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प्रेमानंद महाराज से एक भक्त ने पूछा कि माता-पिता, बहन, बच्चे और पत्नी में से पति का कर्तव्य सबसे पहले किसके प्रति है। वह किसको प्राथमिकता दे।
प्रेमानंद जी कहते हैं कि पत्नी अर्धांगिनी है। सर्वस्व समर्पित किया। जैसे-आपको समर्पित मकान का जाला, मकड़ी, छिपकली भी आपकी। वैसे ही पत्नी का स्वभाव और बरताव भी आपका।
वह कहते हैं कि यदि माता पिता को त्याग कर पत्नी का अनुराग पूर्वक सेवन करके चल दें तो हमारा कर्तव्य नष्ट हो गया।
वह कहते हैं कि यदि पत्नी को त्याग कर माता-पिता का पक्ष लेकर चल दिए तो भी हमारा कर्तव्य नष्ट हो गया। बहुत विवेक की जरूरत है।
वह कहते हैं कि मां ने पत्नी को गाली दिया तो पत्नी को दुलार करके समझा लेंगे। यदि पत्नी ने मां को गाली दिया तो हमारा मन बर्दाश्त नहीं करेगा, क्योंकि माता-पिता पूज्य हैं।
उन्होंने कहा कि यदि आप मां के पक्ष में होकर पत्नी को प्रताड़ित करते हैं तो आप अपने धर्म का नाश करते हैं। त्याग दोनों का नहीं किया जा सकता है।
बुढ़ापे में चिड़चिड़ाहट और बुद्धि अल्प हो जाती है। सोच विचार में कमी आ जाती है। हम उस पर ध्यान दिए बिना धर्म पूर्वक माता—पिता की सेवा करेंगे तो गृहस्थ जीवन निभ जाएगा।
ऐसी परिस्थिति में जब दो में एक का चयन करना हो। तो हमको किसी भी स्थिति में पत्नी संग स्वीकार कर मां को स्वीकार करना चाहिए। पत्नी को त्याग दिया तो गलत मार्ग पर जीवन खत्म हो सकता है।
वह कहते हैं कि यदि मां का त्याग कर दिया तो हमारा धर्म नष्ट हो गया। परम धर्म मां है। चाहे कोई कितना बड़ा तपस्वी हो। मां का ऋण चुका नहीं सकता।
उनका कहना है कि यदि मां-पिता असमर्थ हैं तो उन्हें त्यागने की बात नहीं सोचनी चाहिए। यदि और भाई हैं तो पैसा और अन्य चीजों की व्यवस्था करके उनकी सेवा कर सकते हैं।
यहां दी गई जानकारी सामाजिक और धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है। माय नेशन इसकी पुष्टि नहीं करता है।