चीन के ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल का 'सस्ता और बेहतर' वर्जन तैयार करने के दावे के बीच भारतीय सेना और वायुसेना इस मिसाइल की कीमतों में कमी चाहती हैं। भारत और रूस की संयुक्त उपक्रम कंपनी ब्रह्मोस एयरोस्पेस इसका निर्माण करती है। दोनों सेनाएं चाहती हैं कि इस मिसाइल प्रणाली के दामों में कमी लाई जाए ताकि यह आंतरिक और बाहरी बाजार में ज्यादा किफायती दाम में मिल सके।
 
सैन्य बलों के सूत्रों के अनुसार, प्रत्येक ब्रह्मोस मिसाइल की कीमत 30 करोड़ रुपये से अधिक है। उनके अनुसार यह बहुत ज्यादा है और ज्यादा संख्या में ऑर्डर देने से रोकती है। 

सूत्रों ने 'माय नेशन' से कहा, 'पिछले कुछ वर्षों में मुद्रास्फीति के अनुपात में ब्रह्मोस की कीमतों में भी काफी इजाफा हुआ है। अगर ब्रह्मोस के लिए बड़ा बाजार तैयार करना है तो इसकी निर्माता कंपनी को आंतरिक और बाहरी बाजार में मिसाइल प्रणाली के दाम घटाने के तरीकों पर विचार करना चाहिए। '

सूत्रों ने अनुसार, सेनाओं को ज्यादा कीमतों के चलते इस मिसाइल प्रणाली के विकास में निवेश करने में कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है। 

इस बीच, चीन की एक सरकारी कंपनी ने नई सुपरसोनिक मिसाइल बनाने का दावा किया है। इसे भारत और रूस द्वारा मिलकर बनाई जा रही ब्रह्मोस से बेहतर बताया गया है। इस मिसाइल का नाम एचडी-1 है। इसे दक्षिण चीन की कंपनी गुआंगडोंग होंगडा ब्लास्टिंग कंपनी द्वारा विकसित किया गया है। चीन का दावा है कि इस मिसाइल को वह अपने करीबी सहयोगी पाकिस्तान को सप्लाई करेगा। 

न्यूज एजेंसियों ने चीन के अधिकारियों के हवाले से कहा है, 'ब्रह्मोस काफी महंगी और कम उपयोगी मिसाइल है। इस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल भारत और रूस द्वारा विकसित किया गया है।'

चीन के एक सैन्य विश्लेषक वेई डोंगजू ने 'हल्की और तेज गति से जाने वाले मिसाइल का जिक्र करते हुए कहा कि एचडी-1 के एडवांस ठोस ईंधन वाले रैमजेट को अपने प्रतिद्वंद्वियों के मुकाबले कम ईंधन पर चलना चाहिए। '

रक्षा विशेषज्ञों के अनुसार, ब्रह्मोस तरल ईंधन वाले रैमजेट इंजन से चलती है। इसके निर्माण के लिए भारत और रूस ने एक संयुक्त उपक्रम बना रखा है। इसका संचालन काफी महंगा पड़ता है। 

ब्रह्मोस की मारक क्षमता 290 किलोमीटर से ज्यादा है। यह अपने लक्ष्यों को सटीकता के साथ भेदती है। इसे जल, थल और नभ सभी तरह के युद्धों के लिए गेमचेंजर माना जाता है।