पति का एक्सीडेंट, घर में आर्थिक तंगी फिर कैसे उर्वशी यादव ने खड़ा कर दिया करोड़ों का एम्पायर

By rohan salodkar  |  First Published Aug 7, 2023, 8:30 AM IST

उर्वशी यादव ने कभी सोचा नहीं था की एक दिन वह बिजनेसवुमन बन जाएगी। उनकी जिंदगी में किसी चीज की कमी नहीं थी।   बेपनाह पैसा, प्यार करने वाला पति, सास ससुर और बच्चे लेकिन एक दिन उर्वशी के पति का एक्सीडेंट हुआ महीनों बिस्तर पर रहने के कारण घर में आर्थिक तंगी के हालात पैदा हो गए और ऐसे समय में उर्वशी ने छोले कुलचे का ठेला लगाकर घर को संभाला।  आज गुरुग्राम में उर्वशी का फूड ट्रक चलता है उनके नाम का रेस्टोरेंट है।

गुरुग्राम. जीवन पहिए की तरह होता है कभी ऊपर कभी नीचे बस घूमता रहता है।  कभी अच्छे दिन आते हैं कभी  बुरे दिन आते हैं। बुरे दिन में जो हिम्मत नहीं हारता  वही विजेता कहलाता है। गुरुग्राम की उर्वशी यादव एक ऐसी ही योद्धा है जिन्होंने बुरे वक्त में अपने पूरे घर को संभाला।  माय नेशन हिंदी से उर्वशी ने अपने विचार साझा किए। 

पति की नौकरी ने बदल दिए घर के हालात

 उर्वशी एक पंजाबी फैमिली से आती है। ग्रेजुएशन की डिग्री लेने के बाद उर्वशी ने इंटरकॉन्टिनेंटल होटल दिल्ली में फ्रंट ऑफिस एग्जीक्यूटिव की नौकरी किया। साल 2004 में  रिटायर्ड आर्मी ऑफिसर एनके यादव के बेटे अमित यादव से उर्वशी की शादी हो गई। अमित एक कंस्ट्रक्शन कंपनी में मैनेजर थे। सब कुछ बहुत अच्छे से चल रहा था उर्वशी का ससुराल करोड़पति था उनका तीन करोड़ का मकान था, SUV गाड़ी थी, जमीन जायदाद की कमी नहीं थी, 31 मई 2016 को उर्वशी के पति अमित क्रिकेट खेलते हुए गिर गए। अमित को भयानक चोटें आई,  कई सर्जरी हुई। सर्जरी कामयाब हुई लेकिन अमित को ठीक होने में टाइम था ऐसे में अमित को अपनी मैनेजर की जॉब छोड़नी पड़ी। चूंकि अमित घर में इकलौते कमाने वाले इंसान थे इसलिए हालात मुश्किल होते चले गए।   बैंक में रखा पैसा भी खत्म होने लगा और ऐसे समय में उर्वशी ने फैसला किया कि वह नौकरी करेंगी। 

अच्छी अंग्रेजी के कारण मिल गई नौकरी

उर्वशी की अंग्रेजी अच्छी थी इसलिए उन्हें एक नर्सरी स्कूल में टीचर की नौकरी मिल गई। लेकिन तनख्वाह से घर नहीं चल पा रहा था बच्चों की फीस, घर का खर्च, अमित की दवाएं, इन खर्चो के आगे उर्वशी की सैलरी कम पड़ रही थी। उस वक्त उर्वशी ने फैसला लिया अपना कोई काम करेंगी। उर्वशी खाना अच्छा बनाती थी लेकिन उनके पास इतना पैसा नहीं था कि वह अपना रेस्टोरेंट खोल सकें इसलिए उन्होंने तय किया कि वह ठेला लगाएंगी। सड़क पर ठेला  लगाना परिवार की प्रतिष्ठा के खिलाफ था इसका विरोध उनके साथ ससुर और उर्वशी के बच्चों ने किया लेकिन उर्वशी को यह समझ में आ चुका था की प्रतिष्ठा से आपके घर का खर्च नहीं चलता। उर्वशी ने गुरुग्राम सेक्टर 14 में छोले कुलचे और पराठे का ठेला लगा लिया।

