कर्नाटक कांग्रेस के 'संकटमोचक' कहे जाने वाले डीके शिवकुमार ने सोमवार सुबह यह कहकर सनसनी मचा दी कि सूबे में उनकी जेडीएस के साथ चल रही गठबंधन सरकार को गिराने की कोशिशें हो रही हैं। भाजपा राज्य में 'ऑपरेशन कमल' की जमीन तैयार कर रही है। कांग्रेस के तीन विधायक इस समय मुंबई के किसी होटल में भाजपा नेताओं के साथ हैं। 

शिवकुमार के मुताबिक, भाजपा सूबे की गठबंधन सरकार को अपदस्थ कर दक्षिण के इस महत्वपूर्ण किले पर भगवा फहराना चाहती है। इसके लिए वह कांग्रेस और जेडीएस के कुछ विधायकों पर डोरे डाल रही है। 17 जनवरी तक भाजपा कर्नाटक में कोई बड़ा 'खेल' करने की फिराक में है। 

हालांकि इधर शिवकुमार का बयान आया और उधर, पहले खुद मुख्यमंत्री एचडी कुमारास्वामी और फिर भाजपा नेताओं ने इसका खंडन कर दिया। यह तथ्य किसी से छुपा नहीं है कि कई भाजपा विधायक इस समय दिल्ली में कैंप कर रहे हैं। कांग्रेस के पांच विधायक भी लापता बताए जाते हैं। इनमें हाल ही में पार्टी छोड़ने की धमकी देने वाले रमेश जराकीहोली शामिल हैं। कैबिनेट से हटाए जाने के बाद वह नाराज चल रहे हैं और उनकी कोई सूचना भी नहीं है। माना जा रहा है कि कांग्रेस के 'लापता' विधायक मुंबई में हैं। कर्नाटक में हुए विधानसभा चुनावों में भाजपा को 104 सीटें मिली थीं। पार्टी महज नौ सीटों के चलते राज्य में सत्ता पाने से महरूम रह गई। 

बहरहाल, कर्नाटक की सियासी पारा गर्म है, लेकिन मध्य प्रदेश और राजस्थान में हाल ही में  सत्ता पर काबिज हुई कांग्रेस में किसी अनहोनी को लेकर 'सिहरन' है। मध्य प्रदेश में कांग्रेस बहुत कम अंतर के साथ सत्ता पर काबिज हुई है। अलबत्ता राजस्थान में कांग्रेस और भाजपा के बीच सीटों का अंतर तुलनात्मक रूप से ज्यादा है। हालांकि जबरदस्त सत्ता विरोधी लहर के बावजूद कांग्रेस और भाजपा के वोट शेयर में अंतर बहुत कम रहा। यही डर कांग्रेस को सता रहा है। 

मध्य प्रदेश में कांग्रेस के पास 114 सीटें हैं। उसे बसपा के दो और सपा के एक विधायक तथा चार निर्दलीयों का समर्थन हासिल है। वहीं भाजपा के 109 विधायक हैं। 230 सदस्यों वाली विधानसभा में बहुमत का जादुई आंकड़ा 116 है। भाजपा को राज्य की सत्ता मौजूदा कांग्रेस सरकार से छीनने के लिए महज सात विधायकों की जरूरत है। 

यह महज संयोग ही है कि कर्नाटक में सियासी समीकरण तेजी से बदल रहे हैं। यहां तक कि पार्टी के संकटमोचक कहे जाने वाले शिवकुमार को भी सत्ता पर खतरा नजर आ रहा है। इसने कांग्रेस नेतृत्व को मध्य प्रदेश की चिंता करने पर मजबूर कर दिया है। 

