भारतीयों की जान की सस्ती कीमत लगाई गई भोपाल गैस त्रासदी में

इसके बाद इस मामले को न्यायाधीश कीनन द्वारा मई 1986 को भारत में ट्रांसफर कर दिया गया। वहीं यूसीसी को अंतरिम राहत भुगतान के रूप में 5 मिलियन डॉलर का भुगतान करने का आदेश दिया। इसके साथ ही भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इसके लिए फैसला दिया गया। जिसके तहत इस त्रासदी के लोगों के लिए भुगतान राशि तय की गई। ये भुगतान राशि 470 मिलियन थी। जो प्रति पीड़ित व्यक्ति के हिस्से में केवल दस हजार तक आ रही थी।

Affordable cost of lives of Indians imposed in Bhopal gas tragedy

असल में इस भोपाल गैस त्रासदी की आपदा के बाद, भारत सरकार ने कानूनी कार्यवाही के लिए पीड़ितों का एकमात्र प्रतिनिधि बनने के लिए अध्यादेश जारी किया। हालांकि बाद में इस अध्यादेश को भोपाल गैस लीक अधिनियम द्वारा बदल दिया गया। वहीं सन् 1985 और फिर उन्होंने यूसीसी के खिलाफ न्यूयॉर्क में मुकदमा दायर किया।

हालांकि सरकार ने दिखाने के लिए आपदा की जांच के लिए बहुत सारे उपाय किए गए लेकिन उनमें से कोई भी जांच सही तरीके से नहीं की गई। क्योंकि इसमें दोषियों को ही बचाने के प्रयास किए गए। यही नहीं जांच आयोग और जांच करने वालों ने कर्मचारियों को ही पूरी घटना के लिए दोषी ठहराया और मामले में दोषियों को बचा लिया। जबकि लाखों लोग न्याय का इंतजार कर रहे थे।

इसके बाद इस मामले को न्यायाधीश कीनन द्वारा मई 1986 को भारत में ट्रांसफर कर दिया गया। वहीं यूसीसी को अंतरिम राहत भुगतान के रूप में 5 मिलियन डॉलर का भुगतान करने का आदेश दिया। इसके साथ ही भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इसके लिए फैसला दिया गया। जिसके तहत इस त्रासदी के लोगों के लिए भुगतान राशि तय की गई।

ये भुगतान राशि 470 मिलियन थी। जो प्रति पीड़ित व्यक्ति के हिस्से में केवल दस हजार तक आ रही थी। जबकि दुखद बात यह है कि उसी वर्ष, अलास्का तेल रिसाव से प्रभावित समुद्री ऊदबिलाव के पुनर्वास और राशन पर यूएस 4500 अमेरिकी डॉलर खर्च किए गए थे। जबकि भारत में भोपाल गैस त्रासदी में भारतीयों के जीवन की लागत इतनी सस्ती हो गई थी।

यूसीआईएल ने बीएम खेतान समूह की कंपनी मैकलियोड रसैस इंडिया लिमिटेड को अपनी 50.9 फीसदी हिस्सेदारी बेचकर इस रकम को चुकाने की कोशिश की। इस मामले में तत्कालीन यूसीसी चेयरमैन वारेन एंडरसन को 7 दिसंबर, 1984 को गिरफ्तार किया गया था, लेकिन राजनैतिक सरंक्षण के कारण उन्हें छह घंटे बाद ही 2100 अमेरिकी डॉलर की राशि के साथ जमानत पर रिहा कर दिया गया था और इसके बाद उन्हें सरकारी विमान में भारत से बाहर भेज दिया गया था।

भोपाल की अदालत ने उसे 1991 में एक आपराधिक मामले में हत्या के आरोप में पेश होने के लिए तलब किया था, लेकिन वह कभी नहीं मिला। इसके बाद उसके नाम पर कई सम्मन जारी किए गए लेकिन उसे तामील नहीं किया जा सका।  जांच अधिकारी भी उसका पता लगाने में नाकाम रहे थे। यह वास्तव में आश्चर्यजनक था कि इतने बड़े निगम के सीईओ बिना किसी को कोई जानकारी दिए गायब हो गए! भोपाल गैस त्रासदी को आज तक दुनिया की सबसे खराब औद्योगिक आपदा माना जाता है।

हजारों लोग तुरंत मर गए और हजारों लोग आज तक इसके प्रकोप का सामना कर रहे हैं। हमारे लिए एक कदम पीछे हटना और इस त्रासदी को फिर से समझने के लिए इससे सबक लेना उचित है कि ऐसा कभी नहीं दोहराया जाता है। यह भोपाल गैस त्रासदी पर इस श्रृंखला का अंतिम अध्याय है।

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