 

और फेमस हो गया उर्वशी का छोले कुलचे का बिजनेस

एसी में रहने वाली उर्वशी दिन भर धूप में पसीना पोंछते हुए छोला कुलचा बनाने लगी। शुरू में उनके ठेले पर कोई नहीं आता था लेकिन उर्वशी ने हिम्मत नहीं हारी। इसी दौरान सोनाली आनंद गौर नाम की एक इनफ्लुएंसर ने उर्वशी की दर्द भरी दास्तान सोशल मीडिया पर लिख दी।  यह पोस्ट इतनी वायरल हुई के लोग उर्वशी के ठेले तक पहुंचने लगे । धीरे-धीरे उनके छोले कुलचे के जायके की तारीफ जगह-जगह होने लगी। लोगों की भीड़ उर्वशी के ठेले पर इकट्ठा होने लगी।  अक्सर लोग हैरत करते थे इतनी फराटेदार अंग्रेजी बोलने वाली लड़की सड़क पर छोले कुलचे का ठेला क्यों लगाए हुए हैं। उर्वशी का ठेला मशहूर होने लगा। उर्वशी की एक दिन की कमाई 3000 से 4000 होने लगी। गुरुग्राम से बाहर के लोग भी उर्वशी के छोले कुलचे और पराठे खाने के लिए आने लगे । एक तरफ उर्वशी ने अपनी मेहनत से घर को संभाल दूसरी तरफ अमित भी अब धीरे-धीरे ठीक होने लगे। परिवार के लोग भी उर्वशी का सहयोग करने लगे थे।

 

उर्वशी ने खोल लिया अपना रेस्टोरेंट

उर्वशी के पास इतना पैसा हो गया कि उन्होंने अपना फूड ट्रक खरीद लिया इसके लिए बकायदा उन्होंने लाइसेंस लिया। उर्वशी का बिजनेस दिन-ब-दिन परवान चढ़ रहा था।  कुछ दिन में उर्वशी ने पैसा इकट्ठा करके "उर्वशी फूड ज्वाइंट" नाम से रेस्टोरेंट्स खोल लिया। इस रेस्टोरेंट में सिर्फ छोले कुलचे ही नहीं बल्कि और भी जायकेदार सामान मिलते हैं। आज उर्वशी आत्मनिर्भर होने के साथ-साथ महीने में लाखों की कमाई कर रही है।

आज सब मुझ पर गर्व करते हैं

उर्वशी कहती हैं बुरे हालात में मुझे कभी कभी नींद नहीं आती थी लेकिन कहते हैं ना कि भगवान अच्छे और बुरे दिन दोनों दिखाता है और दोनों ही दिनों से हमें नसीहत लेनी चाहिए।  जब बुरे दिन थे तो मुझे अपने बच्चों का भविष्य दिखाई दे रहा था।   इस  बात का डर लग रहा था कि कहीं मेरे बच्चे की फीस न जमा होने के कारण स्कूल से निकाल दिया जाए। कहीं पैसों की कमी से मेरे पति का इलाज रुक ना जाए।  कहीं ऐसा ना हो की आर्थिक स्थिति इतनी कमजोर हो जाए कि घर में बिजली का बिल न जमा हो पाए। मैं दूरदर्शी हो चुकी थी। दूर का सोचने लगी थी और यही सब सोचकर मैंने सड़क पर उतरने का फैसला किया था।  काम कोई भी छोटा बड़ा नहीं होता है। अगर उस वक्त मैंने यह फैसला ना लिया होता तो सोचिए मेरे घर की क्या हालत होती लेकिन आज सास, ससुर, पति सब मुझ पर गर्व करते हैं।

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