पौष पूर्णिमा (13 जनवरी 2025) से महाकुंभ का आरंभ हो रहा है। यह दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन है, जहां करोड़ों श्रद्धालु संगम में आस्था की डुबकी लगाते हैं।
कल्पवास, महाकुंभ का प्रमुख हिस्सा है। यह आत्मिक शुद्धि, तप और भक्ति का प्रतीक है। कुंभ और माघ मास में इसका विशेष महत्व है।
कल्पवास का मतलब है संगम तट पर एक महीने तक रहकर ध्यान, वेदाध्ययन, पूजा और तपस्या करना। इसे आत्मिक विकास का सर्वोच्च साधन माना गया है।
महाकुंभ में कल्पवास का आरंभ 13 जनवरी 2025 को पौष पूर्णिमा स्नान से होगा। यह एक महीने तक चलता है और साधक संगम पर रहकर नियमों का पालन करते हैं।
कल्पवास के नियम कठोर होते हैं। जैसे—पीले या सफेद वस्त्र पहनना। ब्रह्मचर्य का पालन। ब्रह्म मुहूर्त में जागना। त्रिकाल स्नान। भूमि पर सोना। एक समय भोजन। साधु-संतों की सेवा।
पद्म पुराण में महर्षि दत्तात्रेय द्वारा बताए गए 21 नियमों का पालन आवश्यक है। इनमें सत्यवचन, अहिंसा, इंद्रिय-नियंत्रण, दान, देव पूजन, और सत्संग मुख्य हैं।
आत्मिक शुद्धि और मोक्ष। भगवान विष्णु की कृपा। जीवन में सकारात्मकता और सुख-समृद्धि। जन्म-जन्मांतर के बंधनों से मुक्ति।
महाभारत में कहा गया है, माघ मास में कल्पवास करना 100 वर्षों की तपस्या के बराबर पुण्य प्रदान करता है।
कुंभ के दौरान कल्पवास करना आध्यात्मिक अनुभवों से भरा होता है। यह साधक को ज्ञान, भक्ति, और आंतरिक शांति प्रदान करता है।