RBI ने जारी किया नया रूल
मुंबई। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) ने बैंकों को बिना सुनवाई के कर्जदारों को एकतरफा तरीके से धोखाधड़ी के रूप में क्लासीफाई करने से रोक दिया है। RBI ने कहा है कि बैंकों को डिफॉल्टर को 21 दिन का कारण बताओ नोटिस देना होगा, ताकि एकाउंट को फ्रॉड के रूप में क्लासीफाईड करने से पहले उन्हें अपना पक्ष रखने का मौका मिल सके। आरबीआई ने पिछले वर्ष के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बादअपने रूल्स-रेगुलेशन को रिवाईज किया है।
RBI ने फ्रॉड रोकने के लिए सभी बैंक गठित करें कमेटी, अपनाएं ये रूल
RBI ने बैंकों से फ्रॉड रिस्क मैनेजमेंट पर बोर्ड द्वारा अप्रूव्ड पॉलिसी लागू करने को कहा है, जिसमें बोर्ड की जिम्मेदारियों को स्पेशीफाई किया गया है। RBI ने कहा है कि पॉलिसी में टाइम बॉड तरीके से नेचुरल जस्टिस के सिद्धांतों का अनुपालन सुनिश्चित करने के उपाय भी शामिल होने चाहिए। RBI ने कहा कि बैंकों को फ्रॉड पर एक कमेटी बनानी चाहिए, जिसमें एक फुल टाइम डायरेक्टर और मिनिमम दो इनडिपेंडेड या नॉन-एक्जिक्वीटिव डायरेक्टर्स सहित मिनिमम तीन बोर्ड मेंबर शामिल हों। कमेटी की अध्यक्षता किसी इनडिपेंडेड या नॉन-एक्जिक्वीटिव डायरेक्टर द्वारा की जानी चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट के आर्डर की समीक्षा के बार आरबीआई ने जारी की गाइडलाइन
RBI ने बैंकों से सुप्रीम कोर्ट और विभिन्न हाई कोर्ट के आदेशों की समीक्षा करने को कहा है, जिनमें व्यक्तियों या इंस्टीट्यूशन को धोखाधड़ी के रूप में क्लासीफाईड करने और तर्कसंगत आदेश जारी करने से पहले उन्हें सूचित करने, जवाब देने का अवसर प्रदान करने की आवश्यकता पर बल दिया गया है।नए नॉर्म्स के तहत बैंकों में छह महीने के भीतर अर्ली वार्निंग सिग्नल (EWS) सिस्टम में भी सुधार करना आवश्यक है।
RBI ने बैंक बोर्डों को फ्रॉड पॉलिसी को मंजूरी देने को कहा
EWS को सिस्टम के साथ इंटीग्रेटेड किया जाना चाहिए तथा पैरामीट्रिक सिग्नेचर्स के अलावा अनयूजुअल पैटर्न की पहचान करने के लिए डेटा एनालिटिक्स का उपयोग करने की आवश्यकता है। बैंक बोर्डों को फ्रॉड पॉलिसी को मंजूरी देनी होगी। नए नॉर्मस के तहत बैंकों में छह महीने के भीतर अर्ली वार्निंग सिग्नल सिस्टम में भी सुधार की आवश्यकता है। बैंकों को असामान्य पैटर्न की पहचान करने के लिए डेटा एनालिटिक्स का उपयोग करने की आवश्यकता है।
1 करोड़ से ज्यादा के फ्रॉड पर स्टेट पुलिस से करनी होगी कंप्लेन
केंद्रीय बैंक RBI ने ₹1 करोड़ की लिमिट तय की है, जिसके ऊपर बैंकों को धोखाधड़ी की घटनाओं की रिपोर्ट राज्य पुलिस को देनी होगी। प्राइवेट बैंकों को 1 करोड़ रुपये से अधिक के फ्रॉड की सूचना सीरियस फ्रॉड इन्विस्टिगेशन ऑफिस और कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय को देनी होगी। पब्लिक सेक्टर के बैंकों के लिए CBI को फ्रॉड की सूचना देने के लिए 6 करोड़ रुपये की लिमिट जारी रहेगी।
जिम्मेदारी से बचने वालों के साथ बैंक अपनाएं अलग तरीका
बैंकों से कहा गया है कि वे नॉन-फुल टाइम डायरेक्टर्स, जैसे कि नॉमिनेज डायरेक्टरों और इंडिपेंडेंट डायरेक्टरों के साथ काम करते समय अलग तरीके अपनाएं, जो आमतौर पर कंपनी के दिन-प्रतिदिन के कार्यों की देखरेख नहीं करते हैं या सीधे तौर पर जिम्मेदारी नहीं लेते हैं।
FIR के तौर तरीके भी किए गए निर्धारित
RBI ने कहा कि कंसोर्टियम लोन के मामले में यदि प्रत्येक के संबंध में अलग-अलग क्राइम किए गए हैं। यदि किया गया फ्रॉड उसी फ्रॉडलेंट एक्ट्स/ट्रांजेक्शन का हिस्सा नहीं है, तो प्रत्येक कंसोर्टियम मेंबर्स अलग-अलग कंप्लेन दर्ज कर सकता है। ऐसे लोन के अन्य मामलों में, केवल एक मेंबर कंप्लेन दर्ज कर सकता है और अन्य सभी मेंबर आवश्यक सहायता प्रदान कर सकते हैं।