नई दिल्ली: चार चरणों का चुनाव संपन्न होते होते पीएम मोदी के विरोध में खम ठोंक रहे विपक्ष की सांसे फूलने लगी है। शायद उसे अहसास होने लगा है कि उनके लाख विरोध और बयानबाजियों के बाद भी मोदी लहर से पार पाना उनके लिए आसान नहीं है। इसलिए हड़बड़ी में वह एक के बाद एक गलतियां किए जा रहा है। देखिए विपक्षी खेमे में मची भगदड़ के सात बेहद बारीक संकेत: 

1.    पीएम मोदी के खिलाफ वाराणसी में उम्मीदवारों के चयन का ड्रामा
वाराणसी में पीएम को चुनौती देने के लिए समाजवादी पार्टी ने शालिनी यादव का चयन किया था। जो कि पहले कांग्रेस में थीं और नामांकन के दिन ही उन्हें वहां से इस्तीफा दिलाकर बीजेपी में लाया गया था। लेकिन ऐन समय पर उनका पत्ता काटकर बीएसएफ के पूर्व जवान तेज बहादुर यादव को सपा का उम्मीदवार घोषित कर दिया गया। सपा इतनी हड़बड़ी में थी कि उसने ऐसा करने से पहले शालिनी को सूचना तक नहीं दी। सोमवार को शालिनी का जुलूस ढोल-नगाड़े के साथ नगर निगम से नामांकन स्थल पर पहुंचा। शालिनी नामांकन करने अंदर चली भी गईं लेकिन तभी सपा सरकार में दर्जा प्राप्त मंत्री रहे मनोज राय धूपचंडी बीएसएफ के बर्खास्त सिपाही तेज बहादुर को लेकर नामांकन स्थल पर पहुंच गए। शालिनी को बताया गया कि  सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने शालिनी यादव की जगह पर पार्टी का सिंबल तेज बहादुर को दे दिया है।
वाराणसी में सपा अध्यक्ष की रणनीति में दिखी हड़बड़ी
लेकिन बाद मे तकनीकी कारणों से जिला निर्वाचन अधिकारी ने तेज बहादुर का नामांकन रद्द कर दिया। जिसके बाद शालिनी यादव एक बार फिर से सपा की प्रत्याशी बन गईं। 
अखिलेश यादव की रणनीति इस तरह हुई फेल
ऐसे में आप खुद ही तय करिए कि जिस शालिनी यादव को एक बार सपा ने धोखा दे दिया। वह पीएम मोदी जैसे कद्दावर कैंडिडेट के खिलाफ किस मुंह से चुनाव मैदान में उतरेंगी और अगर वह आधे अधूरे मन से चुनाव में उतरती भी हैं तो उनकी जीत की संभावनाएं कितनी रह जाएंगी। दरअसल यह वाकया आसन्न हार को देखकर सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव की घबराहट का साफ संकेत देता है। 

