मिलिए 'जलदूत' नंद किशोर वर्मा से, जल संरक्षण का ऐसा जुनून कि बंद कर दी कोचिंग क्लास, अब 'नेशनल वॉटर हीरो' 

By Rajkumar Upadhyaya  |  First Published Mar 22, 2024, 1:59 PM IST

World Water Day: पेशे से टीचर नंद किशोर वर्मा ने पानी बचाने के लिए साबुन से नहाना बंद कर दिया। जल संरक्षण का ऐसा जुनून चढ़ा कि शाम को चलने वाली कोचिंग क्लासेज बंद कर दी। नदी व पर्यावरण प्रेमी बन गए। अब लोगों को जल-नदियां बचाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं।

World Water Day: यूपी के लखनऊ के एक निजी स्कूल में टीचर नंद किशोर वर्मा जल संरक्षण एवं पर्यावरण बचाने के लिए लोगों को प्रेरित करते हैं। नदियों की सफाई से जुड़ा काम उनकी रूटीन में है। माय नेशन हिंदी से बात करते हुए वह कहते हैं कि साल 2009 से जल-नदी संरक्षण और पौधारोपण के लिए काम शुरु किया। सोचा कि पहले खुद में परिवर्तन लाया जाए। पानी की बर्बादी रोकने के लिए साबुन से नहाना बंद कर दिया। खानपान में ज्यादा बर्तनों का इस्तेमाल करना रोका। फिर भूगर्भ जल के अंधाधुंध दोहन को रोकने और जल प्रदूषण पर कंट्रोल के लिए लोगों को जागरूक करने का काम शुरू किया। भूगर्भ जल और सतही जल (तालाब, पोखरों, नदियों) पर स्टडी की। 

कैसे मिली जल संरक्षण की प्रेरणा?

दरअसल, 15 साल पहले लखनऊ के पुस्तक मेले में एक शख्स से मुलाकात के बाद उनका जीवन बदल गया। वह शख्स पर्यावरण चिंतक और चिपको आंदोलन के प्रमुख नेता सुंदर लाल बहुगुणा थे। पर्यावरण से लगाव उनकी डेली रूटीन से झलकता था। वह ऐसे अनाज और फल का सेवन करते थे, ​जिसकी उपज में कम पानी यूज होता हो। उनकी यही हैबिट नंद किशोर वर्मा को अंदर तक छू गई और उन्होंने पर्यावरण बचाने के लिए काम शुरू करने का फैसला लिया और अब 'जलदूत' के रूप में जाने जाते हैं।

आसान नहीं था कमाई का स्रोत बंद करना

आमतौर पर टीचर स्कूल में पढ़ाने के साथ कोचिंग क्लासेज भी चलाते हैं। नंद किशोर वर्मा भी शाम के वक्त कोचिंग क्लास चलाते थे। यह उनकी अतिरिक्त कमाई का स्रोत था। पर्यावरण के क्षेत्र में काम करने की राह में ऐसा रमे कि क्लासेज बंद कर दी तो परिवार और दोस्तों ने उनकी खूब आलोचना की। लोगों के तीखे रिएक्शन झेलते रहें और नदियों—जल स्रोतों के बारे में स्टडी शुरू कर दी।

 

ट्रेनिंग लेकर स्कूली बच्चों को करने लगे जागरूक

जल संरक्षण का काम बेहतर तरीके से कैसे किया जाए? शुरुआती दिनों में नंद किशोर वर्मा के जेहन में यह सवाल उठते थे। जानकारी हासिल करने के लिए साल 2010 में उत्तराखंड प्रशासन अकादमी को पत्र लिखा। एकेडमी ने उनका अनुरोध स्वीकार कर लिया और नैनीताल में ट्रेनिंग हासिल की। देश की प्रतिष्ठित संस्थाओं से भी काम सीखा और ​फिर स्कूलों में वर्कशॉप के माध्यम से बच्चों को जागरूक करने लगे।

गर्मी की छुट्टियों में मोटरसाइकिल यात्रा

साल 2010 में ही वर्मा ने गर्मी की छुट्टियों में मोटरसाइकिल यात्रा शुरू की। नदियों-झीलों के पौराणिक महत्व के बारे में जानकारी इकट्ठा की। अब तक 10 प्रदेशों की मोटरसाइकिल यात्रा कर चुके हैं। उस दौरान रास्ते में भी करीबन एक हजार नुक्कड़ सभाएं कर लोगों को पर्यावरण के प्रति जागरूक करते रहें। इस काम के लिए उन्हें लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड में स्थान मिला। आमतौर पर गंगा, यमुना जैसी प्रसिद्ध नदियों के बारे में सबको जानकारी है। पर स्थानीय नदियों के बारे में देश में कम लोग ही जानते हैं। वर्मा ने 108 नदियों की कथाएं लिखी। 10 हजार पौधे लगाएं। 

7 प्रदेशों में काम कर रही टीम, प्रशासन भी मानती है नदी विशेषज्ञ

नंद किशोर वर्मा की टीम यूपी, बिहार, राजस्थान, महाराष्ट्र, हरियाणा समेत 7 प्रदेशों में काम कर रही है। लोगों को जल संरक्षण के लिए जागरूक करने के साथ पर्यावरण संरक्षण के लिए भी काम कर रही है। एक समय ऐसा भी था कि कोई भी जल संरक्षण जागरूकता को लेकर उनकी बात सुनने को तैयार नहीं था तो उन्होंने लोगों को जागरूक करने के लिए दोहे लिख डाले। उसे 'जलदूत के दोहे' नाम दिया। साल 2021 में 'नेशनल वॉटर हीरो' सम्मान मिला। मौजूदा समय में जिला गंगा समिति, लखनऊ से नदी विशेषज्ञ के तौर पर जुड़े हैं। 

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