कोरोना महामारी के दौरान पहले लाकडाउन के समय शिवम सोनी इंदौर में थे। खाने की बड़ी दिक्कत हुई। 2-2 दिन भूखा रहना पड़ा। सड़कों पर रात गुजारनी पड़ी। इसलिए जब कोरोना महामारी के हालात थोड़े सही होने शुरु हुए तो उन्होंने 'हंगर लंगर' नाम से एक रेस्टोरेंट शुरु कर दिया।
इंदौर। कोरोना महामारी के दौरान पहले लाकडाउन के समय शिवम सोनी इंदौर में थे। खाने की बड़ी दिक्कत हुई। 2-2 दिन भूखा रहना पड़ा। सड़कों पर रात गुजारनी पड़ी। चूंकि इंदौर आने से पहले शिवम, सागर जिले में खाने का ही काम करते थे, टिफिन सर्विस चलाते थे। इसलिए जब कोरोना महामारी के हालात थोड़े सही होने शुरु हुए तो उन्होंने 'हंगर लंगर' नाम से एक रेस्टोरेंट शुरु कर दिया। जिसमें 10 से 15 रुपये में लोगों को फूड की वह वैराइटी उपलब्ध होती है, जिसे गरीब लोग अफोर्ड नहीं कर सकते।
लॉकडाउन में फूड की दिक्क्त बना मोटिवेशन
शिवम सोनी कहते हैं लॉकडाउन के समय फूड के लिए सर्वाइव किया था। रेस्टोरेंट खोलने की पीछे यही मोटिवेशन था कि लोगों को कम दामों में अच्छी वैराइटी का फूड उपलब्ध कराया जाए। शिवम कहते हैं कि पहली बार इंदौर आया था। लॉकडाउन लग गया। उस समय खाना बांटने वाले कभी आते थे तो इतनी खराब कंडीशन रहती थी कि खाना नहीं मिल पाता था। कभी-कभी खाना दिन-दिन भर नहीं आता था। यहां के लोगों ने काफी मदद की। मेरे मन में आया कि यहां के लोगों के लिए कुछ करना चाहिए। यही देखते हुए हंगर लंगर की शुरुआत कर दी।
लोग चेक करते थे तेल-मसाले की क्वालिटी
हंगर लंगर चलाना इतना आसान नहीं था। शुरुआती दिनों में उन्हें रेस्टोरेंट को सफल बनाने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा। खाने की कीमतों को लेकर लोगों ने मजाक भी उड़ाया। शिवम कहते हैं कि कुछ लोग खाना बनाने में यूज होने वाले सामान भी देखने आ जाते थे कि उसमें किस क्वालिटी का सामान यूज किया जा रहा है। शुरुआती दिनों में शिवम के लिए लोगों का भरोसा जीतना ही सबसे बड़ा स्ट्रगल था। प्रॉफिट और मार्जिन का रेशियो जीरो था। ऊपर से लोग मजाक उड़ाते थे। ऐसे सिचुएशन में कोई भी व्यक्ति निराश हो सकता है। पर शिवम सोनी को खुद पर भरोसा था और वह डटे रहें। संयोग से लोगों को उनके स्ट्रगल के बारे में पता चला, तब जाकर लोगों का भरोसा उन पर जमा और उनका हंगर लंगर चल पड़ा।
सागर से इंदौर पहुंचे तो लॉकडाउन
शिवम सोनी ने अपनी शुरुआती पढ़ाई सागर जिले से ही की है। ज्ञान सागर कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग में कम्प्यूटर साइंस से बीटेक के लिए दाखिला लिया। पर पहले ही साल में ड्राप आउट ले लिया। उनके पिता का देहांत भी हो गया था। घर की जिम्मेदारियां निभानी थीं। उसी दौरान उन्होंने खुद का बिजनेस करने का मन बनाया और सागर में खाने का काम शुरु कर दिया। कुछ ऐसी हुआ कि उनका व्यवसाय में नुकसान हो गया। कर्जा इतना बढ़ गया कि उन्हें सागर से भागना पड़ा और इंदौर पहुंचे तो लॉकडाउन लग गया।
ठंडी में देते हैं 5 रुपये की खिचड़ी
बरहाल, अब शिवम रोज सुबह रेस्टोरेंट के लिए सामान लेकर आते हैं। खाने की चीजें तैयार करते हैं। नाश्ते में सुबह के समय इडली, वेज बिरयानी, उपमा आदि 5 से 6 आइटम रखते हैं। दोपहर का खाने में छोले बठूरे की थाल होती है। ठंडी के दिनों में उनके रेस्टोरेंट पर 5 रुपये की खिचड़ी भी मिलती है। उनके भाई भी बिजनेस में उनका साथ दे रहे हैं। उन्हें परिवार का पूरा सपोर्ट मिला है।
उद्योगपति आनंद महिंद्रा भी कर चुके हैं तारीफ
उनके काम की महिंद्रा एंड महिंद्रा के चेयरमैन आनंद महिंद्रा भी तारीफ कर चुके हैं। उन्होंने ट्वीट कर कहा था कि खुद को ठीक करने के लिए दूसरों की मदद करना सबसे बेहतर तरीका है। क्या दमदार कहानी है...जीवन हमें सिखाता रहता है।