2.    प्रियंका गांधी वाड्रा के मुंह से निकले सच ने दिया संकेत 
हाल ही में कांग्रेस महासचिव बनी प्रियंका गांधी राजनीति में बिल्कुल नई हैं। इसलिए वह राजनैतिक दांव पेचों से अभी तक पूरी तरह वाकिफ नहीं हो पाई हैं। प्रियंका ने बुधवार को एक बड़ा बयान दे दिया। जिसने साफ कर दिया कि कांग्रेस पार्टी जीत के लिए लड़ ही नहीं रही। 
प्रियंका गांधी वाड्रा ने बयान दिया कि कांग्रेस पार्टी ने लोकसभा चुनाव में कमजोर प्रत्याशी उतारे हैं। ताकि बीजेपी को हराया जा सके और उसका वोट काटा जा सके। प्रियंका ने यह बयान न्यूज एजेन्सी एएनआई को दिया। 
प्रियंका की जुबान से फिसल गई सच्चाई
प्रियंका के बयान से यह साफ हो जाता है कि देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस को अपनी सरकार बनने की कोई उम्मीद नहीं है। वह बस बीजेपी के रास्ते में अवरोध पैदा करने के लिए चुनावी मैदान में उतरी है। उसका मकसद सिर्फ और सिर्फ बीजेपी उम्मीदवारों के लिए ‘वोटकटवा’ की भूमिका निभाना है। जिससे कि बीजेपी को हराकर दूसरे उम्मीदवारों की जीत का रास्ता साफ किया जा सके। 
यानी कांग्रेस शुरुआत से ही यह मानकर चल रही है कि केन्द्र में उसकी सरकार बनने की कोई संभावना नहीं है। वह सिर्फ बीजेपी और खास तौर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का रास्ता रोकना चाहती है। 
3.    अदालत में दिए हलफनामे में राहुल गांधी को सच्चाई स्वीकार करने के लिए मजबूर होना पड़ा
पिछले कई महीनों से राहुल गांधी राफेल मामले को लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर हमला कर रहे हैं और अपनी रैलियों में चौकीदार ....... है का नारा लगवा रहे हैं। लेकिन पिछले दिनों बीजेपी सांसद मीनाक्षी लेखी की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में राहुल गांधी की जमकर क्लास ली। जिसके बाद राहुल गांधी ने अदालत मे हलफनामा दायर करके बताया कि ‘उन्होंने 'चौकीदार चोर है' की टिप्पणी चुनाव प्रचार की सरगर्मी में उत्तेजित होकर की थी। ’
अदालत ने चौकीदार के मुद्दे पर राहुल गांधी को बुरी तरह घेरा
देश की सबसे पुरानी पार्टी के अध्यक्ष राहुल गांधी इतनी बड़ी गलती कैसे कर सकते हैं कि वह बिना किसी तथ्यों के देश के प्रधानमंत्री पर अनर्गल आरोप लगा दें। यह इस बात का संकेत है कि राहुल बीजेपी की बढ़ती लोकप्रियता से घबरा गए हैं और उन्हें लग रहा है कि उनकी रणनीति काम नहीं कर रही है। यह वाकया राहुल गांधी की हार स्वीकार करने वाली मन:स्थिति को दिखाता है।  

4.        चुनाव खत्म होने से पहले ही कांग्रेसियों के राहुल-प्रियंका खेमे में जंग

वाराणसी में दावेदारी को लेकर पिछले दिनों कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और कांग्रेस महासचिव प्रियंका वाड्रा के समर्थक आपस में भिड़ गए। पहले तो कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के करीबी सैम पित्रोदा ने यह कहकर सनसनी फैला दी कि वाराणसी से चुनाव न लड़ने का फैसला खुद प्रियंका गांधी का था। 
लेकिन उनकी बात का जवाब देते हुए प्रियंका गांधी के करीबी माने जाने वाले राजीव शुक्ला ने कहा, प्रियंका गांधी को वाराणसी से न लड़ाने का फैसला राहुल गांधी का था। प्रियंका तो वाराणसी से लड़ने की इच्छुक थी। 
 चुनाव खत्म होने से पहले ही राहुल प्रियंका की खेमेबाजी सामने आ गई

आम तौर पर एक दूसरे पर दोषारोपण का यह काम चुनाव खत्म होने के बाद किया जाता है। लेकिन जिस तरह से चुनाव के बीच में ही कांग्रेस के दोनों बड़े नेताओं के समर्थक आपस में भिड़ रहे हैं उससे लगता है कि वह मान चुके हैं कि कांग्रेस के हाथ से यह चुनाव निकल चुका है। 

5. जौनपुर के बहाने मायावती अखिलेश के अवसरवाद की झलक

समाजवादी पार्टी जौनपुर सीट से अपना प्रत्याशी उतारना चाहती थी, लेकिन बीएसपी ने यहां से अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया। सपा चाहती थी कि बीएसपी यहां से अपना प्रत्याशी न उतारे और वह इस सीट के बदले बलिया की सीट देने के लिए तैयार थी। अखिलेश यादव यहां से अपने चचेरे भाई तेज प्रताप यादव को टिकट देना चाहते थे। लेकिन मायावती ने एसपी प्रमुख की इस मांग को कोई तवज्जो नहीं दी।
यही नहीं मायावती ने जौनपुर से माफिया डॉन मुख्तार अंसारी के भाई को टिकट दिया। जबकि अखिलेश यादव किसी माफिया को टिकट नहीं देना चाहते थे। बाद में बड़ी ही मुश्किल से अखिलेश और मायावती के करीबियों ने गठबंधन बचाया। जौनपुर में मायावती ने अखिलेश को नीचा दिखाया

