिविर नष्ट नहीं किए गए हैं। भारतीय वायुसेना के 12 मिराज 2000 लड़ाकू विमानों ने बालाकोट, चिकोटी और मुजफ्फराबाद में जैश-ए-मोहम्मद के ठिकानों को तड़के 3.45 बजे तक से आरंभ कर 21 मिनट तक बम बरसाकर ध्वस्त किया है।  

जैश ने न केवल पुलवामा आतंकवादी हमले की जिम्मेवारी ली थी, बल्कि पठानकोट, उड़ी से लेकर अनेक हमलों में उसका हाथ था। 13 दिसंबर 2001 को संसद पर हुए आतंकवादी हमले भी उसी ने कराए थे। इसलिए भारतीय कार्रवाई का निशाना जैश के मुख्य ठिकानों को ही बनना चाहिए था। यही हुआ है। 

वास्तव में पाकिस्तान क्या कहता है यह हमारे लिए मायने नही रखता। हमारी वायुसेना जो बता रही है महत्व केवल उसका है। मोटा-मोटी अनुमान यह है कि 200 से 300 के बीच आतंकवादी मारे गए होंगे। जैश के ठिकानों पर किसी तरह का यह पहला था और ऐसा था जिसने उसकी कमर तोड़ दी है। 
उसका मुख्य नियंत्रण केन्द्र रूम अल्फा-3 उड़ा दिया गया है। 

ऐसे हमले यूं ही नहीं होते। खुफिया सूचना के सम्पूर्ण विश्लेषण के बाद ही होता है। भारत ने पूरी तैयारी के साथ इस हमले को अंजाम दिया। भारत के पास उन ठिकानों के पूरे नक्शे पहले से मौजूद हैं। वायुसेना विमानों को उन्हीं ठिकानों को निशाना बनाने का लक्ष्य दिया गया था और वे उसे पूरा कर वापस आ गए। इसमें पूरी कोशिश थी कि किसी तरह आम नागरिक या पाकिस्तान के सरकारी केन्द्र निशाना नहीं बनाये जायें। इसलिए लेजर गाइडेड बमों का प्रयोग किया गया ताकि वो अचूक हों और लक्ष्य तक नियंत्रित रहें। 

जिन एयरबोर्न अर्ली वार्निंग विमानो का इस्तेमाल इस अभियान में किया गया उन्हें हमने इजरायल से खरीदा है। वायुसेना ने अपनी कार्रवाई को बिल्कुल आतंकवादी ठिकानों पर केन्द्रित रखा। इसलिए पाकिस्तान या दुनिया को इसे देश पर हमले के रुप में नहीं लेना चाहिए। अगर हमारे यहां हो रहे आतंकवादी हमलों का स्रोत सीमा पार है तो हमें आत्मरक्षा के तहत उसे नष्ट करने का भी अधिकार है। पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी कह रहे हैं कि पाकिस्तान मुनासिब जवाब का हक रखता है। वाह, क्या बात है! आप आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई करेंगे और हम करें नहीं यह तो नहीं चलेगा। 
 
ऐसा तो हो नहीं सकता कि वायुसेना को कार्रवाई का आदेश  पाकिस्तान की संभावी जवाबी कार्रवाइयों का पूर्व आकलन तथा उसकी तैयार किये बिना दिया होगा। इस कार्रवाई के पहले रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने तीन सेना प्रमुखों के साथ बैठक की थी। 

कहने का तात्पर्य यह कि कार्रवाई अवश्य वायुसेना की थी लेकिन सेना के तीनों अंगों के बीच पूर्ण समन्वय के साथ इसे अंजाम दिया गया है। भारत की सीमा में घुसे एक पाकिस्तानी विमान को मार गिराया गया। तो पाकिस्तान के हर जवाब का प्रतिजवाब देने की तैयारी होगी ऐसा विश्वास देश को होना चाहिए। हालांकि पाकिस्तान जवाबी कार्रवाई किस पर करेगा? भारत में कोई पाकिस्तान विरोधी आतंकवादी अड्डे या शिविर तो हैं नहीं। 

जाहिर है, अगर वह कोई कार्रवाई करता है तो यह भारत एवं भारतीयों के खिलाफ होगा। भारत की कार्रवाई पाकिस्तान एवं पाकिस्तानियों के खिलाफ है ही नहीं। हमने तो अपनी आत्मरक्षा में पाकिस्तान स्थिति गैर राजकीय शक्ति को कुचला है जिसे कुचलने में पाकिस्तान स्वंय अपने का अक्षम पा रहा  था। पाकिस्तान को तय करना है कि वह आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में भारत के साथ है या आतंकवादियों को सुरक्षित रखना चाहता है। 

पाकिस्तान यदि सैन्य कार्रवाई करता है तो हमारी सेनायें उनका जवाब देने में सक्षम है। राजनीतिक नेतृत्व की तरफ से उसे हरी झंडी मिली हुई है तथा पूरा देश उसके साथ है। देश आतंकवादी हमलों से मुक्ति चाहता है। सबको पता है कि सीमा पार स्रोत को खत्म किए बगैर यह हो नहीं सकता। 

