लोकसभा चुनाव में नौकरशाहों ने भी चुनावी रण में बाजी मारी है। हालांकि चुनाव जीतने वाले ज्यादातर सांसद बीजेपी के हैं। लेकिन कांग्रेस और अन्य दलों के भी पूर्व नौकरशाह संसद की दहलीज पर पहुंचने में कामयाब रहे। बिहार की आरा सीट पर दूसरी बार चुनाव लड़ रहे पूर्व नौकरशाह आरके सिंह ने बाजी मारी तो ओडिशा की कटक सीट से पूर्व सीआरपीएफ के डीजी और बीजेपी प्रकाश मिश्रा को हार का सामना करना पड़ा। वहीं पंजाब की फतेहपुर साहिब सीट पर कांग्रेस टिकट पर लड़े अमर सिंह चुनाव जीतने में कामयाब रहे। 

असल में ज्यादातर नौकरशाह रिटायर के बाद राजनीति में अपनी किस्मत आजमाते हैं। हालांकि कुछ नौकरशाहों ने वीआरएस लेकर राजनीति के मैदान में अपने नए कैरियर की शुरूआत की। कुछ नौकरशाहों को इस राजनीति में आने के साथ ही सफलता मिली तो कुछ संसद की सीढ़ियों को चढ़ने में विफल हुए। इस बार के लोकसभा चुनाव में बड़े राजनैतिक दलों के टिकट पर आधे दर्जन से ज्यादा नौकरशाह चुनाव के मैदान में थे।

इसमें से ज्यादातर अपनी सीट बचाने में कामयाब रहे। सबसे पहले बात करते हैं बिहार की आरा सीट से लड़ रहे केन्द्रीय मंत्री और पूर्व गृह आरके सिंह की। आरके सिंह यूपीए सरकार के दौरान गृह सचिव थे और रिटायर होने के बाद उन्होंने बीजेपी का दामन था और 2014 में पहली बार आरा से सांसद चुने गए। इसके बाद जब मोदी सरकार का कैबिनेट विस्तार किया गया तो उन्हें ऊर्जा मंत्री बनाया गया।

इस बार सिंह फिर आरा से चुनाव लड़े और जीतने में कामयाब रहे। इसके साथ ही बीजेपी के टिकट से हरियाणा के कैडर के आईएएस बृजेन्द्र सिंह ने नौकरी से इस्तीफा देकर हिसार सीट से चुनाव लड़ा और जीतने में कामयाब रहे। हरियाणा कैडर के 1998 बैच के आईएएस सिंह केन्द्रीय मंत्री और हरियाणा के दिग्गज नेता वीरेन्द्र सिंह के बेटे हैं। सिंह को यहां पर 51 फीसदी से ज्यादा वोट मिले।

वहीं ओडिशा की हाई प्रोफाइल मानी जाने वाली भुवनेश्वर सीट पर बीजेपी प्रत्याशी अपराजिता सांरगी ने जीत हासिल की। सांरगी ने भी नौकरी से इस्तीफा देकर राजनीति पारी की शुरूआत की। जबकि उनके खिलाफ मुंबई के पूर्व कमिशनर अनूप मोहन पटनायक चुनाव मैदान में थे। मुंबई पुलिस कमिश्नर रहे सत्यपाल सिंह ने एक बार फिर चुनावी मैदान में बाजी मारी है।

सत्यपाल सिंह ने 2014 में बीजेपी के टिकट से राजनैतिक कैरियर शुरूआत की थी, उस वक्त उन्होंने नौकरी से इस्तीफा देकर बीजेपी का दामन थामा था। वह इस बार फिर बीजेपी के टिकट पर बागपत से चुनाव जीते हैं। बीजेपी सरकार ने सत्यपाल सिंह को केन्द्र में मंत्री भी बनाया था। वहीं पंजाब की फतेहपुर साहिब सीट पर दो नौकरशाह पहली बार राजनीति के रण में आमने सामने थे।

लेकिन यहां पर कांग्रेस के अमर सिंह चुनाव जीतने में कामयाब रहे। जबकि अकाली दल के टिकट पर चुनाव लड़े दरबारा सिंह को हार का सामना करना पड़ा। दिलचस्प ये है कि दरबारा सिंह और अमर सिंह आपस में अच्छे दोस्त भी हैं। असल में पूर्व नौकरशाहों का या फिर वीआरएस लेकर राजनीति में दस्तक देना कोई नई बात नहीं है। इससे पहले भी कई नौकरशाह राजनीति के क्षेत्र में सफल हो चुके हैं।

इसमें उत्तर प्रदेश से पीएल पूनिया का नाम प्रमुख है। पूनिया यूपी की बाराबंकी से सांसद रह चुके हैं और वर्तमान में कांग्रेस से राज्यसभा के सांसद हैं। यूपी में तो पूर्व आईएएस और केन्द्र में सचिव रह चुके हरीश चंद्र ने अपनी राजनैतिक पार्टी का गठन किया था, लेकिन वह राजनीति में सफल नहीं हो सकी। वहीं असम में कांग्रेस के टिकट पर पूर्व नौकरशाह एमजीवीके भानु पहली बार तेजपुर से चुनावी मैदान में उतरे लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा।

गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी भी पहले पूर्व ब्यूरोक्रेट्स हैं जो किसी राज्य के मुख्यमंत्री बने। वह आईएएस अफसर थे और वीआरएस लेकर उन्होंने कांग्रेस की राजनीति शुरू की थी। राजस्थान में भी पहले कई नौकरशाह राजनीति के मैदान में उतर चुके हैं और जीतने में कामयाब रहे। राजस्थान में पूर्व नौकरशाहों में अर्जुनराम मेघवाल, सीआर चौधरी, हरिश्चंद्र मीणा और नमोनारायण मीणा का नाम प्रमुख है।