जौनपुर में टिकट वितरण के मुद्दे पर जिस तरह मायावती ने अखिलेश को आईना दिखा दिया उससे यह साफ होता है कि दोनों की दोस्ती बस चुनाव तक ही है। चुनाव के बाद दोनों के रास्ते अलग हो जाएंगे। मायावती ने इस बात के संकेत दे दिए हैं। क्योंकि वह जानती हैं कि किसी भी सूरत में वह या सपा केन्द्र में सरकार बनाने नहीं जा रही है। ऐसे में वह ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतकर मोलभाव की स्थिति में आना चाहती हैं। 
यह वाकया बताता है कि विपक्ष भले ही बीजेपी के विरोध के लिए गठबंधन के साथ बंधा हुआ है। लेकिन वह चुनाव के बाद अपनी राह अलग कर लेगा और बीजेपी के पास बहुमत आया तो उसे उसके साथ जाने में कोई गुरेज नहीं होगा। 

6. घबराए राहुल गांधी का अमेठी के साथ वायनाड से भी पर्चा भरना 
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने इस बार यूपी की अपनी परंपरागत सीट अमेठी के साथ केरल के वायनाड से भी पर्चा भरा है।  उन्हें चुनौती देने वाली बीजेपी की वक्ता स्मृति ईरानी ने 2014 में उन्हें कड़ी टक्कर दी थी। स्मृति ने इतना धुआंधार प्रचार किया कि राहुल गांधी के सामने एक बार तो हार का खतरा ही मंडराने लगा था। पिछले चुनाव में स्मृति ईरानी को 300748(लगभग तीन लाख) वोट मिले। जबकि राहुल गांधी को 408651(लगभग चार लाख) वोट हासिल हुए। 
2014 में मात्र 20 दिनों के प्रचार में स्मृति ईरानी राहुल गांधी के इतने करीब पहुंच गई थीं कि उनकी जीत का अंतर मात्र एक लाख रह गया था। लेकिन इस बार स्मृति ईरानी के पास पूरे पांच साल का समय था। इस दौरान वह अमेठी के लोगों से लगातार संपर्क में रहीं हैं।  जानिए वायनाड क्यों गए हैं राहुल गांधी
इसीलिए राहुल गांधी खतरा महसूस कर रहे हैं और उन्होंने वायनाड सीट से भी पर्चा भर दिया है। यह दिखाता है कि कांग्रेस अध्यक्ष हार के डर से घबराए हुए हैं। 

7. विपक्ष के टूटे मनोबल का सबसे बड़ा उदाहरण मुलायम सिंह यादव का संसद में बयान  
समाजवादी पार्टी के संरक्षक और बुजुर्ग समाजवादी नेता मुलायम सिंह यादव ने संसद सत्र के आखिरी दिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तारीफ की और कहा कि उन्हें फिर से प्रधानमंत्री चुनकर आना चाहिए। खास बात यह है कि मुलायम सिंह ने यह बयान लोकसभा में तब दिया, जब उनके ठीक सामने कांग्रेस की वरिष्ठतम नेता सोनिया गांधी बैठी हुई थीं।
मुलायन के शब्द थे कि ‘प्रधानमंत्री को बधाई देना चाहता हूं कि पीएम ने सबको साथ लेकर चलने की कोशिश की है। मैं कहना चाहता हूं कि सारे सदस्य फिर से जीतकर आएं और आप दोबारा प्रधानमंत्री बनें।’
जब मुलायम सिंह यादव यह बोल रहे थे उस समय लोकसभा टीवी के कैमरे के फ्रेम में यूपीए की चेयरपर्सन सोनिया गांधी भी बैठी हुई थीं। वह काफी असहज हो गई थीं। यह लोकसभा चुनाव के आगाज से पहले 13 फरवरी की घटना थी। 
 चुनाव शुरु होने से पहले ही मुलायम ने कर दी है मोदी की फिर से ताजपोशी की भविष्यवाणी

इन सात संकेतों से यह स्पष्ट होता है कि कांग्रेस और महागठबंधन दोनों ही आधे अधूरे मन से एक दूसरे के सहारे लोकसभा चुनाव 2019 में उतरे हैं। वहीं एनडीए खेमा पीएम मोदी के नेतृ्त्व में एनडीए खेमा बेहद आक्रामक और रणनीतिक तरीके से चुनाव के लिए सबसे अहम बूथ प्रबंधन से लेकर प्रचार और रैलियों में जुटा हुआ है। 
इसलिए परिणाम का अंदाजा लगाना ज्यादा मुश्किल नहीं है।