नई दिल्‍ली:  आंध्र प्रदेश के विजयवाड़ा निवासी जयचंद थोटा सिर्फ 2,000 रुपये इंवेस्ट कर महीने के लाखों रुपये कमा रहे हैं। वह मशरूम की खेती करते हैं। डेली 70 से 100 किलो मशरूम उगाकर 300 रुपये प्रति किलो के दर से मार्केट में बेचते हैं। आज वे न केवल खुद सफलता की मिसाल बने हैं, बल्कि विदेशों में भी लोगों को मशरूम की खेती की ट्रेनिंग देने जाते हैं। जयचंद थोटा की कहानी हर उस शख्स के लिए इंस्पिरेशनल है, जो कम पूंजी में बड़ा बिजनेस करने का सपना देखता है। 

पिता का था ट्रांसपोर्ट का कारोबार

जयचंद का बचपन विजयवाड़ा में बीता। बारिश के मौसम में मशरूम की खुशबू और टेस्टी डिशेज उनके लिए खास थे। यही वजह थी कि मशरूम बचपन से ही उनके दिल में बस गए। जयचंद के पिता का ट्रांसपोर्ट का कारोबार था। उन्होंने बचपन से ही ड्राइविंग और उनकी केयरिंग की दिक्कतों को नजदीक से देखा था। वह एक ऐसा बिजनेस चुनना चाहते थे, जिसमें कम पूंजी हो और रिस्क भी कम हो। 

क्यों चुनी मशरूम की खेती?

जयचंद थोटा ने मशरूम की खेती करने का फैसला लिया। इसकी सबसे बड़ी वजह कम लागत और अधिक मुनाफा थी। बटन मशरूम की तुलना में दूधिया मशरूम गर्म जलवायु में भी उग सकते हैं, जिससे यह आइडियल क्रॉप बन गई। इधर, देश में भी मशरूम का मार्केट तेजी पकड़ रहा है। हाई न्यूट्रिशिनल वैल्यू और हेल्थ बेनिफिट के कारण इसकी मांग बढ़ रही है।

IIHR से मशरूम उगाने की ट्रेनिंग

जयचंद ने एग्रीकल्चर में बीएससी की डिग्री लेने के बाद बेंगलुरु में भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान (IIHR) से मशरूम उगाने की ट्रेनिंग ली। वहीं से दूधिया मशरूम के बीज (स्पॉन) परचेज किए। दूधिया मशरूम की खासियत यह होती है कि कुछ इलाकों में उन्हें पूरे साल उगाया जा सकता है। 10 दिन तक स्टोर किया जा सकता है। 30 से 35 डिग्री सेल्सियस तापमान में विकसित हो सकते हैं, जबकि बटन मशरूम को ठंडे मौसम की जरूरत पड़ती है।

शुरुआत में आईं ये समस्याएं 

जयचंद ने 2005 में मात्र 2000 रुपये से मशरूम की खेती शुरू की, लेकिन एक्सपीरियंस की कमी के कारण पहला और दूसरा बैच दूषित हो गया। यह उनके लिए एक बड़ा झटका था। आखिरकार, उन्होंने अपने एक रिश्तेदार के साथ ट्रेनी बनकर काम किया। वहां से उन्होंने मशरूम की खेती के सभी पहलुओं को गहराई से सीखा। 2007 में जयचंद ने अपने घर के पास एक छोटा सा शेड बनाया और IIHR से 50 किलो स्पॉन खरीदकर थनु श्री मशरूम की शुरूआत की। ट्रेनिंग के दौरान जिन कस्टमर्स से वे मिले थे, उन्हीं को अपनी पहली फसल बेची। यह उनकी जर्नी का टर्निंग पॉइंट था। इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। अब वह डेली 100 किलो मशरूम के स्पॉन तैयार करके बेचते हैं। वह भारत के अलावा दुबई और साउथ अफ्रीका में भी लोगों को मशरूम की खेती की ट्रेनिंग दे चुके हैं।

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