पाकिस्तान या दुनिया को भारत की इस कार्रवाई के संदेश को समझना होगा। भारत ने इससे यही संदेश दिया है कि अगर हमारे यहां आतंकवादी हमले होंगे तो हम अपनी सीमा के अंदर सुरक्षा के जो भी कदम उठाने हैं उठाएंगे लेकिन सीमा पार करके भी उसके स्रोतों पर हमला करेंगे। पहले की तरह सबूत देना, बार-बार डोजियर देना, कार्रवाई का अनुरोध करना और कुछ नहीं किए जाने को चुपचाप देखने रहने वाला भारत अब इतिहास का अध्याय हो गया है। 

2001 से भारत सबूत देता आ रहा है किंतु उसके परिणाम दुनिया के सामने है। इसलिए पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान द्वारा कार्रवाई के लिए कार्रवाई करने योग्य सबूत या खुफिया सूचना की मांग को महत्व देने का कोई कारण ही नहीं था। वर्तमान भारत लगातार विश्वासघात के बावजूद उसी रास्ते पर चलने की गलती करने वाला तथा कार्रवाई को लेकर आगा-पीछा की मानसिकता में सीमित रहने वाला नहीं है। उड़ी हमले के बाद 28-29 सिंतंबर की रात्रि को पाक अधिकृत कश्मीर में लंबे भौगालिक क्षेत्र में सर्जिकल स्ट्राइक कर भारत ने अपने चरित्र के बदलाव का संदेश दिया था। उस संदेश को यदि पाकिस्तान ने नहीं समझा तो यह उसका दोष है। सर्जिकल स्ट्राइक भी उड़ी हमले के 12 दिन बाद हुआ था और वायुसेना की कार्रवाई भी पुलवामा हमले के 12 दिनों बाद सफलतापूर्वक संपन्न की गई। उस समय भारतीय सेना पाक अधिकृत कश्मीर तक सीमित रहीं जबकि इस बार खैबर पख्तून्ख्वा के बालाकोट तक चले गए। 

बालाकोट जैश का बहावलपुर के बाद सबसे बड़ा केन्द्र है। यह वही जगह है जहां से महाराजा रणजीत सिंह ने 19 वीं सदी के आरंभ में आतंकवादियों को खदेड़कर पेशावर सहित पश्तून क्षेत्र को अपने नियंत्रण में लाया था। इस नाते इसका वैचारिक महत्व भी है। 

हर दृष्टि से यह बहुत बड़ी और न केवल पाकिस्तान बल्कि दुनिया को भौचक्का करने वाली कार्रवाई है। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अवश्य कहा था कि भारत बड़ी कार्रवाई करने पर विचार कर रहा था लेकिन उनके खुफिया विभाग ने भी शायद ही उन्हें बताया हो कि इस बार भारत पख्तूनख्वा तक घुस जाएगा। जिस तरह पाकिस्तान ने भारतीय प्रधानमंत्री के इस कथन के बाद कि सेना को पूरी स्वतंत्रता दे दी गई है, आतंकवादी शिविरों व लांच पैड को नियंत्रण रेखा के पास से हटा लिया था उसमें सर्जिकल स्ट्राइक का विकल्प बचा भी नहीं था। 

वैसे भी पाकिस्तान ने सर्जिकल स्ट्राइक से सबक लेकर नियंत्रण रेखा पर पाक रेंजर्स एवं सेना का भारी जमाव किया हुआ है। हमारे सामने लक्ष्य जैश के चिन्हित आतंकवादी ठिकानों को खत्म करना था और जमीन पर सर्जिकल स्ट्राइक से उसके पूरा होने के जोखिम ज्यादा थे। इसलिए हवाई कार्रवाई की सबसे सुरक्षित और विश्सनीय विकल्प था। 

यह मानना गलत होगा कि आतंकवाद के विरुद्ध सीमा पार यह अंतिम कार्रवाई है। पाकिस्तान एवं दुनिया को समझ लेना होगा कि यह पराक्रम आगे भी जारी रहेगा। आगे बहावलपुर तथा लश्कर-ए-तैयबा या अब जमात-उद-दावा के केन्द्र मुरिदके भी भारतीय कार्रवाई का निशाना बन सकते हैं। पाकिस्तान के पंजाब के ये स्थान भारत से ज्यादा दूर नहीं हैं। 

इसलिए पाकिस्तान सेना एवं सरकार को अपनी जनता के समक्ष चेहरा बचाने के लिए कोई कार्रवाई करने की जगह अपने अंदर के उन आतंकवादी ठिकानों तथा आतंकवादियों के खिलाफ विश्वास करने योग्य कदम उठाना चहिए। इसके बाद भारत की ओर से किसी तरह के औचक बमबारी या सर्जिकल स्ट्राइक की संभावना ही खत्म हो जाएगी। पाकिस्तान को भारत के खिलाफ दुनिया में शायद ही किसी का साथ मिलेगा। एक कंगाल अर्थव्यवस्था वाला देश यदि भारत से सामनता दिखाने के लिए जवाब के नाम पर कोई एडवेंचर करता है तो उसके लिए अपने को संभालना कठिन हो जाएगा। ऐसा करके वह भारत को बड़ी कार्रवाई करने का आधार दे देगा। 

अवधेश कुमार (लेखक वरिष्ठ पत्रकार और विश्लेषक हैं। )


 

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