पैरेंट्स और दोस्तों के विरोध के बावजूद, समीर डोंबे ने अंजीर की खेती से 1.5 करोड़ रुपये का सालाना कारोबार खड़ा किया। पढ़ें उनकी सफलता की कहानी।
नई दिल्ली। क्या आपने कभी सोचा है कि एक मैकेनिकल इंजीनियर, जो हर महीने 40,000 रुपये की सैलरी पाता हो, वह अपनी नौकरी छोड़कर खेती करने लगे? महाराष्ट्र के दौंड (पुणे के पास) के रहने वाले समीर डोंबे ने यही किया। नतीजतन, उन्हें परिवार और दोस्तों का विरोध झेलना पड़ा। समाज ने भी उन पर सवाल उठाए। लेकिन आज वही समीर अंजीर की खेती से सालाना 1.5 करोड़ रुपये का कारोबार खड़ा कर चुके हैं और दूसरों को भी खेती से जुड़ने की प्रेरणा दे रहे हैं। आइए जानते हैं उनकी इंस्पिरेशनल स्टोरी।
शुरुआत में परिवार क्यों था खिलाफ?
समीर जब इंजीनियरिंग की नौकरी छोड़कर खेती में आने की बात करने लगे, तो माता-पिता को लगा कि उनकी आगे की ज़िंदगी मुश्किलों से भर जाएगी। परिवार को डर था कि “अच्छी तनख्वाह वाला लड़का” होने पर भी यदि वह नौकरी छोड़ देगा, तो शादी के लिए न रिश्ते ढंग के मिलेंगे, न समाज में सम्मान। दोस्तों ने भी सोचा कि समीर ग़लत रास्ते पर जा रहा है। लेकिन समीर ने ठान लिया था कि वह ट्रेडिशनल खेती में भी मॉर्डन तरीक़े अपनाकर बड़ा मुकाम हासिल करके दिखाएंगे।
ट्रेडिशनल फॉर्मिंग में मॉर्डन सोच
समीर का परिवार वर्षों से अंजीर उगाता आ रहा था। उन्हें फसल की बुनियादी तकनीक और खेती के गुर विरासत में मिले। हालांकि, खेती के ट्रेडिशनल मेथड से सिर्फ लोकल मार्केट तक ही सीमित रहना पड़ता था। समीर ने यही सोच बदलने का फ़ैसला किया। शुरुआत में उन्होंने महज़ 2.5 एकड़ जमीन पर अंजीर की खेती शुरू की, लेकिन मार्केटिंग के पुराने तरीक़े बदले। अंजीर की पैकेजिंग और ब्रांडिंग पर ज़ोर दिया।
‘पवित्रक’ ब्रांड बनाया और सुपरमार्केट में मिली एंट्री
समीर के एक दोस्त ने सुझाव दिया कि अंजीर को थोक में बेचने के बजाय उन्हें एक किलोग्राम के पैक में तैयार करके सुपरमार्केट तक पहुंचाया जाए। इस तरह “पवित्रक” नाम से उनका ब्रांड बना। पहली ही बार में कस्टमर्स का अच्छा रिएक्शन मिला, तो जल्द ही कई सुपरमार्केट चेन से करार हो गया। देखते ही देखते पुणे, मुंबई, दिल्ली और बेंगलुरु जैसे महानगरों तक समीर के अंजीर पहुंचने लगे।
कस्टमर्स से सीधा संपर्क और बढ़ा मुनाफ़ा
समीर ने अंजीर के पैकेट पर कॉन्टैक्ट नंबर दिया। उसका फ़ायदा यह हुआ कि कस्टमर सीधे ऑर्डर देने लगे। इससे उन्हें बल्क ऑर्डर भी मिलने शुरू हुए। समीर ने छोटे-छोटे ग्रुप बनाकर ऑर्डर पूरे करवाने की स्ट्रेटजी अपनाई, ताकि प्रोडक्शन और डिलीवरी दोनों चुस्त-दुरुस्त रह सकें। नतीजतन, उनका मुनाफ़ा लगातार बढ़ता गया।
दौंड की जलवायु ने भी दिया साथ
दौंड पहाड़ी इलाक़ा है, जहां पानी ज़मीन में जल्दी रिस जाता है और वाष्पीकरण भी ज़्यादा नहीं होता। इसके अलावा हाईवे से थोड़ी दूरी होने के कारण खेत में प्रदूषण कम और पानी की क्वालिटी बेहतर रहती है। अंजीर की खेती के लिए ये सारी चीजें बेहद फ़ायदेमंद साबित होती हैं। समीर ने इसी मौक़े को सही समय पर पहचाना और अंजीर की खेती में अपनी पूरी ताक़त झोंक दी।
लॉकडाउन में कमाए लाखों
जब ज़्यादातर व्यवसाय लॉकडाउन में ठप हो गए थे, तब समीर ने ऑनलाइन माध्यम से बिक्री जारी रखी। उन्होंने व्हाट्सऐप के ज़रिए ऑर्डर लेना शुरू किया, जिससे घर बैठे लोग ताज़े अंजीर मंगवाने लगे। सुपरमार्केट बंद रहने के बावजूद उन्होंने 13 लाख रुपये की कमाई की। इस दौरान ग्राहकों से सीधा संपर्क होने से वह नए बाजारों तक पहुंच सके।
फूड प्रोसेसिंग यूनिट लगाई, जैम और दूसरे प्रोडक्ट भी मार्केट में उतारे
धीरे-धीरे समीर ने अपनी ज़मीन 2.5 एकड़ से बढ़ाकर 5 एकड़ कर ली। उन्होंने फूड प्रोसेसिंग यूनिट भी लगाई। “पवित्रक” ब्रांड के तहत अंजीर से बनने वाले जैम और दूसरे प्रोडक्ट्स को भी मार्केट में उतारने में सफल रहें। अब ये सारे प्रोडक्ट ऑनलाइन भी उपलब्ध हैं, जो उनकी कमाई का एक मजबूत जरिया बन गए हैं।