लखनऊ में राज भवन के गेट नंबर 13 पर एक प्रसूता ने बच्चों को जन्म दिया। प्रसूता का नाम सोनी है। सुबह से सोनी को पेट में दर्द हो रहा था सोनी का पति बृजेश सिविल हॉस्पिटल ले गया जहां डॉक्टर ने इमरजेंसी में इंजेक्शन लगाकर उसे वापस कर दिया। सोनी का दर्द बढ़ता जा रहा था बृजेश ने एंबुलेंस को कॉल किया लेकिन एंबुलेंस भी नहीं आई। और फिर सड़क किनारे खुले आसमान के नीचे राजभवन के गेट नंबर 13 पर सोनी ने एक मरे बच्चे को जन्म दिया।
लखनऊ. मां बनना एक सुखद एहसास होता है लेकिन जब मां अपने बच्चे को पेट में रखती है तब वह किस-किस दर्द से गुजरती है इसके बारे में वो सभी लोग जानते हैं जिनके घर में कोई महिला मां बनती है। 9 महीना, दवाइयां लेना, इंजेक्शन लगवाना, डॉक्टर और अस्पताल के चक्कर काटना और फिर लेबर पेन जिसमें औरत ज़िन्दगी और मौत के दरमियान खड़ी रहती है। Mynation Hindi की रिपोर्टर काविश अजीज ने एक ऐसे ही मंज़र को सड़क किनारे देखा। इन्होंने एक गर्भवती मां को तड़पते देखा। पढ़िए काविश की आंखों देखी...।
''सुबह का वक्त था। करीब 11 बजे थे। मैं राज भवन के गेट नंबर 13 के पास से गुजर रही थी। देखा तो कुछ औरतें दो तरफ से चादर ताने हुए थीं। राजधानी का वीआईपी इलाका, राजभवन का गेट और यह दृश्य। मैं खुद को रोक न सकी और पहुंच गई उस चादर की आड़ तक। तिरछी नजर से अंदर देखा तो एक औरत कराह रही थी। तड़प रही थी। उसके पास एक बुजुर्ग औरत बैठी थी। फर्श पर खून बिखरा था। पास खड़ी औरतों ने बताया कि प्रसव पीड़ा हो रही है। पिछले एक घंटे से एंबुलेंस को फोन कर रही थी लेकिन वो नहीं आई। पेट में दर्द बढ़ता चला गया। आगे बढ़ने की हिम्मत नहीं थी, बस यहीं सड़क किनारे इसे लेकर बैठ गया।''
न एंबुलेंस आई, न अस्पताल ने एडमिट किया
''चादर के पास एक शख्स रो रहा था। सवाल करने पर पता चला वो गर्भवती महिला सोनी का पति बृजेश है। मैं उसके पास बैठ गई। वो समझ गया कि मैं कुछ पूछना चाहती हूं, फिर उसने खुद ही रोते हुए बताने लगा, "मैडम मेरा नाम बृजेश है। यह मेरी पत्नी सोनी है। यहीं माल एवेन्यू में रहता हूं। 4.6 महीने का गर्भ था। 4 दिन से अस्पताल का चक्कर काट रहे थे। दर्द से पत्नी तड़प रही थी लेकिन किसी भी अस्पताल ने एडमिट नहीं किया। सुबह भी सिविल अस्पताल में एडमिट कराने ले गया लेकिन अस्पताल वालों ने एडमिट नहीं किया। उन लोगों ने इंजेक्शन लगा कर भेज दिया। कुछ वजह भी नहीं बताया। हम हताश- निराश होकर अस्पताल से बाहर आ गए। रिक्शा लिया और घर वापसी करने लगा। इसी दौरान, अचानक सोनी का दर्द और बढ़ने लगा। हमने एंबुलेंस को फोन किया लेकिन एक घंटे तक वो नहीं आई। उसका दर्द बढ़ता चला गया और वह रिक्शा छोड़कर सड़क किनारे बैठ गई। मेरी आखरी उम्मीद मोहल्ले की दाई थी, उनको बुलाया वह बेचारी आ गई। रास्ते से गुजरने वाली कई महिलाएं रुक गईं। किसी ने चादर का इंतजाम किया, किसी ने पानी का लेकिन मैडम मेरा बच्चा मर गया। इतना कहकर वो सिसक-सिसक कर रोने लगा। चादर की आड़ से उसकी पत्नी के रोने की आवाज़ आ रही थी। मेरा बच्चा-मेरा बच्चा..।इसके आगे मैं कोई सवाल नहीं कर सकी। भारी कदमों से उस जगह से उठी और यही सोचती रही, swiggy, zomato, blinkit टाइम से हर जगह पहुंच जाते हैं तो एंबुलेंस क्यों नहीं पहुंच पाती...।'' यह खबर यूपी सरकार में डिप्टी सीएम बृजेश पाठक तक पहुंची। वो स्वास्थ मंत्री भी हैं। उन्होंने मृत नवजात का अंतिम संस्कार करवाया। बृजेश पाठक ने कहा- एंबुलेंस क्यों नहीं पहुंची, इसकी जांच के आदेश दे दिए हैं। सिविल अस्पताल में इलाज क्यों नहीं हुआ, इसको भी हम दिखवा रहे हैं। हम दोषियों को छोड़ेंगे नहीं। बहन का हालचाल जानने मैं हॉस्पिटल आया था। अभी वो पूरी तरह से ठीक है। उसके इलाज का पूरा खर्चा हम उठाएंगे।
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