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RBI ने हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों के लिए रूल्स किए सख्त,जाने क्या है वजह

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डिपॉजिट एक्स्पेट करने की शर्तें की गई कड़ीं

RBI ने हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों के लिए नियम कड़े कर दिए हैं, जिसमें जमा स्वीकार करने की शर्तें और क्रेडिट रेटिंग की जरूरतें शामिल हैं। नए नियम जुलाई 2025 तक लागू होंगे।

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RBI ने HFCs के लिए लागू किए नए रूल्स

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों (HFCs) के लिए नए नियम लागू किए हैं, जो अब नॉन-बैंकिंग फाइनेंस कंपनियों (NBFCs) के समान हो गए हैं।

 

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इन नए नियमों के पीछे क्या है RBI का मकसद

यह कदम उन नियमों को और सशक्त करता है, जिनके तहत इन कंपनियों को जमा स्वीकार करने, लिक्विडिटी की ज़रूरतों को पूरा करने और क्रेडिट रेटिंग प्राप्त करने की आवश्यकता होगी।
 

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न्यू रेगुलेशन में अब HFCs को क्या करने की होगी जरूरत?

न्यू रेगुलेशन अब HFCs को पब्लिक डिपॉजिट का 13% लिक्विड एसेट के रूप में रखने की आवश्यकता को बढ़ाकर जुलाई 2025 तक 15% कर देंगे।

 

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अब कंपनियों को मिलेगी ग्रेड-रेटिंग

अब कंपनियों को वार्षिक इन्वेस्टमेंट-ग्रेड क्रेडिट रेटिंग मिलेगी। साथ ही, पब्लिक डिपॉजिट की क्वांटिटी लिमिट को शुद्ध स्वामित्व वाले फंड के 3 गुना से घटाकर 1.5 गुना कर दिया जाएगा।
 

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RBI ने कब से शुरू किया था ये प्रॉसेस?

RBI ने 2020 में HFCs और NBFCs के रेगुलेशंस को सुसंगत बनाने की प्रक्रिया शुरू की थी और इस बार इसे स्टेपवाइज तरीके से लागू किया गया है।

 

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नए रूल्स खड़ी कर सकते हैं क्या मुश्किलें?

नए रूल्स फाईनेंसियल स्थिति कमजोर वाली कंपनियों के लिए डिपॉजिट जुटाना मुश्किल बनाएंगे। अब HFCs को ब्याजदर, करेंसी, लोन रिस्क से संबंधित डेरिवेटिव में भी भाग लेना जरूरी होगा।

 

 

 

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इन कठाेर नियमों के जरिए जमाकर्ताओं के हितों की होगी रक्षा

इस तरह के कठोर नियमों का उद्देश्य फाईनेंसियल स्थिरता को बढ़ाना और जमाकर्ताओं (Depositors) के हितों की रक्षा करना है।

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