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वृंदावन के प्रसिद्ध संत प्रेमानंद महाराज से एक भक्त ने भगवान के नाम जप के संबंध में सवाल पूछा कि महाराज जी 'नाम' साधन है या साध्य?
प्रेमानंद महाराज ने भक्त के सवाल का जवाब देते हुए आध्यात्मिक जगत के बहुत बड़े रहस्य खोल कर रख दिए।
आइए पहले जानते हैं कि साधन और साध्य किसे कहते हैं? दरअसल, जिस मंजिल तक हम पहुंचना चाहते हैं, उसे साध्य कहते हैं और साध्य हासिल करने के लिए जिसका उपयोग करते हैं, उसे साधन कहते हैं।
उन्होंने कहा कि भगवान का नाम ही साधन और साध्य दोनों है। जब नाम साध्य रूप धारण करता है। तब वही नाम भगवान के रूप को प्रकाशित करता है।
वह कहते हैं कि भगवान की प्रकृति में कोई रंग नहीं है और न ही कोई चित्रकार उनका रूप कागज पर उतार सकता है।
वह कहते हैं कि भगवान माया से परे हैं। नाम रूपी साधन में ही साध्य समाया हुआ है।
प्रेमानंद जी कहते हैं कि जब हम तन्मयता से नाम जप करते है तो सामने उसी का रूप होता है और जाप करने वाला अपने स्वरूप को पा जाता है। मतलब नाम रूपी साधन को पकड़ने वाला साध्य पा जाता है।
उदाहरण देते हुए वह कहते हैं कि पहले गुरु को हम साधन के तौर पर देखते हैं और परिपक्व होने पर हम साध्य रूप में गुरु को साक्षात परमात्मा के स्वरूप में देखते हैं।
प्रेमानंद महाराज के अनुसार, भगवान का नाम जप आत्मा को उसके मूल स्वरूप से जोड़ने का माध्यम है, जो साधन और साध्य दोनों के रूप में कार्य करता है।