भाजपा के महासचिव और मध्य प्रदेश के बड़े नेता कैलाश विजयवर्गीय पहले ही कह चुके हैं कि अगर दिल्ली में भाजपा आलाकमान को छींक आ जाए तो मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार गिर जाएगी। पार्टी के कार्यकर्ताओं की बैठक में विजयवर्गीय ने कहा था, 'जब मुझे पार्टी नेतृत्व से संकेत मिलेगा, कमलनाथ की सरकार गिर जाएगी। हम इसे 15 दिन में गिरा सकते हैं। बहुत मामूली बात है। पर उन्हें जनादेश मिला है, चलाने देते हैं।' कर्नाटक के बदलते परिदृश्य को देखते हुए कांग्रेस नेतृत्व इस बयान को बड़ी ही गंभीरता से ले रहा है। 
 
क्या भाजपा अपने परंपरागत विरोधियों सपा-बसपा के तीन विधायकों को लेकर आसानी से सरकार गिरा सकती है? इसके जवाब में मध्य प्रदेश के एक भाजपा नेता ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, 'मुझे लगता है कि मीडिया कैलाश जी के बयान को लेकर कुछ ज्यादा ही अटकलें लगा रहा है। लेकिन अगर हमें सरकार बनानी होगी तो यह कोई बड़ी बात नहीं है। चार निर्दलीय और एक नामित उम्मीदवार को नहीं भूलना चाहिए। फिलहाल अभी हमारी इसमें दिलचस्पी नहीं है। हम इस बात से भी सहमत नहीं हैं कि कांग्रेस प्लान बी तैयार कर रही है।'

राजस्थान की सत्ता का गणित मध्य प्रदेश जैसा नहीं है। यहां कांग्रेस को भाजपा पर 28 सीटों की बढ़त हासिल है। लेकिन हैरानी वाली बात यह है कि अशोक गहलोत सरकार मध्य प्रदेश की कमलनाथ सरकार से ज्यादा चिंतित नजर आ रही है। इसका एक कारण नजर आता है। कांग्रेस सरकार के सत्ता संभालते ही राज्य में किसानों का अप्रत्याशित विरोध सामने आया है। 
 
यूरिया संकट गहराने के बाद सैकड़ों की संख्या में किसान अपने परिवारों के साथ सड़कों पर उतर आए। यूरिया वितरण केंद्रों पर घंटों लंबी लाइन लगाने के बावजूद उन्हें यूरिया नहीं मिला। दिसंबर के दूसरे पखवाड़े में कुछ ऐसी खबरें आईं कि राजस्थान के कई हिस्सों में भगदड़ की नौबत आ गई। 

वहीं दूसरी तरफ गहलोत सरकार कर्जमाफी के जिस वादे के साथ सत्ता में आई उसे लेकर जनवरी तक स्थिति साफ नहीं हुई है। इस समय राज्य में मूंग दाल के किसान उचित मूल्य न मिलने की शिकायत कर रहे हैं। चुरू में स्थिति काफी तनावपूर्ण बताई जाती है। 

अभी सरकार को सत्ता में आए महज एक महीने के आसपास हुआ है लेकिन उसे लोगों के गुस्से का सामना करना पड़ रहा है। राज्य में बसपा के पास छह और भारतीय ट्राइबल पार्टी के पास दो विधायक हैं। आरएलडी के पास एक विधायक है। नौ निर्दलीय भी विधानसभा पहुंचे हैं। किसानों का विरोध बढ़ने से इन विधायकों को भी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे में कब ये विधायक पाला बदल जाएं, कहा नहीं जा सकता। 

बताया जाता है कि भाजपा ने भी कुछ लोगों से बात करनी शुरू कर दी है। पार्टी आरएलपी के तीन विधायकों के संपर्क में है। आरएलपी हनुमान बेनीवाल की पार्टी है। पहले भाजपा नेता रहे बेनीवाल को पार्टी ने निलंबित कर दिया था। 

'माय नेशन' ने राजस्थान के सियासी हालात पर भाजपा के तीन नेताओं से बात की। सभी ने इन दावों का खंडन किया कि पार्टी सत्ताधारी दल के विधायकों पर डोरे डाल रही है। हालांकि सभी का यह कहना है कि गहलोत सरकार को समर्थन दे रहे विधायकों का 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले अपने पद से इस्तीफा दे देना असंभव जैसा नहीं है।