Success Story: दिल्ली स्लम में रहकर पढ़ीं, पिता बेचते हैं चाय, मुश्किलों को हराकर ऐसे CA बनीं अमिता प्रजापति

By Rajkumar Upadhyaya  |  First Published Jul 22, 2024, 6:19 PM IST

दिल्ली की अमिता प्रजापति ने 10 सालों की मेहनत और संघर्ष के बाद चार्टर्ड एकाउंटेंट बनने का सपना पूरा किया। पिता की चाय बेचने की छोटी दुकान और झुग्गी-झोपड़ी में रहने के बावजूद हिम्मत नहीं हारी। आइए जानते हैं उनकी इंस्पिरेशनल स्टोरी।

Success Story: दिल्ली की अमिता प्रजापति 10 साल से चार्टर्ड एकाउंटेंट बनने का सपना देख रही थी। स्लम में रहकर पढ़ीं। पिता चाय बेचकर परिवार चलाते रहें, वह बेटियों को पढ़ाने को लेकर समाज के ताने सुनते और अनसुना करते रहे। बीते दिनों जब इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड अकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया (ICAI CA 2024) का रिजल्ट निकला तो बेटी ने अपने पिता को गले से लगा लिया और भावुक होकर बोलीं कि "मैं सीए बन गई पापा।" यह फिल्मी नहीं, बल्कि अमिता प्रजापति की रियल लाइफ सक्सेस स्टोरी है। जिसका वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। 

परिवार संभालने के लिए चुना हार्ड वर्क का रास्ता

कहते हैं कि गरीबी जीवन का सबसे बड़ा अभिशाप है। अमिता ने परिवार की आर्थिक स्थिति सही करने के लिए जी-तोड़ मेहनत का रास्ता चुना। परिवार दिल्ली के झुग्गी-झोपड़ी वाले इलाके में रहता है। ऐसे में समझा जा सकता है कि एक 'टी-सेलर' की बेटी के लिए चार्टर्ड एकाउंटेंट की पढाई कितनी मुश्किलों से भरी रही होगी। 

ड्रीम पूरा होने में लगे 10 साल

लिंक्डइन पर उनका शेयर किया गया एक पोस्ट वायरल हो रहा है। जिसमें उन्होंने अपने इमोशन को खुले दिल से जाहिर किया है। वह लिखती हैं कि 10 साल लगें। हर दिन आंखों में सपने लिए खुद से ही पूछती थी कि ये सपना ही है या कभी यह हकीकत में बदलेगा। मेरा यह सपना 11 जुलाई 2024 को सच हो गया। 

पिता ने सुने लोगों के ताने, एवरेज स्टूडेंट से कम थीं अंकिता

आगे वह लिखती हैं कि हॉं सपने सच होते हैं। लोग उनके पिता से कहते थे कि अपनी बेटी को क्यों इतना बड़ा कोर्स करा रहे हो। वह नहीं कर पाएगी। वह खुद को औसत स्टूडेंट से भी कम आंकती हैं। समाज के लोग पिता से कहते थे कि तुम चाय बेचकर अपनी बेटी को इतना नहीं पढ़ा पाओगे। पैसा बचाकर घर बनवाओ। आखिर कब तक जवान बेटियों को लेकर सड़क पर रहोगे। वैसे भी यह पराया धन हैं, एक दिन चली जाएंगी तो तुम्हारे पास कुछ भी नहीं बचेगा।

'झुग्गी-झोपड़ी उल्टी खोपड़ी...', लोगों का कहना बिल्कुल सही

वह स्वीकारती हैं कि यह बहुत कम लोग जानते हैं कि मैं स्लम में रहती हूॅं। लेकिन अब मुझ पर इसका कोई फर्क नहीं पड़ता है। कुछ लोग कहते थे कि झुग्गी—झोपड़ी उल्टी खोपड़ी। लोग बिल्कुल सही कहते थे। अगर उल्टी खोपड़ी नहीं होती ​तो आज यहां तक नहीं पहुंचती और अब मैं इस लायक हॅूं कि अपने पापा को घर बनवा के दे सकती हूॅं। उनकी सारी ख्वाहिशें पूरी कर सकती हूॅं। 

लिंक्डइन पर वायरल हो रहा ये वीडियो 

सीए का फाइनल रिजल्ट आने के बाद वह अपने पापा को गले लगाकर रोईं। पिता की आंखों में भी आंसू आ गए। अमिता लिखती हैं कि सकून इस बात का है कि पहली बार पापा को गले लगाकर रोई। इस पल के लिए बहुत इंतजार करना पड़ा। खुली आंखों से ही सपनों को विजुअलाइज करती थी। आज वही सपना रियल में कैप्चर हो गया। उन्होंने अपने पिता के साथ गले लगकर रोते हुए वीडियो लिंक्डइन पर भी शेयर किया है, जो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है। 

 

कभी देर नहीं होती, सपने वास्तव में होते हैं सच

वह कहती हैं कि मैं सबको बोलना चाहती हूॅं कि कभी लेट नहीं होता। सपने वास्तव में सच होते हैं। आज मैं जो कुछ भी हूॅं, अपने पैरेंट्स की वजह से हूॅं। उन्होंने मुझ पर भरोसा किया और यह कभी नहीं सोचा कि एक दिन बेटी हमें छोड़कर चली जाएगी। उन्होंने हमेशा सोचा कि मैं अपनी बेटियों को पढ़ाऊंगा।

ये भी पढें-गुरु पूर्णिमा 2024: गुरु-शिष्य के पवित्र बंधन का उत्सव, जानें इसका महत्व और 5 महापुरुषों के विचार

click me!